MID TERM EXAM-2022-23
विषय-राजनीति
विज्ञान
कक्षा-12
CBSE द्वारा पूछे गए 6 अंक के
महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर
प्रश्न 1. दक्षिण एशिया के देश एक दूसरे पर विश्वास करते हैं। इससे अंतरराष्ट्रीय
मंचों पर यह क्षेत्र एकजुट होकर अपना प्रभाव नहीं जमा पाता। इस कथन की पुष्टि में
कोई दो उदाहरण दीजिए और दक्षिण एशिया को मजबूत बनाने के लिए उपाय समझाइए।
उत्तर. दक्षिण एशिया के अंतर्गत भारत
नेपाल भूटान बांग्लादेश पाकिस्तान श्रीलंका मालदीव इन देशों को शामिल किया जाता है
और कभी-कभी म्यांमार तथा अफगानिस्तान को भी इसका हिस्सा माना जाता है। दक्षिण
एशिया के देश एक दूसरे पर विश्वास करते हैं और यह कथन सही है इस कथन के पक्ष में
हम निम्नलिखित तर्क दे सकते हैं -
1. दक्षिण एशिया के
कई देशों के बीच सीमा विवाद है जैसे कि भारत-पाकिस्तान भारत और बांग्लादेश आदि।
2. दक्षिण एशिया के
देशों में अविश्वास का एक कारक सीमा पर आतंकवादी घटनाएं भी हैं और इस कारक में
पाकिस्तान की भूमिका काफी हद तक मानी जाती है जो कि एक-दूसरे के विश्वास को कम कर
देता है।
3. दक्षिण एशिया के
छोटे देशों में भारत को लेकर भी आशंकाएं हैं क्योंकि भारत एक बड़ी अर्थव्यवस्था है
और सैन्य क्षमता के मामले में भी भारत दक्षिणी से कि अन्य देशों से काफी विकसित
है।
4. दक्षिण एशिया के
देशों में अविश्वास का एक कारक विश्व की बाहरी शक्तियों का हस्तक्षेप भी है इन
बाहरी शक्तियों के हस्तक्षेप से इन देशों के मध्य विश्वास में कमी आई है।
दक्षिण एशिया को मजबूत बनाने के उपाय :
दक्षिण एशिया को मजबूत बनाने के लिए कई सारे प्रयासों को करने की आवश्यकता है जिनमें
से कुछ इस प्रकार हैं -
1. दक्षिण एशिया के
देशों को आपसी मतभेदों को दूर करके शांति स्थापित करने के प्रयास करने होंगे।
2. सीमा पार
आतंकवादी घटनाओं को समाप्त करने की कोशिश करनी होगी और एक दूसरे का सहयोग करना
होगा जिससे कि इन आतंकवादी गतिविधियों को समाप्त किया जा सके तथा विकास के और
शांति के अवसर बढ़ाए जा सके।
3. दक्षिण एशिया को
और अधिक मजबूत करने के लिए इन सभी देशों को आपस में व्यापारिक गतिविधियों को
बढ़ाना होगा तथा विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक और तकनीकी संबंधों को और मधुर करना
होगा।
4. दक्षिण एशिया को
मजबूत करने के लिए सार्क को भी मजबूत करना होगा क्योंकि यह एक ऐसा संगठन है जो
दक्षिण एशिया के देशों को विकास के अवसरों के साथ-साथ शांति व्यवस्था बनाए रखने की
भी पर्याप्त कार्य करता है।
प्रश्न 2. 21वी सदी में "रूस" को किन आधारों पर सत्ता का एक नया केंद्र माना
जा सकता है?
