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  • CLASS-XI

    SUBJECT-POLITICAL SCIENC

    MOST IMPORTAN QUESTION-ANS

     

    प्रश्न 1. राजनीतिक सिद्धांत की आवश्यकता हमें क्यों है?

    उत्तर. राजनीतिक सिद्धांत की आवश्यकता को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं -

    1. राजनीतिक सिद्धांत की आवश्यकता हमें इसलिए होती है क्योंकि हम इसके माध्यम से भविष्य की योजनाएं बना सकते हैं। राजनीतिक सिद्धांत वर्तमान समस्याओं के समाधान के साथ-साथ भविष्य के लिए नई व्यवस्थाएं भी बनाने में सहायता करता है।

    2. राजनीतिक सिद्धांत की आवश्यकता हमें इसलिए भी है क्योंकि इसके माध्यम से हम वर्तमान समस्याओं के समाधान को तलाश सकते हैं और अपना बेहतर विकास भी कर सकते हैं। इसके माध्यम से सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं का बेहतर अध्ययन किया जा सकता है और बेहतर समाधान निकाला जा सकता है।

    3. राजनीतिक सिद्धांत की आवश्यकता हमें इसलिए भी होती है क्योंकि यह शासन प्रणालियों के लिए औचित्य प्रदान करता है। किसी भी प्रकार की शासन प्रणाली कुछ सिद्धांतों पर आधारित होती है। राजनीतिक सिद्धांत शासन को एक आधार प्रदान करता है चाहे वह किसी भी प्रकार की शासन प्रणाली क्यों ना हो।

    4. राजनीतिक सिद्धांत की आवश्यकता हमें इसलिए भी होती है क्योंकि इसके माध्यम से राजनीतिक वास्तविकता की जानकारी प्राप्त होती है। राजनीतिक सिद्धांत समाज में बेहतर अध्ययन करने के बाद लोगों की इच्छाओं, आकांक्षाओं और प्रवृत्तियों के माध्यम से बेहतर निष्कर्ष निकालता है और समाज की वास्तविकता को उजागर करता है।

    प्रश्न 2. भारतीय संविधान की संघात्मक विशेषताओं को दर्शाने वाले लक्षणों का वर्णन कीजिए।

    उत्तर. भारतीय संविधान एक संघात्मक संविधान है जिसके कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार है-

    1. भारतीय संविधान एक लिखित संविधान है और किसी भी संघीय व्यवस्था वाले देश में लिखित संविधान अवश्य होना चाहिए इसलिए हम कह सकते हैं कि भारत एक संघीय व्यवस्था वाला देश है।

    2. भारत को एक संघीय देश इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर संविधान की सर्वोच्चता है इसका मतलब यह है कि संविधान से ऊपर कोई भी नहीं है और किसी भी संघात्मक देश में संविधान की सर्वोच्चता बहुत आवश्यक है।

    3. भारत का संविधान एक संघात्मक संविधान है क्योंकि भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है। किसी भी संघात्मक संविधान में स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका का होना एक अनिवार्य शर्त है।

    4. भारत का संविधान एक संघात्मक संविधान है क्योंकि यहां पर सरकार तीन स्तर पर पाई जाती है। भारतीय संविधान में केंद्र सरकार राज्य, सरकार और स्थानीय सरकार तीन स्तर की सरकार की व्यवस्था की गई है। किसी भी संघात्मक संविधान में सरकार दो या दो से अधिक स्तर की होनी चाहिए।

    5. भारत के संविधान को संघात्मक संविधान इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर शक्तियों का विभाजन संघ, सूची राज्य सूची और समवर्ती सूची के रूप में किया गया है। शक्तियों का विभाजन संघात्मक शासन व्यवस्था का एक अनिवार्य लक्षण है।

    प्रश्न 3. 73वें संविधान संशोधन की कुछ प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

    उत्तर. 73वें संविधान संशोधन की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार है -

    1. 73वें संविधान संशोधन के बाद भारत के प्रत्येक राज्य में पंचायतों का तीन स्तरीय ढांचा की व्यवस्था की गई है। ग्राम सभा, ब्लॉक समिति और जिला पंचायत इस प्रकार से पंचायतों के तीन स्तरीय ढांचे को स्वीकार किया गया है।

