MID TERM EXAM
MOST IMPORTANT QUESTIONS
& ANSWERS
CLASS-XI (11)
SUBJECT-POLITICAL SCIENCE
प्रश्न
1.
किसी देश के लिए संविधान का क्या महत्व है?
अथवा
संविधान
के कोई चार कार्य बताइए।
उत्तर. संविधान किसी भी देश का सर्वोच्च और
मौलिक कानून होता है जिसका पालन सभी व्यक्तियों को अनिवार्य रूप से करना होता है।
संविधान सभी देशों के लिए एक महत्वपूर्ण कानून है और बहुत से महत्वपूर्ण कार्य
करता है जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं -
1. संविधान का सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह तय करना होता है
कि वह बुनियादी नियमों का एक ऐसा समूह उपलब्ध कराएं जिससे समाज के सदस्यों में एक
न्यूनतम समन्वय और विश्वास बना रहे। संविधान देश में विभिन्न नागरिकों के बीच
तालमेल और सामंजस्य को बढ़ाता है जिससे कि सभी नागरिक सम्मान पूर्वक रह सके।
2. संविधान का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य यह तय करना होता है
कि सरकार का निर्माण कैसे होगा और निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होगी। संविधान
के माध्यम से यह तय हो पाता है कि सरकार को किस तरह से बनाया जाएगा और तक इस तरह
से कार्य करेगी।
3. संविधान का तीसरा महत्वपूर्ण कार्य सरकार की शक्तियों
पर सीमाएं निर्धारित करना भी होता है। सरकार निर्माण के बाद संविधान यह भी तय करता
है कि सरकार निरंकुश ना हो जाए और जन कल्याण के कार्य नियमों के अंतर्गत ही करें।
4. संविधान का एक महत्वपूर्ण कार्य यह भी है कि संविधान
देश के नागरिकों की आकांक्षा और लक्ष्यों को पूरा करने में सहयोग करता है। इस तरह
से संविधान सरकार कोई ऐसी क्षमता प्रदान करता है जिससे कि वह जनता की आकांक्षाओं
को पूरा कर सके और एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए उचित परिस्थितियों का
निर्माण कर सकें।
5. संविधान का सबसे महत्वपूर्ण महत्व कार्य यह भी है कि यह
किसी भी देश की एक बुनियादी पहचान होता है। संविधान के माध्यम से ही देश की असली
पहचान होती है और संविधान में किए गए प्रावधानों से ही विश्व में देश के नागरिकों
और देश के बारे में अच्छी तरह से पता चल पाता है। दक्षिण अफ्रीका के संविधान के
माध्यम से हम दक्षिण अफ्रीका के बारे में बहुत सी बातें समझ पाते हैं इसी तरह से
जर्मनी का प्रारंभिक संविधान हमें उसके नस्लीय भेदभाव को बताता था।
प्रश्न
2.
भारतीय संविधान को उधारों का थैला भी कहते हैं। स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारतीय
संविधान में उन प्रावधानों का वर्णन कीजिए जो अन्य देशों के संविधान से लिए गए
हैं।
उत्तर. भारत का संविधान विश्व का सर्वाधिक
बड़ा लिखित संविधान है। हमारे देश के संविधान में बहुत सारे प्रावधानों को शामिल
किया गया है जिनमें से बहुत से प्रावधान अन्य देशों के संविधान से लिए गए हैं। इन
प्रावधानों को अन्य देशों से लेने के कारण ही भारतीय संविधान को उधार का थैला भी
कह देते हैं। भारतीय संविधान में अन्य देशों के संविधान से निम्नलिखित प्रावधानों
को लिया गया है -
1. ब्रिटिश संविधान - ब्रिटेन के संविधान से हमने बहुत
सारी चीजें अपने संविधान में शामिल की हैं जिनमें सर्वाधिक मत के आधार पर चुनाव
में जीत का फैसला, सरकार का संसदीय स्वरूप, कानून के शासन का विचार, विधायिका में अध्यक्ष का पद
और उसकी भूमिका, कानून निर्माण की विधि।
2. अमेरिका संविधान - अमेरिका के संविधान से भारतीय
संविधान में मौलिक अधिकारों की सूची, न्यायिक पुनरावलोकन की
शक्ति और न्यायपालिका की स्वतंत्रता जैसी अवधारणाओं को लिया गया है।
3. कनाडा का संविधान - कनाडा के संविधान से भारतीय संविधान
में अर्ध संघात्मक सरकार का स्वरूप (सशक्त केंद्रीय सरकार वाली संघात्मक व्यवस्था),
अवशिष्ट शक्तियों का सिद्धांत जैसे अवधारणाओं को शामिल किया गया है।
4. फ्रांस का संविधान - फ्रांस के संविधान से भारतीय
संविधान में स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व के विचारों को लिया गया है।
5. आयरलैंड का संविधान - आयरलैंड के संविधान से भी भारतीय
संविधान में कुछ प्रावधान लिए गए हैं जिनमें राज्य के नीति निर्देशक तत्व प्रमुख
हैं।
6. दक्षिण अफ्रीका का संविधान - दक्षिण अफ्रीका के संविधान
से भारतीय संविधान में संविधान संशोधन की विधि को लिया गया है।
प्रश्न
3. संविधान संशोधन से आप क्या समझते हैं? भारतीय
संविधान में संशोधन की कितनी विधियां है?
उत्तर. संविधान संशोधन का साधारण अर्थ है
संविधान में उन प्रावधानों को शामिल करना जो संविधान में नहीं है और आवश्यकता
पड़ने पर पुराने प्रावधानों को हटाना तथा नए प्रावधानों को जोड़ना।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 368 संविधान
संशोधन से संबंधित है। भारतीय संविधान में संशोधन करने की प्रमुख तीन विधियां है
जो कि इस प्रकार हैं -
1. साधारण विधि - भारतीय संविधान में
संशोधन करने की सबसे पहली विधि साधारण विधि है और इस विधि के माध्यम से संसद
साधारण बहुमत से कुछ संशोधन कर सकती है। इनमें से कुछ विषय इस प्रकार हैं नए
राज्यों का निर्माण करना उनकी सीमाओं का निर्धारण करना, राज्यों की विधान परिषद का
गठन करना या समाप्त करना, नागरिकता, आम
चुनाव, सांसदों के विशेषाधिकार आदि।
2. विशेष विधि - भारतीय संविधान में संशोधन
की दूसरी विधि विशेष बहुमत की विधि है। इस प्रक्रिया के अनुसार संविधान संशोधन बिल
किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है और उसके बाद सदन की कुल संख्या के
साधारण बहुमत तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव
पारित किया जा सकता है। यही प्रक्रिया दूसरे सदन में पूरी की जाएगी और उसके बाद
राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर करने के बाद संविधान संशोधन हो जाता है। भारतीय
संविधान के अधिकतर प्रावधानों में इसी प्रक्रिया से संशोधन होता है मौलिक अधिकार, नीति निर्देशक तत्व आदि।
3. विशेष बहुमत तथा राज्यों का समर्थन -
भारतीय संविधान में संशोधन करने की यह विधि बहुत ही कठिन है इस विधि के अनुसार यदि
संशोधन करना है तो सदन के कुल सदस्यों की पूर्ण बहुमत और उपस्थित सदस्यों के दो
तिहाई बहुमत के बाद दूसरे सदन के बाद यही प्रक्रिया दोहराई जाती है और इसके बाद
संविधान संशोधन विधेयक राज्यों को विधान सभा के पास अनुमति के लिए भेजा जाता है और
कम से कम भारत के आधे राज्यों की विधानसभाओं का समर्थन होना आवश्यक है। राज्यों की
अनुमति प्राप्त हो जाने के बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद संविधान संशोधन की
प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है। इस प्रकार से संविधान में संशोधन मुख्य रूप से
राष्ट्रपति के निर्वाचन,
राष्ट्रपति के निर्वाचन की पद्धति, संघ की
कार्यपालिका शक्ति, राज्यों की कार्यपालिका शक्ति, राज्यों के उच्च न्यायालय, संघीय न्यायालय आदि में होता है।
प्रश्न
4.