उत्तर. वर्तमान समय में रूस शक्ति का
एक नया केंद्र बनकर सामने आया है। वर्ष 1991 में
सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना और संयुक्त
राष्ट्र संघ में रूस को सोवियत संघ का उत्तराधिकारी भी घोषित किया गया है। 21वीं सदी में रूस शक्ति का एक नया केंद्र निम्नलिखित आधारों पर बनकर उभरा
है-
1. रूस के पास
प्राकृतिक संसाधनों के अपार भंडार हैं। खनिज संसाधनों के मामले में और प्राकृतिक
गैस भंडार के मामलों में रूस बहुत ही ज्यादा धनी है और इन भंडारों के कारण रूस
विश्व का एक शक्तिशाली देश बन गया है।
2. रूस के पास
हथियारों का एक बहुत बड़ा भंडार है जिसमें उन्नत और आधुनिक किस्म की सभी प्रकार की
मिसाइलें और हथियार शामिल है। रूस विश्व का सबसे बड़ा हथियार विक्रेता भी है।
3. संयुक्त राष्ट्र
संघ की सुरक्षा परिषद में रूस स्थाई सदस्य हैं और उसे वीटो शक्ति प्राप्त है तथा
रूस की परमाणु शक्ति संपन्नता भी इसे शक्ति का एक नया केंद्र बनाती है।
4. रूस की
अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे विकसित अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और इसकी जीडीपी दर
भी बहुत अच्छी है जो इसे विश्व के शक्तिशाली देशों की श्रेणी में लाकर खड़ा करती
है।
5. अंतरराष्ट्रीय
स्तर पर रूस वैश्विक मामलों में हस्तक्षेप करने की क्षमता रखता है और रूस की बातों
का प्रभाव भी वैश्विक राजनीति पर स्पष्ट देखने को मिलता है जिसके कारण रूस शक्ति
का एक नया केंद्र बनकर सामने आया है।
6. रूस विश्व का
सबसे बड़ा देश है और रूस की तकनीकी क्षमता भी बहुत विकसित है।
प्रश्न 3. दक्षिण एशिया के देशों के बीच आर्थिक सहयोग की राह तैयार करने में दक्षेश
(सार्क)की भूमिका और सीमाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर. सार्क अर्थात दक्षेस की स्थापना
दिसंबर 1985 में दक्षिण एशिया के देशों के मध्य आर्थिक
संबंधों और शांति व्यवस्था बनाए रखने और उसमें वृद्धि करने के लिए की गई थी।
वर्तमान समय में सार्क में 8 सदस्य हैं। दक्षिण
एशिया के देशों के बीच आर्थिक सहयोग की राह तैयार करने में दक्षेस ने बहुत कार्य
किया है जिसे हम लिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं -
1. सार्क ने जनवरी 2004 में आयोजित अपने 12वीं शिखर सम्मेलन में
दक्षिणी से मुक्त व्यापार समझौता जिसे हम साफ्टा भी कहते हैं पर हस्ताक्षर किए और
इसे जनवरी 2006 से लागू भी किया।
2. दक्षिण एशियाई
मुक्त व्यापार समझौता का मुख्य उद्देश्य दक्षिण एशिया के देशों में मुक्त व्यापार
के क्षेत्र में आने वाली बाधाओं को दूर करना और मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना है।
3. सार्क ने दक्षिण
एशिया में व्यापार तथा प्रसून को प्रतिबंधों के सभी प्रकारों को समाप्त करने का
प्रयास करते हुए एक नई उदार नीति अपनाई है जिससे सभी सदस्य देशों को लाभ प्राप्त
हुआ है।
4. सार्क के सदस्य
देशों ने बिम्सटेक (BIMSTEC) का गठन करके बंगाल की
खाड़ी के पहुंचे त्रि तकनीकी और आर्थिक सहयोग उपक्रम को स्थापित किया है जिसके
माध्यम से व्यापार और निवेश में वृद्धि हुई है।
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि सार्क
ने दक्षिण एशियाई देशों के बीच आर्थिक सहयोग में अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
है।