    2. 73वें संविधान संशोधन एक प्रमुख विशेषता यह है कि पंचायतों के सभी स्तरों के चुनाव हर 5 वर्ष में कराने अनिवार्य कर दिए गए हैं।

    3. 73वें संविधान संशोधन की एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि इसके माध्यम से अब महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित कर दी गई हैं तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण का प्रावधान कर दिया गया है। इसके साथ ही सरपंच और प्रधान पद के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की गई है।

    4. 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से एक प्रावधान यह भी किया गया है कि अब पंचायतों के चुनावों को कराने की जिम्मेदारी राज्य चुनाव आयुक्त को दी गई है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से इन चुनावों को संपन्न कराएगा।

    5. 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से एक विशेष प्रावधान यह भी किया गया है कि राज्य सरकार हर 5 वर्ष के लिए एक वित्त आयोग की व्यवस्था करेगी जिसका कार्य मौजूदा स्थानीय शासन की संस्थाओं की आर्थिक स्थिति की जानकारी रखना होगा।

    प्रश्न 4. भारतीय नागरिकों के किन्ही चार मौलिक कर्तव्यों का वर्णन कीजिए।

    उत्तर. 42 वें संविधान संशोधन के माध्यम से वर्ष 1976 में भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया था। वर्तमान समय में भारतीय संविधान में 11 मौलिक कर्तव्य है जिनमें से कुछ इस प्रकार है-

    1. संविधान का पालन करना और उसके आदर्श संस्थाओं राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करना।

    2. स्वतंत्रता के समय हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखना और उनका पालन करना।

    3. भारत की प्रभुसत्ता, एकता और अखंडता की रक्षा करना और उसे अक्षर बनाए रखना।

    4. देश की रक्षा करना और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करना।

    5. भारत के सभी लोगों में समरसता और भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो और ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान की विरुद्ध हों।

    प्रश्न 5. समानता के विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।

    उत्तर. समानता शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है सभी के साथ बराबरी का व्यवहार। हम कह सकते हैं कि जब किसी व्यक्ति के साथ जाति धर्म, भाषा, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर बिना किसी भेदभाव के एक जैसा व्यवहार किया जाए तो यह समानता है। समानता के विभिन्न रूपों को हम इस प्रकार समझ सकते हैं -

    1. प्राकृतिक समानता प्राकृतिक समानता का अर्थ यह है कि प्रकृति ने सभी मनुष्य को एक समान जन्म दिया है और सभी मनुष्य आधारभूत रूप से बराबर होते हैं।

    2. सामाजिक समानता सामाजिक समानता का अर्थ यह है कि समाज में सभी व्यक्ति बराबर हैं और समाज में किसी भी प्रकार के विशेष अधिकारों का अस्तित्व नहीं होना चाहिए। समाज में जाति, धर्म, लिंग, भाषा आदि के आधार पर किसी प्रकार का कोई भेदभाव ना हो यह सामाजिक समानता को दर्शाता है।

    3. नागरिक समानता नागरिक समानता का अर्थ है कानून की दृष्टि में सभी व्यक्ति एक समान है और राज्य द्वारा बनाए गए नियमों के अंतर्गत सभी एक समान है। सभी नागरिकों को सभी नागरिक स्वतंत्रता है और अधिकार प्राप्त होने चाहिए बिना किसी भेदभाव के, यही नागरिक समानता कहलाता है।

    4. राजनीतिक समानता राजनीतिक समानता का अर्थ है सभी व्यक्तियों को निर्वाचन में भाग लेने, चुनाव लड़ने, राजनीतिक दल बनाने जैसे अधिकारों को प्रदान करने में किसी प्रकार का कोई भेदभाव ना किया जाए।

    5. आर्थिक समानता आर्थिक समानता का अर्थ है देश में किसी भी प्रकार की आर्थिक विषमता ना हो अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को आर्थिक संरक्षण प्राप्त हो और उसे रोजगार के अवसर भी प्राप्त होते रहे तथा वह अपनी योग्यता के आधार पर नौकरी तथा व्यवसाय करने में स्वतंत्र हो।