भारतीय निर्वाचन आयोग के चार महत्वपूर्ण कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर. भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष
चुनाव कराने की जिम्मेदारी भारतीय निर्वाचन आयोग को दी गई है। भारतीय संविधान के
अनुच्छेद 324 के अंतर्गत एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोग के गठन का प्रावधान किया
गया है जिसे संसद, राज्य विधानमंडल, राष्ट्रपति,
उपराष्ट्रपति आदि के निर्वाचन कराने की जिम्मेदारी दी गई है। भारतीय
निर्वाचन आयोग के प्रमुख कार्य इस प्रकार है -
1. चुनाव आयोग का सबसे महत्वपूर्ण कार्य मतदाता सूची तैयार
करना होता है जिसमें सभी योग्य मतदाताओं का नाम अंकित किया जाता है।
2. चुनाव आयोग विभिन्न प्रकार के चुनाव की तिथियों की
घोषणा भी करता है।
3. विभिन्न प्रकार की राजनीतिक दलों को मान्यता देने का
कार्य भी भारतीय निर्वाचन आयोग ही करता है।
4. राजनीतिक दलों को चुनाव चिन्ह प्रदान करने का कार्य भी
भारतीय निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारी है।
5. भारतीय निर्वाचन आयोग चुनाव संपन्न हो जाने के बाद
चुनाव परिणाम जारी करता है।
6. भारतीय निर्वाचन आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने
के लिए किसी भी राज्य या किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में चुनावों को रद्द कर सकता है
और आदर्श आचार संहिता भी लागू करता है।
प्रश्न
5.
भारतीय चुनाव प्रणाली में आप कौन-कौन से सुधार करना चाहते हैं?
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर. चुनाव की कोई सी भी प्रणाली कभी भी
आदर्श नहीं हो सकती है और उसमें हमेशा सुधार की आवश्यकता होती है। स्वतंत्र और
निष्पक्ष चुनाव किसी भी चुनाव प्रणाली की आवश्यक शर्त होती है। भारतीय निर्वाचन
प्रणाली में कुछ सुधार इस प्रकार किए जा सकते हैं -
1. अब हमें सर्वाधिक मत से जीत वाली प्रणाली के स्थान पर
किसी प्रकार की समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को अपनाना होगा जिससे कि राजनीतिक
दलों को उसी अनुपात में सीटें प्राप्त हो जिस अनुपात में उन्हें मत प्राप्त होते
हैं।
2. भारत की संसद और विधानसभाओं में कम से कम एक तिहाई
सीटों पर महिलाओं को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
3. भारत के चुनावी राजनीति में धन के प्रभाव को नियंत्रित
करने के लिए और अधिक कठोर प्रावधान करने की आवश्यकता है तथा सरकार को एक सरकारी
चुनावी निधि से खर्च देने की व्यवस्था करनी चाहिए।
4. भारतीय चुनाव प्रणाली में किसी भी प्रकार के ऐसे
व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोक देना चाहिए जिस पर किसी भी प्रकार की कोई भी
फौजदारी मुकदमा हो।
5. चुनाव प्रचार में किसी भी प्रकार के जाति धर्म पर
आधारित भाषण और अपील को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
6. भारतीय चुनाव प्रणाली को यदि और बेहतर करना है तो चुनाव
लड़ने के लिए किसी प्रकार की शैक्षिक योग्यता को निर्धारित करना अति आवश्यक है।
प्रश्न
6.
प्रधानमंत्री की नियुक्ति प्रक्रिया और उसकी शक्तियों का वर्णन
कीजिए।
उत्तर. प्रधानमंत्री की नियुक्ति - भारत
में प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है जिसे राष्ट्रपति लोकसभा
चुनाव के बाद बहुत प्राप्त राजनीतिक दल के नेता को प्रधानमंत्री बनाता है। लोकसभा
के चुनाव में यदि किसी राजनीतिक दल को जब बहुमत प्राप्त नहीं होता है तब ऐसी
स्थिति में राष्ट्रपति अपने स्वविवेक से ही किसी भी ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री
बना सकता है जो बाद में बहुमत सिद्ध कर सके। सामान्य रूप से प्रधानमंत्री का
कार्यकाल 5 वर्ष का होता है लेकिन लोकसभा कभी भी भंग हो सकती है इसलिए इसका कोई
निश्चित कार्यकाल नहीं है। प्रधानमंत्री की कुछ प्रमुख शक्तियों का वर्णन इस
प्रकार है -
1. प्रधानमंत्री का एक प्रमुख कार्य मंत्रिपरिषद का
निर्माण करना होता है। प्रधानमंत्री मंत्रियों की सूची तैयार करता है और
राष्ट्रपति के समक्ष उसे प्रस्तुत करता है। राष्ट्रपति इस सूची के आधार पर ही
विभिन्न मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
2. प्रधानमंत्री की एक महत्वपूर्ण भूमिका या शक्ति
मंत्रिमंडल की बैठकों की अध्यक्षता के रूप में भी देखी जा सकती है। मंत्रिमंडल की
बैठक को बुलाना और उसकी अध्यक्षता करना प्रधानमंत्री का एक प्रमुख कार्य है और इस
बैठक के माध्यम से प्रधानमंत्री विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करता है।
3. प्रधानमंत्री का एक महत्वपूर्ण कार्य यह भी है कि वह
आवश्यकता पड़ने पर मंत्रियों को उनके पदों से हटाता भी है। जब कोई मंत्री अपने
विभाग में उचित तरह से कार्य नहीं करता है तो प्रधानमंत्री उस मंत्री को मंत्री पद
से हटा देता है।
4. प्रधानमंत्री की एक महत्वपूर्ण भूमिका को हम इस रूप में
भी देख सकते हैं कि भारत का प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल और राष्ट्रपति के बीच एक कड़ी
के रूप में कार्य करता है। प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को सरकार की सभी कार्यों की
जानकारी प्रदान करता रहता है।
5. प्रधानमंत्री सरकार का एक मुख्य वक्ता होता है और सरकार
की तरफ से सभी निर्णय और नीतियों का निर्धारण भी करता है।
6. भारत में प्रधानमंत्री वास्तविक रुप से शक्तियों को
इस्तेमाल करता है क्योंकि भारत में संसदीय कार्यपालिका को अपनाया गया है।
प्रधानमंत्री इस तरह से राष्ट्र के नेता के रूप में प्रतिबिंबित होता है और देश को
नेतृत्व प्रदान करता है।
प्रश्न
7.
राजनीतिक कार्यपालिका और स्थाई कार्यपालिका में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर. राजनीतिक कार्यपालिका और स्थाई
कार्यपालिका में कुछ प्रमुख अंतर इस प्रकार हैं -
1. राजनीतिक कार्यपालिका उस कार्यपालिका को कहते हैं
जिसमें सभी प्रकार के राजनेता शामिल होते हैं जबकि स्थाई कार्यपालिका के अंतर्गत
विभिन्न प्रकार के प्रशासनिक अधिकारी आते हैं।
2. राजनीतिक कार्यपालिका जनता के द्वारा चुनावों के माध्यम
से चुनी जाती है और सामान्यतः 5 वर्ष के बाद इनका कार्यकाल
पूर्ण हो जाता है जबकि स्थाई कार्यपालिका एक निश्चित परीक्षा के माध्यम से नियुक्त
होती है और सामान्यतः 60 वर्ष तक की आयु तक अपनी सेवाएं देती
है।
3. राजनीति कार्यपालिका को जहां अपने कार्यों में ज्यादा
अनुभव नहीं होता है और इतने कार्य कुशल भी नहीं होते हैं वही दूसरी तरफ स्थाई
कार्यपालिका अपने कार्यों में निपुण होती है तथा इन्हें अपने कार्य का विशेष अनुभव
भी होता है।
4. स्थाई कार्यपालिका जिसे हम नौकरशाही के नाम से भी जानते
हैं सरकार की विभिन्न नीतियों और कार्यक्रमों को जनता तक पहुंचाते हैं जबकि
राजनीतिक कार्यपालिका नीतियों और कार्यक्रमों को केवल बनाने तक का ही कार्य करते हैं।
प्रश्न
8.
राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर. भारत में राष्ट्रपति को मुख्य रूप
से राष्ट्र का प्रमुख बनाया गया है लेकिन शक्तियों के मामले में राष्ट्रपति काफी
कमजोर प्रतीत होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि राष्ट्रपति के पास किसी प्रकार की
कोई शक्तियां नहीं होती है राष्ट्रपति के पास कई प्रकार की शक्तियां होती है जिनमें
से कुछ इसकी आपातकालीन शक्तियों के रूप में भी दिखाई देती है। राष्ट्रपति की
आपातकालीन शक्तियों को हम इस प्रकार से समझ सकते हैं -
1. राष्ट्रीय आपातकाल - यदि देश में सशस्त्र विद्रोह हो
जाए अथवा किसी दूसरे देश के साथ युद्ध हो जाए तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति मंत्री
परिषद की लिखित सूचना के बाद देश में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है। देश
में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के माध्यम से की जाती है।
2. राज्य आपातकाल - यदि किसी राज्य में ऐसा प्रतीत होता है
कि शासन संविधान के अनुसार नहीं चलाया जा रहा है अर्थात संविधानिक तंत्र विफल हो
गया है तब ऐसी स्थिति में राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर राष्ट्रपति उस राज्य में
राष्ट्रपति शासन या राज्य आपातकाल की घोषणा कर सकता है। भारत में राष्ट्रपति शासन
जिसे राज्य आपातकाल के नाम से भी जानते हैं कई राज्यों में कई बार लगाया जा चुका
है।
3. वित्तिय आपातकाल - यदि राष्ट्रपति को ऐसा आभास होता है
कि देश में वित्तीय संकट उत्पन्न हो गया है तब ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रपति
मंत्रिमंडल की लिखित सिफारिश के बाद देश में वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है
और यह तब तक लागू रह सकती है जब तक देश में वित्तीय स्थिति सामान्य नहीं हो जाती।
भारत में अभी तक वित्तीय आपातकाल की घोषणा नहीं की गई है।
प्रश्न
9.
संसदीय और अध्यक्षात्मक कार्यपालिका में प्रमुख अंतर बताइए।
उत्तर. संसदीय और अध्यक्षात्मक कार्यपालिका
में कुछ प्रमुख अंतर इस प्रकार हैं -
1. संसदीय कार्यपालिका में देश का प्रमुख राजा/रानी या
राष्ट्रपति होता है जबकि अध्यक्षात्मक कार्यपालिका में देश का प्रधान राष्ट्रपति
ही होता है।
2. संसदीय कार्यपालिका में सरकार का प्रमुख प्रधानमंत्री
होता है और वही शक्तियों का प्रयोग भी करता है जबकि अध्यक्षात्मक कार्यपालिका में
सरकार का प्रमुख भी राष्ट्रपति ही होता है और वही वास्तविक रुप से शक्तियों का
प्रयोग भी करता है।
3. संसदीय कार्यपालिका में प्रधानमंत्री संसद अर्थात विधायिका के प्रति उत्तरदाई होता
है जबकि अध्यक्षात्मक कार्यपालिका में राष्ट्रपति संसद या विधायिका के प्रति
उत्तरदाई नहीं होता।
4. संसदीय कार्यपालिका में प्रधानमंत्री बहुमत दल का नेता
होता है जबकि अध्यक्षात्मक कार्यपालिका में राष्ट्रपति का निर्वाचन जनता के द्वारा
आम तौर पर प्रत्यक्ष रूप से होता है।
5. संसदीय कार्यपालिका वाले प्रमुख देशों में भारत और
ब्रिटेन आते हैं जबकि अध्यक्षात्मक कार्यपालिका वाले देशों की सूची में अमेरिका और
ब्राजील प्रमुख देश है।
प्रश्न
10.
भारत में राष्ट्रपति की विशेष शक्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर. भारत में राष्ट्रपति वैसे तो
औपचारिक प्रधान की भूमिका निभाता है लेकिन यह कहना गलत होगा कि राष्ट्रपति को किसी
भी प्रकार के विशेष अधिकार प्राप्त नहीं है। राष्ट्रपति को कई प्रकार के विशेष
अधिकार भी प्राप्त हैं जिन्हें हम निम्न बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं -
1. संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति को सभी महत्व मुद्दों और
मंत्री परिषद की कार्यवाही के बारे में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है।
प्रधानमंत्री का यह दायित्व है कि वह राष्ट्रपति द्वारा मांगी गई सभी सूचनाएं उसे
प्रदान करें।
2. राष्ट्रपति को एक विशेषाधिकार यह भी प्राप्त है कि वह
संसद द्वारा पारित किसी भी विधेयक को वापस लौटा सकता है और उस पर पुनर्विचार के
लिए कह सकता है। इस प्रक्रिया में राष्ट्रपति अपने स्वविवेक का प्रयोग करता है।
हालांकि एक बार पुनः राष्ट्रपति किसी भी विधेयक को वापस नहीं लौटा सकता है और उसे
हस्ताक्षर करने होते हैं।
2. राष्ट्रपति को एक विशेषाधिकार यह भी प्राप्त है कि वह
संसद द्वारा पारित विधेयक को वापस करने में विलंब कर सकता है या पॉकेट वीटो का
इस्तेमाल भी कर सकता है। इसका मतलब यह है कि राष्ट्रपति किसी भी विधेयक को कितने
समय तक भी अपने पास रख सकता है और इसके लिए संविधान में किसी प्रकार का कोई समय
निर्धारित भी नहीं है। भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने इस प्रकार की
प्रक्रिया को वर्ष 1986 में अपनाया था।
4. राष्ट्रपति के एक विशेषाधिकार शक्ति का वर्णन हम यहां
पर भी देखते हैं कि जब लोकसभा में किसी भी राजनीतिक दल को बहुमत प्राप्त नहीं होता
है तब ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति अपने स्वविवेक का प्रयोग करते हुए किसी भी ऐसे
व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकता है जिस पर उसे विश्वास हो कि वह बाद में
बहुमत सिद्ध कर सकता है। इस परिस्थिति में राष्ट्रपति किसी भी व्यक्ति को
प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकता है। भारत में वर्ष 1989 के बाद
से इस प्रकार की परिस्थितियां कई बार उत्पन्न हुई है।
प्रश्न
11.