आलोचना : सार्क ने अपने प्रयासों के माध्यम से दक्षिण एशिया के देशों के बीच मुक्त
व्यापार और आर्थिक सहयोग स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन इसमें
अभी भी बहुत सी कमियां है जिन्हें हम इस प्रकार समझ सकते हैं -
1. सार्क के सदस्य
देशों के बीच आपसी मतभेदों के कारण सार्क के उद्देश्यों में सफलता प्राप्त नहीं हो
पा रही है जिनमें भारत और पाकिस्तान के बीच मनमुटाव इसके आर्थिक उद्देश्यों को
असफल करता जा रहा है।
2. सार्क को विश्व
के अन्य क्षेत्रीय संगठनों के मां की भांति अपनी भूमिका को और अधिक व्यापक बनाना
होगा जिससे कि यह अपने आर्थिक उद्देश्य को सफल कर सके वर्तमान समय में इसे अपने
उद्देश्यों को सफलता प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है।
3. शार्क को
यूरोपीय संघ की भांति अपना झंडा, अपना गीत और अपनी
स्थापना दिवस के साथ-साथ अपनी एक मुद्रा को भी जारी करना होगा जिससे कि इसका
प्रभाव व्यापक स्तर पर हो सके।
4. दक्षिण एशिया के
देशों के बीच कई प्रकार के मतभेद देखने को मिलते हैं और इन मतभेदों का स्पष्ट
प्रभाव सार्क के उद्देश्यों के असफल होने में दिखता भी है यदि सार्क को अपने
उद्देश्यों में सफलता प्राप्त करनी है तो इसे इन मतभेदों को दूर करना होगा।
प्रश्न 4. सार्क के सदस्य देश मालदीव के विषय में आप क्या जानते हैं? भारत-मालदीव के बीच संबंधों का वर्णन कीजिए।
उत्तर. मालदीव : मालदीव
दक्षिण एशिया का एक छोटा सा द्वीपीय देश है। यह भारत का एक पड़ोसी देश भी है तथा
सार्क का सदस्य देश भी है। मालदीव में वर्ष 1968 तक
सल्तनत का शासन स्थापित था इसके बाद यहां पर गणतंत्र शासन व्यवस्था को अपनाया गया
और अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली स्थापित की गई। जून 2005 में मालदीव ने लोकतंत्र की बहू दलीय राजनीतिक प्रणाली को अपनाया और
लोकतंत्र को वास्तविक रूप में स्थापित किया। एम.डी.पी. राजनीतिक दल का मालदीव के
राजनीतिक मामलों में प्रभुत्व और नियंत्रण है।
मालदीव और भारत के
संबंध : भारत और मालदीव के मध्य बहुत ही मधुर और अच्छे संबंध
हैं दोनों ही देश शांतिप्रिय देश हैं और दोनों ही देशों के राजनीतिक उद्देश्य समान
हैं। भारत और मालदीव के संबंधों को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते
हैं -
1. वर्ष 1988 में भारत ने मालदीव में अपनी सेना भेजी थी जिससे कि वहां पर सैनिक
षड्यंत्र सफल ना हो सके और इस तरह से भारत ने मालदीव की सहायता की थी।
2. भारत और मालदीव
के मध्य व्यापारिक और आर्थिक संबंध भी बहुत अच्छे हैं दोनों देशों के बीच बहुत ही
वस्तुओं का व्यापार होता है।
3. भारत ने मालदीव
की आर्थिक विकास, पर्यटन और मत्स्य उद्योग में भी विशेष
सहायता की है।
4. भारत और मालदीव
ने वर्ष 2020 में चार समझौतों पर हस्ताक्षर किए
हैं जो यह दर्शाते हैं कि दोनों देशों के बीच बहुत ही मधुर और अच्छे संबंध अभी भी
स्थापित है।
प्रश्न 5. नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर. नेपाल दक्षिण एशिया एशिया का एक
छोटा सा शांतिप्रिय देश है। नेपाल में प्रारंभ से ही राजतंत्र स्थापित रहा था
लेकिन 1990 के बाद से नेपाल में लोकतंत्र की मांग शुरू हो गई थी जोकि वर्ष 2006
में जाकर पूर्ण हुई। नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना की प्रक्रिया को हम निम्नलिखित
बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं-
1. नेपाल में संवैधानिक राजतंत्र
स्थापित था और देश में लोग अधिक खुले और उत्तरदाई शासन की मांग करते रहे थे लेकिन
राजा ने सेना की मदद से शासन पर पूरा नियंत्रण कर लिया था और लोकतांत्रिक व्यवस्था
स्थापित नहीं होने दी थी।
2. वर्ष 1990 में नेपाल में लोकतंत्र
के समर्थन में आंदोलन शुरू हुआ और इस आंदोलन के कारण राजा ने संविधान की मांग को
मान लिया तथा वहीं दूसरी तरफ नेपाल में माओवादियों ने अपना प्रभाव जमाना शुरू कर
दिया था।
3. माओवादी राजा और सत्ताधारी अभिजन के
विरोध में थे। इसलिए राजा की सेना, माओवादियों और
लोकतंत्र समर्थकों के बीच त्रिकोणीय संघर्ष हुआ जिसके परिणाम स्वरूप वर्ष 2002 में
राजा ने संसद को भंग कर दिया और सरकार को बर्खास्त कर दिया।
4. वर्ष 2006 में नेपाल में देशव्यापी
लोकतंत्र के समर्थन में प्रदर्शन हुए और लोकतंत्र के समर्थकों को तब पहली जीत
प्राप्त हुई जब राजा ज्ञानेंद्र ने संसद को पुनः बहाल कर दिया जिसे की वर्ष 2002
में भंग कर दिया गया था इस आंदोलन का नेतृत्व 7 दलों ने मिलकर किया।
5. नेपाल में 2008 में राजतंत्र पर
पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया और नेपाल को एक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया
गया तथा वर्ष 2015 में नेपाल में नए संविधान को भी अपना लिया गया है। माओवादियों
ने संघर्ष का रास्ता छोड़कर सरकार में अपना प्रतिनिधित्व स्वीकार कर लिया है और
नेपाल के विकास के लिए समर्पण की भावना दिखाई है।
प्रश्न 6. चीनी
अर्थव्यवस्था की उन्नति के लिए उत्तरदाई कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर. चीन वर्तमान समय में विश्व की
सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। चीन बहुत तेजी से आर्थिक विकास करता जा
रहा है और एक अनुमान के अनुसार आने वाले कुछ वर्षों में यह विश्व की सबसे बड़ी और
विकसित अर्थव्यवस्था बन जाएगा। चीनी अर्थव्यवस्था के उन्नति के लिए कुछ कारक इस
प्रकार जिम्मेदार हैं-
1. चीन ने वर्ष 1972 में अमेरिका से
अपने संबंधों को अच्छा करने का प्रयास किया तथा अपने राजनीतिक और आर्थिक एकांतवास
को समाप्त किया और इस नीति से चीन ने अपने आर्थिक विकास को काफी तेजी से आगे
बढ़ाया।
2. वर्ष 1973 में प्रधानमंत्री चाउ एन
लाई ने कृषि उद्योग सेवा और विज्ञान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण के
चार प्रस्ताव रखें। इस आधुनिकीकरण के प्रस्ताव के बाद चीन ने अपना विकास काफी तेजी
से करना शुरू किया।
3. चीन का आर्थिक विकास वर्ष 1978 में
डेंग शियाओपिंग के द्वारा आर्थिक सुधार और खुले द्वार की नीति के बाद काफी तेजी से
होना शुरू हुआ। वर्ष 1978 की खुले द्वार की नीति ने चीन के आर्थिक विकास की गति को
काफी तेजी से बढ़ाना शुरू किया और उसके परिणाम हम आज भी देख रहे हैं।
4. वर्ष 1982 में चीन में खेती का
निजीकरण कर दिया गया और इसके कारण चीन में कृषि के क्षेत्र में काफी तेजी से विकास
देखने को मिला जिसने देश के विकास में भी काफी योगदान दिया।
5. वर्ष 1998 में चीन में उद्योगों का
निजीकरण किया गया। इसके साथ ही चीन में विशेष आर्थिक जोन बनाए गए जिनका उद्देश्य
विदेशी निवेश को बढ़ावा देना था और देश के विकास को तीव्र करना था।