    प्रश्न 6. जॉन रॉल्स के न्याय सिद्धांत का वर्णन कीजिए।

    उत्तर. जॉन रॉल्स ने वर्तमान समय में वितरणात्मक न्याय के सिद्धांत का समर्थन किया है उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ए थ्योरी ऑफ जस्टिस में अपने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। जॉन रॉल्स ने अपने न्याय के सिद्धांत के द्वारा एक तरफ उदार लोकतंत्र का समर्थन किया है वहीं दूसरी तरफ समाज के कमजोर वर्गों के हितों का संरक्षण भी किया है। जॉन रॉल्स मानते हैं कि एक उत्तम समाज की स्थापना बिना न्याय के संभव नहीं है। जॉन रॉल्स के न्याय सिद्धांत को हम इस प्रकार समझ सकते हैं-

    1. जॉन रॉल्स के अनुसार न्याय का प्रथम सिद्धांत यह कहता है कि सभी व्यक्तियों को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए मूल स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए। अतः सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए।

    2. जॉन रॉल्स का मानना है कि पूंजीवादी व्यवस्था का समर्थन किया जाना चाहिए और अवसरों की समानता पर बल दिया जाना चाहिए।

    3. जॉन रॉल्स के न्याय सिद्धांत में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि आय का पुनर्वितरण होना अनिवार्य है। उनका मानना है कि पूंजीवादी व्यवस्था पर आए हुए संकट का सामना करने के लिए आय के पुनर्वितरण सिद्धांत को अपनाना चाहिए। जॉन रॉल्स मानते हैं कि बाजार अर्थव्यवस्था सामाजिक न्याय पर आधारित होनी चाहिए जिसके लिए आय का पुनर्वितरण नितांत आवश्यक है।

    प्रश्न 7. राष्ट्रीय आत्म निर्णय के अधिकार से आप क्या समझते हैं? यह अधिकार किस प्रकार राष्ट्र राज्यों के निर्माण में बाधक है ?

    उत्तर. राष्ट्रीय आत्म निर्णय के अधिकार से अभिप्राय है कि किसी राष्ट्र के सदस्यों का अपने शासन और निर्णय संबंधी शक्तियों को प्राप्त करना। यह अधिकार अंतरराष्ट्रीय जगत में किसी क्षेत्र को एक राजनीतिक इकाई या राज्य के रूप में मान्यता की वकालत करता है। राष्ट्रीय आत्म निर्णय के सिद्धांत के अंतर्गत एक संस्कृति एक राज्य के आधार पर राज्यों के निर्माण तथा मान्यता की वकालत की जाती है इस प्रकार की मांग सर्वप्रथम 19वीं शताब्दी में यूरोप में की गई थी जिसके फलस्वरूप कई छोटे-छोटे राज्य देखने को मिले। राष्ट्रीय आत्म निर्णय का अधिकार राष्ट्र राज्यों के निर्माण में बाधक बन जाता है जिसके लिए निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं -

    1. नए राज्यों के निर्माण से राज्यों की सीमाओं में बदलाव होता है।

    2. नए राज्यों के निर्माण के कारण जनसंख्या का भारी मात्रा में विस्थापन होता है और लाखों लोगों को इस विस्थापन का शिकार होना पड़ता है।

    3. जान और माल की अपार क्षति के लिए भी राष्ट्रीय आत्म निर्णय का अधिकार बहुत हद तक जिम्मेदार है इसके फलस्वरूप कई स्थानों पर सांप्रदायिक दंगे भी देखने को मिले हैं।

    4. राष्ट्रीय आत्म निर्णय के अधिकार के कारण नए राष्ट्र राज्यों के निर्माण में यह देखा गया कि वहां पर भी एक संस्कृति और नस्ल के लोग नहीं थे। इसके कारण अल्पसंख्यक वर्गों को काफी कष्टदायक अनुभव से गुजरना पड़ा है।

    प्रश्न 8. धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? भारतीय संविधान में किए गए किन्ही चार धर्मनिरपेक्ष तत्व का वर्णन कीजिए।

    उत्तर. धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यह है कि जब किसी देश का कोई शासकीय धर्म नहीं होता लेकिन वह देश अपने नागरिकों के सभी धर्मों का सम्मान करता है और उन्हें संरक्षण प्रदान करता है तो इस धारणा को धर्मनिरपेक्षता की धारणा कहा जाता है। भारत और फ्रांस दो प्रमुख धर्मनिरपेक्ष देश माने जाते हैं। भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्ष तत्व के संदर्भ में हम निम्नलिखित बिंदुओं को देख सकते हैं-