भारत में संसद की प्रमुख शक्तियों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर. संसद - भारत में लोकसभा राज्यसभा और
राष्ट्रपति से मिलकर के संसद का निर्माण होता है और यह संसद देश के लिए कानूनों का
निर्माण करती है। संसद की विभिन्न शक्तियों और कार्यों को हम निम्नलिखित बिंदुओं
के माध्यम से समझ सकते हैं -
1. विधायी शक्तियां - संसद का एक प्रमुख कार्य देश के लिए
कानूनों का निर्माण करना होता है। संसद का एक प्रमुख कार्य आवश्यकता पड़ने पर
कानूनों का निर्माण करना होता है और नीति निर्धारण करना भी होता है। मंत्रिपरिषद
के माध्यम से विधेयक संसद में प्रस्तुत किए जाते हैं और उस पर चर्चा करने के बाद
उसे कानून का रूप दिया जाता है।
2. संसद के प्रमुख कार्य कार्यपालिका पर नियंत्रण रखना भी
होता है। संसद का यह सबसे महत्वपूर्ण कार्य है कि वह कार्यपालिका पर अच्छी तरह से
नियंत्रण बनाए रखें और उसे उत्तरदाई भी बनाए रखें।
3. संसद का एक प्रमुख कार्य वित्तीय कार्यों का संपादन
करना भी है। सरकार को ऐसे बहुत सारे कार्यों को करना पड़ता है जिनके लिए धन की
आवश्यकता होती है। संसद प्रत्येक वर्ष बजट का निर्माण करती है और देश के आए और
खर्चों का निर्धारण भी इस बजट के माध्यम से किया जाता है।
4. संसद संपूर्ण देश का प्रतिनिधित्व करती है यह विभिन्न
प्रकार के क्षेत्रीय सामाजिक आर्थिक और धार्मिक समूहों के अलग-अलग विचारों का
प्रतिनिधित्व करती है।
5. संसद का एक महत्वपूर्ण कार्य यह भी है कि यह विभिन्न
महत्वपूर्ण मुद्दों पर वाद विवाद और बहस के लिए मंच प्रदान करती है। देश में
आवश्यकता पड़ने पर विभिन्न प्रकार के मुद्दों पर संसद में बहस होती है और निष्कर्ष
के रूप में कानूनों का निर्माण भी कराया जाता है।
6. संसद का एक महत्वपूर्ण कार्य संविधान संशोधन करना भी
होता है। संविधान में जब भी आवश्यकता पड़ने पर संशोधन करना होता है तो संसद इस
कार्य का संपादन करती है। संविधान संशोधन विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत
किया जा सकता है।
7. संसद का एक महत्वपूर्ण कार्य और शक्ति विभिन्न प्रकार
के निर्वाचन संबंधी कार्य के रूप में भी देखी जा सकती है। भारत में संसद विभिन्न
प्रकार के चुनाव संबंधी कार्यों को भी करती है जैसे कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति
के चुनाव का कार्य करना।
8. भारत में संसद न्यायिक कार्यों का संपादन भी करती है।
जब कभी राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति को उनके पदों से हटाना पड़ता है या फिर
सर्वोच्च और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उनके पद से हटाना होता है तब ऐसी
परिस्थिति में संसद इन प्रस्तावों पर चर्चा करती है और यदि प्रस्ताव पारित हो जाता
है तो उन व्यक्तियों को पदों से हटाया भी जाता है।
प्रश्न
12.
विधायिका किस प्रकार से कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है? व्याख्या कीजिए।
अथवा
मंत्री
परिषद पर संसदीय नियंत्रण की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
उत्तर. भारत में संसदीय कार्यपालिका अपनाई
गई है जिसके अंतर्गत मंत्री परिषद सभी शक्तियों का प्रयोग करती है और राष्ट्रपति
संविधानिक प्रमुख होता है। कार्यपालिका अर्थात मंत्री परिषद के ऊपर संसद कई प्रकार
से नियंत्रण रखती है जिसके कुछ तरीके इस प्रकार हैं -
1. संसद के सदस्य मंत्रियो से उनके विभागों के संदर्भ में
विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछते हैं और मंत्रियों को उन प्रश्नों के उत्तर देने
होते हैं। इस तरह से मंत्री परिषद पर नियंत्रण बना रहता है।
2. काम रुको प्रस्ताव के माध्यम से भी संसद मंत्री परिषद
पर नियंत्रण बनाए रखती है। जब कभी किसी गंभीर समस्या या मुद्दे पर विचार करना होता
है तो संसद सदस्य काम रोको प्रस्ताव के माध्यम से सभी प्रक्रियाओं को रोक देते हैं
और उस समस्या पर विचार किया जाता है तथा सरकार से जवाब भी मांगा जाता है।
3. ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से भी संसद मंत्री
परिषद पर नियंत्रण बनाए रखती है। ध्यानाकर्षण प्रस्ताव संसद का कोई भी सदस्य
प्रस्तुत कर सकता है और इसका उद्देश्य सरकार को किसी गंभीर या किसी विशेष मुद्दे
पर ध्यान दिलाना होता है और उनसे उस संदर्भ में जवाब भी मांगा जाता है।
4. संसद अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से जो कि केवल लोकसभा
में प्रस्तुत किया जाता है मंत्री परिषद को हटा भी सकती है। यदि लोकसभा को यह
प्रतीत होता है कि मंत्रिमंडल सही से कार्य नहीं कर रहा है और उसके खिलाफ अविश्वास
प्रस्ताव पारित हो चुका है तो मंत्रिमंडल को हटा दिया जाता है।
5. संसद मंत्रिपरिषद पर वित्तीय नियंत्रण भी बनाए रखती है।
संसद सरकार द्वारा प्रस्तुत किए गए बजट को स्वीकृति देती है और 1 वर्ष के आय और व्यय की सूची को देखती है। सरकार द्वारा जब भी कभी विभिन्न
प्रकार की योजनाओं के लिए धन से संबंधित कोई विधेयक प्रस्तुत किया जाता है तो
विधायिका उस बिल पर बहस और चर्चा करके मंत्री परिषद से जवाब मांगती है।
प्रश्न
13.
न्यायपालिका की स्वतंत्रता से आप क्या समझते हैं? भारतीय संविधान के ऐसे प्रावधानों का वर्णन कीजिए जो न्यायपालिका की
स्वतंत्रता को सुनिश्चित करते हैं।
उत्तर. न्यायपालिका की स्वतंत्रता का
साधारण सा अर्थ है न्यायाधीशों द्वारा बिना किसी दबाव या भय के अपने निर्णय को
देना। जब न्यायाधीश बिना किसी बाहरी दबाव या नियंत्रण के अपने कार्यों को करते हैं
तो इसे ही न्यायपालिका की स्वतंत्रता कहते हैं। भारतीय संविधान में ऐसे बहुत सारे
प्रावधानों को शामिल किया गया है जिनसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित होती
है। ऐसे कुछ प्रावधान इस प्रकार हैं -
1. न्यायाधीशों की नियुक्ति में किसी भी प्रकार के
विधायिका के हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया गया है।
2. न्यायाधीशों के लिए वकालत और कानून का विशेषज्ञ होना एक
आवश्यक शर्त बनाई गई है जिससे कि वे अपने कार्यों का बेहतर तरीके से निष्पादन कर
सके।
3. न्यायाधीशों की नियुक्ति एक निश्चित अवधि के लिए की
जाती है जैसे कि सर्वोच्च न्यायालय में 65 वर्ष तक न्यायाधीश
कार्य कर सकते हैं और उन्हें इसके पहले हटाया नहीं जा सकता है।
4. न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया बहुत कठिन है और
इन्हें केवल महाभियोग की प्रक्रिया के माध्यम से ही हटाया जा सकता है। जब कभी किसी
न्यायाधीश पर कदाचार के आरोप लगते हैं तो संसद उन आरोपों की जांच करती है और यदि
वे आरोप सही पाए जाते हैं तो न्यायाधीशों को महाभियोग की प्रक्रिया से हटाया जाता
है। बाकी किसी भी प्रक्रिया से न्यायाधीशों को उनके पद से हटाया नहीं जा सकता।
5. न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते संचित निधि से दिए जाते
हैं और उनके वेतन और भत्ते विधायिका कम नहीं कर सकती है।
6. न्यायपालिका के किसी भी कार्य और निर्णय की आलोचना कहीं
भी नहीं की जा सकती है।
7. यदि कोई व्यक्ति न्यायालय की अवमानना करता है तो उस
व्यक्ति पर उचित कार्यवाही की जाती है और उसे दंड दिया जाता है।
8. संसद में न्यायपालिका के किसी भी निर्णय या आचरण पर
चर्चा नहीं की जा सकती है। संसद में केवल महाभियोग की प्रक्रिया पर ही चर्चा हो सकती है।
प्रश्न
14.