6. चीन ने अपने आर्थिक विकास को बढ़ाने
के लिए वर्ष 2001 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल होने का निर्णय लिया और इस
तरह से चीन ने अपने अर्थव्यवस्था को विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के साथ जोड़ने
का एक विशेष कार्य किया जिसका फायदा उसे तीव्र आर्थिक विकास के रूप में देखने को
मिला।
प्रश्न 7. 21वी सदी में भारत शक्ति का एक नया केंद्र बनकर उभरा है। अपने उत्तर के पक्ष
में उचित तर्क दीजिए।
उत्तर. यह बात बिल्कुल सत्य है कि 21वीं सदी में भारत शक्ति का नया केंद्र बनकर उभरा है और इसके लिए कई सारे
कारक जिम्मेदार हैं जिनमें से कुछ प्रकार है -
1. भारत क्षेत्रफल
की दृष्टि से विश्व में सातवें स्थान पर आता है और जनसंख्या की दृष्टि से विश्व
में दूसरे स्थान पर आता है जो कि भारत को एक विलक्षण प्रतिभा प्रदान करता है।
2. भारत में विश्व
की सर्वाधिक युवा आबादी का समावेश है और ऐसा माना जाता है कि जिस देश में जितने
अधिक युवा होते हैं वह देश उतनी ही तेजी से विकास करता है।
3. भारत की
अर्थव्यवस्था विश्व की तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य तथा संपूर्ण विश्व में 200 मिलियन भारतीय प्रवासियों के साथ भारत की प्राचीन समावेशी संस्कृति भारत
को 21वीं शताब्दी में शक्ति का एक नया केंद्र बनाने में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
4. सामरिक दृष्टि
से भी भारत एक महत्वपूर्ण देश बनकर उभरा है भारत की सैन्य शक्ति परमाणु तकनीक के
साथ भारत को आत्मनिर्भर बनाती है और विश्व में एक शक्तिशाली देश के रूप में उभार
कर सामने लाती है।
5. विज्ञान तथा
प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी भारत निरंतर विकास करता जा रहा है मेक इन इंडिया
जैसे कार्यक्रमों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर बन सकती है।
6. 21वीं सदी में भारत
की विश्व राजनीति में भागीदारी बहुत तेजी से बढ़ी है और वैश्विक राजनीतिक मुद्दों
में भारत ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है और अपनी एक अलग पहचान भी बनाई है। 21वीं सदी में भारत वैश्विक नेता के तौर पर उभर कर सामने आया है।
प्रश्न 8. वैश्वीकरण के किन्ही दो सकारात्मक और किन्ही दो नकारात्मक प्रभावों को स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर. वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है
जिसमें वस्तु पूंजी श्रम और विचारों का मुक्त प्रवाह होता है। वैश्वीकरण के
संपूर्ण विश्व पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं जो कि इस
प्रकार हैं-
वैश्वीकरण के सकारात्मक प्रभाव -
वैश्वीकरण के कुछ प्रमुख सकारात्मक प्रभाव इस प्रकार है -
1. वैश्वीकरण के
कारण संपूर्ण विश्व में व्यापार में जबरदस्त वृद्धि देखने को मिली है अर्थात
वैश्वीकरण के कारण एक यह लाभ हुआ है जिसके कारण सभी देशों का व्यापार पहले की
तुलना में काफी अधिक हो गया है।
2. वैश्वीकरण के
कारण एक प्रभाव यह भी देखने को मिला है कि इसके कारण लोगों के जीवन स्तर में पहले
की तुलना में जबरदस्त बदलाव देखने को मिला है। लोगों का जीवन स्तर पहले की तुलना
में बहुत अधिक अच्छा हुआ है जो वैश्वीकरण के सकारात्मक प्रभाव को दर्शाता है।