    1. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42 वें संविधान संशोधन के माध्यम से वर्ष 1976 में पंथनिरपेक्ष शब्द का इस्तेमाल किया गया है जो कि भारत की धर्मनिरपेक्षता की धारणा को अभिव्यक्त करता है।

    2. भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से इसका वर्णन किया गया है कि भारत का कोई अपना शासकीय धर्म नहीं होगा।

    3. भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों की व्यवस्था की गई है जो प्रत्येक व्यक्ति को उसके धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को उपलब्ध कराने की व्यवस्था करता है।

    4. भारतीय संविधान में अनुच्छेद 26 के माध्यम से यह अधिकार भी दिया गया है कि कोई भी नागरिक शांतिपूर्वक तरीके से  धार्मिक संस्थाओं की स्थापना कर सकता है।

    प्रश्न 9. किसी व्यक्ति की भारतीय नागरिकता किस प्रकार समाप्त हो सकती है?

    उत्तर. किसी व्यक्ति की भारतीय नागरिकता समाप्त होने के लिए कुछ आवश्यक बातों का वर्णन भारतीय संविधान में किया गया है जो कि इस प्रकार है -

    1. यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण कर लेता है तो उस व्यक्ति की भारतीय नागरिकता समाप्त हो जाती है।

    2. यदि कोई व्यक्ति स्वयं ही नागरिकता को त्याग देता है तो ऐसे व्यक्ति की भारतीय नागरिकता समाप्त कर दी जाती है।

    3. यदि कोई व्यक्ति लगातार 7 वर्षों तक भारत से बाहर रहता है तो ऐसे व्यक्ति की नागरिकता समाप्त मानी जाती है।

    4. यदि कोई व्यक्ति युद्ध काल में शत्रु देश की सहायता करता है तो ऐसी स्थिति में सरकार उस व्यक्ति की भारतीय नागरिकता समाप्त कर सकती है।

    5. यदि कोई व्यक्ति भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा दिखाता है तो इस स्थिति में भी उसकी नागरिकता समाप्त की जा सकती है।

    6. यदि कोई भारतीय स्त्री किसी विदेशी व्यक्ति से विवाह कर लेती है तो ऐसी उस स्त्री की नागरिकता समाप्त हो सकती है।

    प्रश्न 10. अधिकार में कर्तव्य निहित होते हैं। इस कथन की व्याख्या कीजिए।

    उत्तर. अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू है अर्थात अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे से परस्पर संबंधित है तथा एक दूसरे पर आश्रित भी हैं। अधिकार में कर्तव्य नहीं होते हैं इस कथन को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से उचित सिद्ध कर सकते हैं -

    1. एक व्यक्ति के अधिकार दूसरे व्यक्ति के कर्तव्य होते हैं इसका मतलब यह है कि यदि हमें अपने अधिकार प्राप्त करने हैं तो हमें अपने कर्तव्यों का निर्वहन भी उचित प्रकार से करना होगा।

    2. एक व्यक्ति का अधिकार उसका कर्तव्य भी है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों का भी समान रूप से निर्वहन करना चाहिए।

    3. अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे के पूरक है ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिकारों की अनुपस्थिति में कर्तव्यों का कोई मोल नहीं होगा वहीं दूसरी तरफ यदि हमें अधिकारों का लाभ उठाना है तो हमें कर्तव्यों का भी निर्वहन करना होगा।

    4. ऐसा माना जाता है कि अधिकारों के बिना किसी भी व्यक्ति का सर्वांगीण विकास संभव नहीं है और समाज में रहकर ही व्यक्ति अपने अधिकारों के माध्यम से अपना विकास करता है लेकिन यदि समाज के अन्य सदस्य अपने कर्तव्यों का पालन ना करें तो एक व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होना असंभव सा होगा।

    5. अधिकार में कर्तव्य निहित होते हैं क्योंकि अधिकार और कर्तव्य दोनों ही व्यक्ति के जीवन को सुखी बनाने का कार्य करते हैं इसलिए हम कह सकते हैं कि दोनों के बिना ही व्यक्ति का सर्वांगीण विकास संभव नहीं है और दोनों ही एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।

    6. राजनीतिक विचार को का मानना है कि कर्तव्यों के बिना अधिकारों का अस्तित्व संभव है इसका अर्थ यह है कि यदि हमें अधिकारों का सेवन करना है तो हमें कर्तव्यों का निर्वहन भी करना पड़ेगा।


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