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार का वर्णन
कीजिए।
उत्तर. भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के
क्षेत्राधिकार काफी विस्तृत हैं। सर्वोच्च न्यायालय के प्रारंभिक या मौलिक क्षेत्र
अधिकार का अर्थ यह होता है कि ऐसे मामले जिन्हें केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही
शुरू किया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार को हम इस
प्रकार से समझ सकते हैं -
1. दो या दो से अधिक राज्यों के बीच होने वाले किसी भी
विवाद का निर्णय केवल सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ही किया जाता है।
2. केंद्र सरकार और एक या एक से अधिक राज्य सरकारों के बीच
में होने वाले मतभेदों और विवादों को केवल सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा ही सुलझाया
जाता है।
3. विभिन्न राज्यों के बीच नदियों के जल के बंटवारे से
संबंधित विवादों को भी सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा ही सुना जाता है।
4. मौलिक अधिकारों से जुड़े मामलों को भी सीधे सर्वोच्च
न्यायालय में सुना जा सकता है।
प्रश्न
15.
भारतीय संविधान में वर्णित कुछ ऐसे प्रावधानों का वर्णन कीजिए जिनसे
यह पता चलता है वह कि भारत में संघवाद होने के बावजूद केंद्र अधिक शक्तिशाली है।
अथवा
भारत
में राज्यों की तुलना में संघ सरकार अधिक शक्तिशाली है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर. भारत में संघीय शासन प्रणाली को
अपनाया गया है और यहां पर शक्तियों का विभाजन किया गया है। भारत में केंद्र सरकार
राज्य सरकार और स्थानीय सरकारों की व्यवस्था की गई है जिससे की शक्तियों का विभाजन
बेहतर तरीके से किया जा सके। इसके बावजूद भी भारतीय संविधान में कुछ ऐसे प्रावधान
है जिन से यह साबित होता है कि भारत में राज्य सरकारों की तुलना में संघ सरकार
अधिक शक्तिशाली है। ऐसे कुछ प्रमुख प्रावधान इस प्रकार है -
1. भारत में विषयों का विभाजन तीन सूचियों के माध्यम से
किया गया है जिन्हें संघ सूची राज्य सूची और समवर्ती सूची के नाम से जाना जाता है।
इन सब में सबसे महत्वपूर्ण विषयों को संघ सूची के विषयों में डाला गया है जो
दर्शाते हैं कि संघ सरकार अधिक महत्वपूर्ण है।
2. विषयों के इन तीन सूचियों के अलावा जब भी किसी नए विषय
पर कानून बनाना होता है जिसे अवशिष्ट विषय के नाम से जानते हैं तो उस पर केवल
केंद्र सरकार ही कानून बना सकती है।
3. समवर्ती सूची के विषय पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार
दोनों ही कानून बना सकती हैं लेकिन यदि समवर्ती सूची के किसी विषय पर राज्य सरकार
और केंद्र सरकार दोनों कानून बनाती है तो केवल केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया
कानूनी मान्य होता है।
4. भारतीय संविधान में संशोधन करने की शक्ति संसद को दी गई
है केवल कुछ विषयों में राज्यों की सहमति आवश्यक होती है इसके अलावा सभी विषयों पर
संशोधन करने की शक्ति संसद को दी गई है जो केंद्र की शक्ति को दर्शाता है।
5. अखिल भारतीय सेवा के माध्यम से नियुक्त किए जाने वाले
अधिकारी केंद्र सरकार के नियंत्रण में होते हैं और इन अधिकारियों की नियुक्ति भारत
के किसी भी राज्य में की जाती है। ये सभी अधिकारी केंद्र सरकार के निर्देशों का
पालन करते हैं।
6. राज्यों में राज्यपाल की नियुक्ति भी केंद्र सरकार को
सशक्त बनाती है। राज्यपाल राष्ट्रपति के द्वारा नियुक्त होता है और सरकार को
विभिन्न जानकारियां प्रदान करता है। कभी-कभी राज्यपाल को केंद्र सरकार का एजेंट भी
कहा जाता है।
7. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 249 के
माध्यम से यदि राज्यसभा किसी राज्य सूची के विषय को महत्वपूर्ण घोषित कर देती है
तो उस पर कानून बनाने का अधिकार केवल संसद को हो जाता है।
प्रश्न
16.
संघात्मक शासन के आवश्यक तत्वों का वर्णन कीजिए।
अथवा
संघात्मक
सरकार की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर. किसी भी ऐसे देश को संघीय व्यवस्था
वाला देश कहते हैं जहां पर शक्तियों का विभाजन होता है। भारत भी एक संघीय व्यवस्था
वाला देश है और यहां पर सरकार 3 स्तर पर विभाजित है। संघात्मक सरकार के कुछ आवश्यक तत्व
या विशेषताएं इस प्रकार हैं -
1. संघात्मक शासन व्यवस्था का एक प्रमुख लक्षण शक्तियों का
विभाजन होता है। भारत में संघीय शासन व्यवस्था है क्योंकि भारत में शक्तियों के
तीन सूचियां बनाई गई है संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती
सूची।
2. संघात्मक शासन व्यवस्था में एक लिखित संविधान पाया जाता
है। भारत में संघीय शासन व्यवस्था है और यहां पर एक लिखित संविधान भी है। भारत का
संविधान विश्व का सर्वाधिक विशाल लिखित संविधान है।
3. संघीय शासन व्यवस्था की एक प्रमुख विशेषता संविधान की
सर्वोच्चता भी है। भारत में संघीय शासन व्यवस्था स्थापित की गई है और यहां पर
संविधान सर्वोच्च कानून है जिसका पालन सभी को अनिवार्य रूप से करना होता है।
4. स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका भी संघीय शासन
व्यवस्था का एक प्रमुख लक्षण या विशेषता है। भारत में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष
न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है जिसे बिना किसी बाहरी दबाव के अपने निर्णय और
कार्य करने की स्वतंत्रता दी गई है।
प्रश्न
17.
73वें संविधान संशोधन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
73वें
संविधान संशोधन के माध्यम से पंचायतों के संबंध में क्या-क्या प्रावधान किए गए हैं
?
उत्तर. स्थानीय शासन से संबंधित 73 वा संविधान संशोधन भारतीय
संसद ने वर्ष 1992 में पारित किया। 73वें
संविधान संशोधन का संबंध स्थानीय ग्रामीण शासन या पंचायती राज से है। 73वां संविधान संशोधन अधिनियम वर्ष 1993 में लागू हुआ।
इस संविधान संशोधन की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं -
1. 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारत में पंचायतों
के त्रिस्तरीय व्यवस्था को स्वीकार किया गया है। पहले स्तर पर ग्राम पंचायत होती
हैं दूसरे स्तर पर खंड या तालुका होती है तथा तीसरे पायदान पर जिला परिषद होती है।
73वें संविधान संशोधन के माध्यम से ग्राम सभा को अनिवार्य कर
दिया गया है।
2. प्रत्येक गांव में 1 ग्राम सभा का
गठन किया जाएगा और यह अनिवार्य रूप से गठित की जाएगी। ग्राम सभा में गांव के सभी
वयस्क मतदाता इसके सदस्य होंगे।
3. पंचायतों के चुनाव अनिवार्य रूप से प्रत्येक 5 वर्ष के बाद कराए जाने का प्रावधान भी किया गया है। यदि किसी पंचायत को 5 वर्ष से पूर्व भी भंग किया जाता है तो 6 महीने के
अंदर दोबारा से चुनाव कराने होंगे।
4. 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से पंचायती राज में
आरक्षण की व्यवस्था भी की गई है। पंचायतों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें
आरक्षित की गई हैं इसके साथ ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए उनकी
संख्या के अनुपात में सीटें आरक्षित की गई हैं।
5. 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से ग्रामीण स्थानीय
स्वशासन के लिए विषयों का भी प्रावधान किया गया है। ऐसे 29
विषय जो पहले राज्य सूची में शामिल थे उन्हें अब ग्रामीण स्थानीय शासन को
हस्तांतरित करने का प्रावधान भी किया गया है।
6. 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से एक राज्य चुनाव
आयुक्त की नियुक्ति का प्रावधान भी किया गया है जिसका दायित्व पंचायती चुनावों को
कराने का होगा। यह चुनाव आयुक्त स्वतंत्र और निष्पक्ष रुप से अपने कार्यों का
निष्पादन करेगा।
7. 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से एक राज्य वित्त आयोग
के गठन का प्रावधान भी किया गया है। यह आयोग राज्यों में मौजूदा स्थानीय शासन की
संस्थाओं की आर्थिक स्थिति का जायजा लेगा और स्थानीय शासन की संस्थाओं के बीच
राजस्व के बंटवारे का पुनरावलोकन भी करेगा।
प्रश्न
18.
राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन का क्या महत्व है?
उत्तर. राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन का
महत्व हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं -
1. राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन के प्रमुख महत्व यह है कि
यह देश के नागरिकों को जागरूक बनाने का एक महत्वपूर्ण कार्य करता है। राजनीतिक
सिद्धांत के माध्यम से देश के नागरिक जागरूक होते हैं और देश की शासन प्रक्रिया को
समझते हैं।
2. राजनीतिक सिद्धांत का अध्ययन इसलिए भी करना आवश्यक है
क्योंकि राजनीतिक सिद्धांत के माध्यम से हम भविष्य की समस्याओं का सफलतापूर्वक
समाधान निकाल सकते हैं। राजनीतिक सिद्धांत में विभिन्न प्रकार की समस्याओं के
समाधान में सहायता करता है।
3. राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन का एक महत्व यह भी है कि
यह व्यक्ति को तर्कसंगत निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है। राजनीतिक सिद्धांत
के माध्यम से व्यक्ति में तर्क करने की शक्ति आती है और वह सही गलत का निर्णय लेने
में सक्षम हो पाता है।
4. राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन का एक विशेष महत्व यह भी
है कि है लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए अति आवश्यक है। राजनीतिक सिद्धांत के
माध्यम से लोकतंत्र के विभिन्न आयामों को समझने में बहुत आसानी होती है।
5. राजनीतिक सिद्धांत के माध्यम से अन्य देशों के शासन
प्रणालियों का तुलनात्मक अध्ययन करने में बहुत सहायता होती है। राजनीतिक सिद्धांत
के माध्यम से हमें विभिन्न देशों की राजनीतिक प्रणालियों का ज्ञान होता है और हम
अपने देश की शासन प्रणाली को बेहतर करने के लिए विभिन्न सुधार कर पाते हैं।
6. राजनीतिक सिद्धांत के माध्यम से नागरिकों को अपने
अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान हो पाता है। देश के नागरिक अपने अधिकारों और
कर्तव्यों के बारे में जागरूक होते हैं और एक जिम्मेदार नागरिक बनते हैं।
प्रश्न
19.
लोकसभा के अध्यक्ष की शक्तियों और कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर. लोकसभा के अध्यक्ष को हम सामान्य
रूप से स्पीकर बुलाते हैं। लोकसभा का अध्यक्ष निम्नलिखित कार्यों को करता है -
1. लोकसभा अध्यक्ष का प्रमुख कार्य लोक सभा की बैठक की
अध्यक्षता करना होता है। लोकसभा अध्यक्ष सदन की कार्यवाही को संचालित करता है और
अनुशासन बनाए रखता है।
2. लोकसभा अध्यक्ष विभिन्न प्रकार के विधेयक को लोकसभा में
प्रस्तुत करने की आज्ञा देता है और उन पर चर्चा करने का आदेश भी देता है।
3. लोकसभा अध्यक्ष विभिन्न समितियों की अधिकारियों की
नियुक्ति भी करता है। लोकसभा की कई समितियां होती हैं और इन समितियों के अध्यक्षों
की नियुक्ति लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा ही होती हैं।
4. लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा में विभिन्न सदस्यों को भाषण
देने की अनुमति देता है तथा कौन सा सदस्य कब और कितना बोलेगा इसका निर्धारण भी
लोकसभा अध्यक्ष के द्वारा ही किया जाता है।
5. लोकसभा अध्यक्ष का एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य लोकसभा
के सदन की कार्यवाही को अनुशासनात्मक तरीके से संचालित करना होता है और इसके लिए
लोकसभा अध्यक्ष विभिन्न प्रकार के तरीकों को प्रयोग में लाता है।
6. लोकसभा अध्यक्ष यह भी निर्धारित करता है कि कौन सा
विधेयक साधारण विधेयक है और कौन सा विधेयक धन विधेयक है। लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय
अंतिम माना जाता है।
7. जब कभी लोकसभा में किसी विधेयक पर बराबर मतदान की
स्थिति उत्पन्न हो जाती है तब लोकसभा का अध्यक्ष अपना निर्णायक मत का प्रयोग करता
है जिससे कि निर्णय पूरा किया जा सके।
8. लोकसभा का अध्यक्ष विभिन्न प्रकार के विधेयक पर मतदान
की प्रक्रिया को पूरा कर आता है और अध्यक्ष ही यह निर्णय करता है कि कौन सा विधेयक
पारित हो गया और कौन सा विधेयक पारित नहीं हुआ है।
प्रश्न
20. अनुच्छेद 257 (1) का संबंध किससे है?
उत्तर. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 257 (1) में निम्नलिखित
व्यवस्था की गई है -
1. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 257 (1) के अनुसार प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका की शक्ति का प्रयोग इस प्रकार
किया जाएगा जिससे यह संघ की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में कोई बाधा ना बने या
कोई प्रतिकूल प्रभाव ना डालें।
2. इसके साथ ही केंद्र सरकार आवश्यकता अनुसार राज्य सरकार
को इस संबंध में दिशानिर्देश भी दे सकती है।
3. यदि राज्य सरकार अनुच्छेद 257 (1) के तहत केंद्र सरकार द्वारा दिए गए आदेश का पालन करने में असफल रहती है या
उसे प्रभावी रूप से लागू कराने में असफल रहती है तो इस स्थिति में राष्ट्रपति को
संबंधित राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार है।
प्रश्न
22. भारतीय संसदीय चुनाव में कौन सी चुनाव पद्धति अपनाई जाती है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर. लोक सभा के निर्वाचन - भारत में
लोकसभा के चुनाव में सर्वाधिक मत से जीत वाली प्रणाली अपनाई जाती है। इसका मतलब है
कि भारत में लोकसभा के चुनाव हर 5 वर्ष में कराए जाते हैं और कोई भी व्यक्ति जो 5 वर्ष की आयु पूरी कर चुका है उम्मीदवार के रूप में नामांकन करा सकता है।
प्रत्येक भारतीय मतदाता लोकसभा के चुनाव में अपने-अपने क्षेत्रों में मतदान करते
हैं और अपने मनपसंद उम्मीदवार का चयन करते हैं इस तरह से लोकसभा के चुनाव की
प्रक्रिया को पूर्ण कराया जाता है। लोकसभा के चुनावों में जिस प्रतिनिधि को सबसे
ज्यादा मत प्राप्त होते हैं वह प्रतिनिधि विजई घोषित किया जाता है।
राज्य सभा के निर्वाचन - राज्यसभा भारत की
संसद का द्वितीय सदन है और इसे उच्च सदन भी कहते हैं। राज्यसभा के सदस्यों का
निर्वाचन भारतीय चुनाव आयोग के द्वारा कराया जाता है और राज्यसभा के सदस्यों का
निर्वाचन 6 वर्षों के लिए होता है। राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन राज्यों की
विधानसभाओं के सदस्यों के द्वारा होता है। राज्यसभा में प्रत्येक राज्य की सीटें
निर्धारित की गई हैं।
प्रश्न
23.