3. वैश्वीकरण का एक सकारात्मक प्रभाव यह भी देखने को मिला है कि अब लोगों के समक्ष वस्तुओं के और खाने-पीने के विकल्पों की संख्या में वृद्धि हो गई है। वैश्वीकरण के पूर्व वस्तु और खाने-पीने के विकल्प सीमित मात्रा में होते थे।
वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभाव -
वैश्वीकरण एक बहुआयामी प्रक्रिया है इसके विभिन्न प्रभाव होते हैं। वैश्वीकरण के
कुछ नकारात्मक प्रभाव इस प्रकार है
1. वैश्वीकरण के
कारण आर्थिक असमानता में निरंतर वृद्धि देखने को मिली है। विश्व के कई देशों में
वैश्वीकरण के कारण आर्थिक असमानता बहुत तेजी से बढ़ी है अर्थात अमीर अधिक अमीर
होते गए और गरीब अधिक गरीब होते गए हैं।
2. वैश्वीकरण के
नकारात्मक प्रभाव यह भी देखने को मिला है कि इसके कारण श्रम और पूंजी का समान
प्रवाह नहीं हुआ है अर्थात विकसित देशों ने पूंजी निवेश में तो फायदा उठाया है
लेकिन कठोर वीजा नीति के माध्यम से श्रम के प्रवाह को रोका है।
3. वैश्वीकरण का एक
नकारात्मक प्रभाव यह भी देखने में आया है कि इसके कारण बड़ी बड़ी बहुराष्ट्रीय
कंपनियों के आगमन के कारण छोटे-छोटे व्यापारियों और कंपनियों को भारी मात्रा में
नुकसान उठाना पड़ा है और लगभग बर्बादी की कगार पर पहुंच गए हैं।
प्रश्न 9. सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख
कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर. सोवियत संघ वर्ष 1917
में साम्यवादी क्रांति के बाद अस्तित्व में आया था और वर्ष 1991 में सोवियत संघ का विघटन 15 गणराज्य में हो गया
जिसके लिए बहुत से कारण जिम्मेदार थे जिनमें से कुछ इस प्रकार है -
1. सोवियत संघ के विघटन
के लिए एक बहुत ही जिम्मेदार कारण यह था कि सोवियत संघ ने अपने समस्त संसाधनों को
हथियारों के निर्माण में लगा दिया था और जिसके कारण उसका बहुत बड़ा बजट हथियारों
के निर्माण में लग रहा था और वह धीरे-धीरे पीछे होता जा रहा था।
2. सोवियत संघ के विघटन
का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी था कि सोवियत संघ ने अपनी तकनीक को उन्नत करना छोड़
दिया था और वह पश्चिम के देशों से पीछे होता जा रहा था और इस तकनीकी पिछड़ेपन का
सोवियत संघ को काफी नुकसान उठाना पड़ा।
3. सोवियत संघ में साम्यवादी
पार्टी की तानाशाही ने भी सोवियत संघ के विघटन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
क्योंकि सोवियत संघ में किसी दूसरे राजनीतिक दल का अस्तित्व नहीं था इसलिए
साम्यवादी पार्टी में मनमाने फैसले लिए जाते थे और उन्हें जनता पर थोप दिया जाता
था।
4. सोवियत संघ के विघटन
का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी था कि सोवियत संघ के कई गणराज्य अब संप्रभु और
स्वतंत्र होना चाहते थे और इस संप्रभुता की मांग ने सोवियत संघ के विघटन को
अपरिहार्य बना दिया।
5. सोवियत संघ के विघटन
के लिए एक जिम्मेदार कारण यह भी था कि सोवियत संघ में नौकरशाही का शिकंजा धीरे
धीरे बढ़ता ही जा रहा था और इस शिकंजे से जनता बहुत परेशान हो चुकी थी और वह अब
स्वतंत्र होना चाहती थी।
6. सोवियत संघ के विघटन
के लिए एक कारण यह भी जिम्मेदार माना जा सकता है कि सोवियत संघ के सभी गणराज्य में
रूस सबसे अधिक शक्तिशाली और वर्चस्व शाली था तथा बाकी गणराज्य को उतनी प्रमुखता नहीं दी जाती थी।
7. मिखाईल गोर्बाचोव के
द्वारा किए गए सुधारों का विरोध भी सोवियत संघ के विघटन के लिए एक जिम्मेदार कारण