राष्ट्रपति के किन्हीं तीन विशेष अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर. राष्ट्रपति भारत में कार्यपालिका का
प्रधान होता है और देश के समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम से संचालित होते हैं।
राष्ट्रपति की कुछ विशेष शक्तियां होती हैं जिन्हें हम विशेषाधिकार भी कहते हैं।
इनमें से कुछ विशेषाधिकार इस प्रकार हैं -
1. राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह को वापस लौटा सकता है
और उसे अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है। ऐसा करने पर राष्ट्रपति
अपने विवेक का प्रयोग करता है। जब कभी राष्ट्रपति को ऐसा लगता है कि कोई विधेयक
पूर्ण नहीं है या उसमें कोई त्रुटि है या फिर यह फैसला देश के हित में नहीं है तो
वह मंत्री परिषद से अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है। यद्यपि
मंत्री परिषद पुनर्विचार के बाद भी उसे वही विधेयक वापस भेज सकती है तब राष्ट्रपति
को उस विधेयक पर हस्ताक्षर करने पढ़ते हैं लेकिन राष्ट्रपति द्वारा किसी विधेयक को
वापस लौटाना अपने आप में मायने रखता है।
2. राष्ट्रपति की दूसरी विशेष शक्ति उसके पास वीटो शक्ति
का होना भी है। राष्ट्रपति किसी भी विधेयक को लेकिन वह धन विधेयक नहीं होना चाहिए
को वापस लौटा सकता है या अपने पास रख सकता है बिना स्वीकृति दिए। भारत के संविधान
में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि राष्ट्रपति को एक निश्चित समय सीमा में किसी
विधेयक को वापस लौटाना होगा। इसका मतलब यह हुआ कि जब राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर
अपनी स्वीकृति नहीं देनी होती है तो वह उस विधेयक को स्वीकृति देने में विलंब करने
लगता है और जब राष्ट्रपति इस तरह का व्यवहार करता है तो इसे पॉकेट वीटो का नाम
दिया जाता है। वर्ष 1986 में राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने
डाक संशोधन विधेयक पर इसी तरह का व्यवहार किया था।
3. राष्ट्रपति का तीसरा विशेषाधिकार तब देखने को मिलता है
जब लोकसभा में किसी भी राजनीतिक दल को बहुमत प्राप्त नहीं होता है और सरकार बनाने
के लिए कोई भी राजनीतिक दल बहुमत सिद्ध नहीं कर पाता है। ऐसी परिस्थिति में
राष्ट्रपति अपने स्वविवेक का प्रयोग करता है और लोकसभा में जिस राजनीतिक दल के
नेता पर उसे सबसे ज्यादा भरोसा होता है उसे सरकार बनाने का आमंत्रण देता है तथा
बहुमत सिद्ध करने का समय देता है। वर्ष 1989 से भारत में
गठबंधन की सरकार का दौर शुरू हुआ और इसके बाद से किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट
बहुमत नहीं मिला ऐसी परिस्थिति में कई बार राष्ट्रपति को अपने स्वविवेक का प्रयोग
करना पड़ा।
इस तरह से हम कह सकते हैं कि भारत में
राष्ट्रपति के पास में कई प्रकार की विशेष शक्तियां भी हैं।
प्रश्न
24. मंत्री परिषद के प्रधान के रूप में प्रधानमंत्री की किन्हीं तीन
भूमिकाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर. भारत में संसदीय कार्यपालिका को
अपनाया गया है इसका अर्थ यह है कि भारत में वास्तविक रुप से शक्तियों का प्रयोग
प्रधानमंत्री अपनी मंत्रिपरिषद की सहायता से करता है। प्रधानमंत्री की मंत्री
परिषद के प्रधान के रूप में भूमिका को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ
सकते हैं -
1. भारत में प्रधानमंत्री का सरकार में स्थान सर्वोपरि है।
बिना प्रधानमंत्री के मंत्रिपरिषद का कोई अस्तित्व नहीं होता है। मंत्री परिषद तभी
अस्तित्व में आती है जब प्रधानमंत्री अपने पद की शपथ ग्रहण कर लेता है।
2. मंत्री परिषद के प्रधान के रूप में प्रधानमंत्री
मंत्रिपरिषद में तालमेल बनाए रखता है तथा सभी मंत्रियों में सामंजस्य बनाए रखने के
लिए कार्य करता है। प्रधानमंत्री की यह विशेष जिम्मेदारी होती है कि मंत्री परिषद
के सभी मंत्री अपने कार्यों के प्रति गंभीर रहें और सरकार की नीतियों और कार्यों
का समर्थन करते रहे।
3. प्रधानमंत्री मंत्री परिषद के प्रधान के रूप में यह भी
तय करता है कि किस व्यक्ति को कौन सा मंत्रालय देना है और किस मंत्री को पद से
हटाना है। प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी होती है कि वह मंत्री परिषद का निर्माण सोच
समझकर करें जिससे कि सरकार के संचालन में सुविधा रहे।
4. मंत्री परिषद के प्रधान के रूप में प्रधानमंत्री की यह
जिम्मेदारी भी होती है कि वह अपने सभी कार्यों की जानकारी राष्ट्रपति को उपलब्ध
कराएं। प्रधानमंत्री सरकार के सभी कार्यों में शामिल होता है। प्रधानमंत्री सरकार
के सभी महत्वपूर्ण निर्णय में सम्मिलित होता है और सरकार की नीतियों के बारे में
निर्णय भी लेता है।
प्रश्न
25.
संविधान निर्माण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर. संविधान किसी भी देश का सर्वोच्च और
मौलिक कानून होता है जिसका पालन करना सभी को अनिवार्य होता है। भारत में एक लिखित
संविधान है जिसे एक संविधान सभा के द्वारा बनाया गया था।
संविधान निर्माण प्रक्रिया - भारत के
संविधान का निर्माण कैबिनेट मिशन की सिफारिशों पर एक संविधान सभा के द्वारा बनना
तय हुआ था। भारत का संविधान 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन में बनकर तैयार हुआ था। भारत के संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को संपन्न हुई थी जिसमें डॉ सच्चिदानंद
सिन्हा संविधान सभा के अध्यक्ष थे बाद में डॉ राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का
स्थाई अध्यक्ष बनाया गया था। भारतीय संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई थी। विभाजन के बाद भारत के
संविधान सभा की बैठक फिर से हुई। संविधान सभा के सदस्य 1935
में स्थापित प्रांतीय विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष विधि से चुने गए
थे। 3 जून 1947 की योजना के अनुसार
विभाजन के बाद वे सभी प्रतिनिधि संविधान सभा के सदस्य नहीं रहे जो पाकिस्तान के
चित्रों से चुनकर आए थे। संविधान सभा के वास्तविक सदस्यों की संख्या घटकर 299 रह गई। इनमें से 26 नवंबर 1949 को कुल 284 सदस्य उपस्थित थे। इन्होंने ही अंतिम
रूप से पारित संविधान पर अपने हस्ताक्षर किए थे।
संविधान सभा में सभी निर्णय बहुमत से लिए
जाते थे और बातचीत और विचार विमर्श के बाद ही किसी प्रावधान को संविधान में जोड़ा
जाता था। संविधान सभा ने कई प्रकार की समितियां भी बनाई थी जिनका कार्य संविधान की
गहनता से जांच करना था। भारतीय संविधान सभा ने एक लंबे विचार-विमर्श के बाद लगभग 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन की अवधि के बाद जिसमें 166 दिनों तक बैठक चली, संविधान का निर्माण कर दिया।
संविधान सभा के सत्र अखबारों और आम लोगों के लिए खुले हुए थे।
प्रश्न
26. स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का क्या महत्व है?
उत्तर. भारतीय संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक मौलिक अधिकारों का प्रावधान किया गया है।
भारतीय संविधान में मूल रूप से छह मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है। प्रारंभ
में 7 मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई थी लेकिन बाद में
संपत्ति के मौलिक अधिकार को मौलिक अधिकारों से हटा करके केवल वैधानिक अधिकार बना
दिया गया है और इस तरह से अब भारतीय संविधान में 6 मौलिक
अधिकारों की व्यवस्था है। इन मौलिक अधिकारों में स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार भी
बहुत महत्वपूर्ण अधिकार है।
स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार - स्वतंत्रता
का मौलिक अधिकार एक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है और यह अधिकार अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22 तक है।
प्रमुख 6 स्वतंत्रता - संविधान के
अनुच्छेद 19 में भारतीय नागरिकों को प्रमुख 6 स्वतंत्रता दी गई है जो कि इस प्रकार है -
1. वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
2. शांतिपूर्ण ढंग से जमा होने और सम्मेलन की स्वतंत्रता।
3. संगठन या संघ बनाने की स्वतंत्रता।
4. भारत के किसी भी राज्य क्षेत्र में आने जाने की
स्वतंत्रता।
5. भारत के किसी भी राज्य क्षेत्र में निवास करने एवं बस
जाने की स्वतंत्रता। 6. कोई वृत्ति, आजीविका,
व्यापार या कारोबार करने की स्वतंत्रता।
दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण - संविधान
के अनुच्छेद 20 में अपराधों के दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण प्रदान किया गया है। इस
अनुच्छेद के माध्यम से यह निश्चित किया गया है कि किसी भी व्यक्ति को स्वयं के
विरुद्ध गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा, कानून के
अलावा किसी अन्य विधि से दंडित नहीं किया जाएगा, एक ही
व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार सजा नहीं दी जाएगी।
प्राण और दैहिक स्वतंत्रता - संविधान के
अनुच्छेद 21 में स्पष्ट रूप से यह वर्णित किया गया है कि किसी व्यक्ति को उसके प्राण
एवं दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया
जाएगा, अन्यथा नहीं।
शिक्षा का अधिकार - भारतीय संविधान के
अनुच्छेद 21a में शिक्षा के अधिकार की व्यवस्था की गई है। यह अधिकार 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा भारत के
संविधान में जोड़ा गया है जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राज्य 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निशुल्क शिक्षा
की व्यवस्था करेगा।
गिरफ्तारी और निवारक निरोध से संरक्षण-
अनुच्छेद 22 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता
है तो उससे शीघ्र गिरफ्तार किए जाने का कारण बताया जाना चाहिए, उसे अपना मनपसंद वकील करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, उसे 24 घंटे में मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत करना चाहिए।
यदि किसी व्यक्ति को निवारक नजरबंदी के तहत
गिरफ्तार किया जाता है जिसमें अपराध करने से पहले व्यक्ति को रोका जाता है तब भी
व्यक्ति को शीघ्र ही गिरफ्तार किए जाने का कारण बताया जाना चाहिए और ऐसे व्यक्ति
को 3
माह तक ही नजरबंद किया जा सकता है।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि स्वतंत्रता
का अधिकार भारतीय संविधान में एक बहुत ही महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है।
प्रश्न
27.
एकसदनीय और द्विसदनीय विधायिका में क्या अंतर है?
उत्तर. जब किसी देश की विधायिका में केवल
एक ही सदन होता है तो इसे एकसदनीय विधायिका कहते हैं। वही जब देश की विधायिका में
दो सदन होते हैं तो इसे द्विसदनीय विधायिका कहते हैं। एकसदनीय और द्विसदनीय
विधायिका में कुछ प्रमुख अंतर इस प्रकार हैं -
1. एकसदनीय विधायिका में संसद के केवल एक ही सदन को सभी
जिम्मेदारियां और शक्तियां प्राप्त होती हैं जबकि द्विसदनीय विधायिका में दोनों
सदनों को जिम्मेदारी और शक्तियां प्राप्त होती है।
2. एकसदनीय विधायिका मुख्य रूप से ऐसे देशों में देखने को
मिलती है जहां पर सरकार का रूप एकात्मक प्रणाली पर आधारित होता है जबकि द्विसदनीय
प्रणाली आम तौर पर उन देशों में देखने को मिलती है जहां पर सरकार का स्वरूप संघीय
व्यवस्था पर आधारित होता है।
3. एकसदनीय प्रणाली में आमतौर पर देखा जाता है कि निर्णय
लेने की प्रक्रिया की दक्षता आमतौर पर विधायिका की द्विसदनीय प्रणाली की तुलना में
अधिक तीव्र होती है।
4. एकसदनीय विधायिका में संघर्ष की संभावना ना के बराबर
होती है जबकि द्विसदनीय विधायिका में संघर्ष की संभावना अधिक होती है।
5. एकसदनीय विधायिका में समय और धन दोनों की बचत होती है
जबकि द्विसदनीय विधायिका में समय भी अधिक लगता है और धन भी अधिक खर्च होता है।
प्रश्न
28. संसद की संरचना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर. संसद - देश की सबसे बड़ी कानून
बनाने वाली संस्था को संसद कहा जाता है। भारत की संसद का निर्माण लोकसभा राज्यसभा
और राष्ट्रपति के मिलने से होता है। संसद के मुख्य रूप से तीन अंग होते हैं। संसद
की संरचना को हम किस प्रकार से समझ सकते हैं -
1. लोकसभा - भारतीय संसद का एक प्रमुख अंग लोकसभा है यह
संसद का प्रथम सदन है और निचला सदन भी कहलाता है। लोकसभा के चुनाव प्रत्येक 5 वर्ष में होते हैं और इनके सदस्यों का चुनाव जनता के द्वारा किया जाता
है। लोकसभा के वर्तमान सदस्य 545 हैं।
2. राज्य सभा - भारतीय संसद का दूसरा और महत्वपूर्ण सदन
राज्यसभा है इसे द्वितीय सदन तथा उच्च सदन भी कहते हैं। राज्यसभा के सदस्यों का
चुनाव राज्य की विधानसभाओं के सदस्य करते हैं जोकि 6 वर्ष के
लिए होता है। राज्य सभा की अधिकतम सदस्य संख्या 250 है।
राज्यसभा कभी भी भंग नहीं होती।
3. राष्ट्रपति - भारतीय संसद का तीसरा और महत्वपूर्ण अंग
राष्ट्रपति होता है। लोकसभा और राज्यसभा के बाद कोई भी विधेयक राष्ट्रपति के पास
हस्ताक्षर के लिए जाता है और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करने के बाद वह विधेयक
क़ानून का रूप धारण कर लेता है। राष्ट्रपति का निर्वाचन संसद और विधानसभा के
निर्वाचित सदस्यों के द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति की न्यूनतम आयु 35 वर्ष है तथा राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष
निर्धारित है।
प्रश्न
29.
संघवाद की मुख्य विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर. संघवाद शासन की ऐसी प्रणाली होती है
जिसमें शक्तियों का या सरकार का दो या दो से अधिक स्तरों पर विभाजन होता है।
संघवाद की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं -
1. संघीय शासन प्रणाली में सरकार दो या दो से अधिक स्तरों
पर विभाजित होती है अर्थात संघीय शासन प्रणाली में केंद्र सरकार और राज्य सरकार
दोनों होती हैं और कहीं-कहीं पर स्थानीय सरकार भी देखने को मिलती है।
2. संघवाद का एक प्रमुख लक्षण या विशेषता यह भी है कि
इसमें एक लिखित संविधान पाया जाता है। अतः हम कह सकते हैं कि संघवाद की प्रमुख
विशेषता लिखित संविधान का पाया जाना भी है।
3. स्वतंत्र न्यायपालिका संघवाद की एक महत्वपूर्ण विशेषता
है। जिस देश में भी संघवाद होता है वहां पर एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका
देखने को मिलती है।
4. संघवाद की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि इसके
अंतर्गत संविधान की सर्वोच्चता पाई जाती है अर्थात संघीय शासन प्रणाली वाले देशों
में संविधान सर्वोच्च होता है और सभी को संविधान के अनुसार ही कार्य करना होता है।
5. संघवाद की प्रमुख विशेषता यह भी है कि इसमें विधायिका
द्विसदनीय होती है अर्थात संघीय व्यवस्था वाले देशों में विधायिका का रूप
द्विसदनीय होता है।