माना जा सकता है सोवियत संघ के
पुनर्निर्माण के लिए जिन सिद्धांतों को मिखाईल गोर्बाचोव ने लागू किया था उन
सिद्धांतों का साम्यवादी पार्टी के ही कुछ लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया था।
प्रश्न 10. पर्यावरण की चिंता वैश्विक राजनीति
का विषय क्यों बनना चाहिए? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क
दीजिए।
उत्तर. वर्तमान समय में पर्यावरण विश्व
राजनीति का हिस्सा बन चुका है और वैश्विक राजनीति में पर्यावरण एक बहुत बड़ा
मुद्दा उभर कर सामने आया है क्योंकि जिस तरह से पर्यावरण में बदलाव हो रहा है और
पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता जा रहा है वह समस्त विश्व को प्रभावित कर रहा है। वैश्विक
राजनीति में पर्यावरण की चिंता करने के लिए निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं -
1. वैश्विक राजनीति में
पर्यावरण की चिंता इसलिए की जानी चाहिए क्योंकि निरंतर तेजी से चारागाह का खत्म
होना एक बहुत बड़ी समस्या बन गया है और इस समस्या से विश्व के अधिकांश देश जूझ रहे
हैं।
2. विश्व के अधिकांश
देशों में पीने के पानी की विकराल समस्या उत्पन्न हो चुकी है और इन देशों में
लोगों के लिए साफ पीने का पानी उपलब्ध बहुत मुश्किल से हो पा रहा है और यह विश्व
की एक बहुत बड़ी समस्या है जिसका समाधान विश्व के सभी देशों को मिलकर निकालना ही
पड़ेगा।
3. वैश्विक राजनीति में
पर्यावरण की चिंता इसलिए भी की जाती है क्योंकि वैश्विक तापन के कारण हमारे
पर्यावरण में बहुत बदलाव आया है और पृथ्वी का तापमान धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है
जिसके कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं और विश्व के बहुत से देश नष्ट होने के कगार पर
हैं। वैश्विक तापन ने जीव जंतुओं और वनस्पति को भी पर्याप्त नुकसान पहुंचाया है।
4. विश्व के सभी देशों
ने विकास के नाम पर जिस तेजी से पर्यावरण को प्रदूषित किया है उसके कारण साफ हवा
की उपलब्धता एक बहुत बड़ी समस्या बन गया है। वर्तमान समय में विश्व की वायु में
बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है और कार्बन की बढ़ती मात्रा में पर्यावरण में
बहुत ही नकारात्मक परिवर्तन किया है।
5. वैश्विक राजनीति में
पर्यावरण की चिंता इसलिए की जाती है क्योंकि विश्व के अधिकांश क्षेत्रों में कृषि
योग्य भूमि में कोई वृद्धि दर्ज नहीं हुई है बल्कि कृषि भूमि में कमी आई है और
इसके कारण अनाजों के उत्पादन पर नकारात्मक असर देखने को मिला है। जिस तेजी से
विश्व की जनसंख्या बढ़ी है उतनी तेजी से कृषि योग्य भूमि में विकास देखने को नहीं
मिला है और यह एक बहुत बड़ी समस्या है।
6. वैश्विक राजनीति में पर्यावरण की चिंता इसलिए भी की जाती है क्योंकि हमारे सामने एक बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हुई है जिसे हम ओजोन परत में छिद्र के नाम से जानते हैं। ओजोन परत का महत्व हम बहुत अच्छी तरह से जानते हैं और उसमें अंटार्कटिका में हुए क्षेत्र के कारण संपूर्ण विश्व के सामने एक बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई है जो पृथ्वी पर जीव जंतुओं और वनस्पतियों और इसके साथ ही मानव जाति के अस्तित्व के लिए खतरा है।
March 19, 2024 at 1:00 PM
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