SUBJECT POLITICAL SCIENCE
CLASS-XII
IMPORTANT QUESTIONS
SIX(6) MARKS
प्रश्न
1. दक्षिण एशिया के देश एक दूसरे पर विश्वास करते हैं।
इससे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह क्षेत्र एकजुट होकर अपना प्रभाव नहीं जमा पाता। इस
कथन की पुष्टि में कोई दो उदाहरण दीजिए और दक्षिण एशिया को मजबूत बनाने के लिए
उपाय समझाइए।
उत्तर. दक्षिण एशिया के अंतर्गत भारत नेपाल भूटान बांग्लादेश
पाकिस्तान श्रीलंका मालदीव इन देशों को शामिल किया जाता है और कभी-कभी म्यांमार
तथा अफगानिस्तान को भी इसका हिस्सा माना जाता है। दक्षिण एशिया के देश एक दूसरे पर
विश्वास करते हैं और यह कथन सही है इस कथन के पक्ष में हम निम्नलिखित तर्क दे सकते
हैं -
1.
दक्षिण एशिया के कई देशों के बीच सीमा विवाद है जैसे कि
भारत-पाकिस्तान भारत और बांग्लादेश आदि।
2.
दक्षिण एशिया के देशों में अविश्वास का एक कारक सीमा पर आतंकवादी
घटनाएं भी हैं और इस कारक में पाकिस्तान की भूमिका काफी हद तक मानी जाती है जो कि
एक-दूसरे के विश्वास को कम कर देता है।
3.
दक्षिण एशिया के छोटे देशों में भारत को लेकर भी आशंकाएं हैं
क्योंकि भारत एक बड़ी अर्थव्यवस्था है और सैन्य क्षमता के मामले में भी भारत
दक्षिणी से कि अन्य देशों से काफी विकसित है।
4.
दक्षिण एशिया के देशों में अविश्वास का एक कारक विश्व की बाहरी
शक्तियों का हस्तक्षेप भी है इन बाहरी शक्तियों के हस्तक्षेप से इन देशों के मध्य
विश्वास में कमी आई है।
दक्षिण एशिया को मजबूत बनाने के उपाय : दक्षिण एशिया को मजबूत
बनाने के लिए कई सारे प्रयासों को करने की आवश्यकता है जिनमें से कुछ इस प्रकार
हैं -
1.
दक्षिण एशिया के देशों को आपसी मतभेदों को दूर करके शांति स्थापित
करने के प्रयास करने होंगे।
2.
सीमा पार आतंकवादी घटनाओं को समाप्त करने की कोशिश करनी होगी और एक
दूसरे का सहयोग करना होगा जिससे कि इन आतंकवादी गतिविधियों को समाप्त किया जा सके
तथा विकास के और शांति के अवसर बढ़ाए जा सके।
3.
दक्षिण एशिया को और अधिक मजबूत करने के लिए इन सभी देशों को आपस में
व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ाना होगा तथा विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक और तकनीकी
संबंधों को और मधुर करना होगा।
4.
दक्षिण एशिया को मजबूत करने के लिए सार्क को भी मजबूत करना होगा
क्योंकि यह एक ऐसा संगठन है जो दक्षिण एशिया के देशों को विकास के अवसरों के
साथ-साथ शांति व्यवस्था बनाए रखने की भी पर्याप्त कार्य करता है।
प्रश्न
2. 21वी सदी में "रूस" को किन आधारों पर
सत्ता का एक नया केंद्र माना जा सकता है?
उत्तर. वर्तमान समय में रूस शक्ति का एक नया केंद्र बनकर सामने आया
है। वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस
सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना और संयुक्त राष्ट्र संघ में रूस को सोवियत संघ का
उत्तराधिकारी भी घोषित किया गया है। 21वीं सदी में रूस शक्ति
का एक नया केंद्र निम्नलिखित आधारों पर बनकर उभरा है-
1.
रूस के पास प्राकृतिक संसाधनों के अपार भंडार हैं। खनिज संसाधनों के
मामले में और प्राकृतिक गैस भंडार के मामलों में रूस बहुत ही ज्यादा धनी है और इन
भंडारों के कारण रूस विश्व का एक शक्तिशाली देश बन गया है।
2.
रूस के पास हथियारों का एक बहुत बड़ा भंडार है जिसमें उन्नत और
आधुनिक किस्म की सभी प्रकार की मिसाइलें और हथियार शामिल है। रूस विश्व का सबसे
बड़ा हथियार विक्रेता भी है।
3.
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में रूस स्थाई सदस्य हैं और
उसे वीटो शक्ति प्राप्त है तथा रूस की परमाणु शक्ति संपन्नता भी इसे शक्ति का एक
नया केंद्र बनाती है।
4.
रूस की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे विकसित अर्थव्यवस्थाओं में से एक
है और इसकी जीडीपी दर भी बहुत अच्छी है जो इसे विश्व के शक्तिशाली देशों की श्रेणी
में लाकर खड़ा करती है।
5.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस वैश्विक मामलों में हस्तक्षेप करने की
क्षमता रखता है और रूस की बातों का प्रभाव भी वैश्विक राजनीति पर स्पष्ट देखने को
मिलता है जिसके कारण रूस शक्ति का एक नया केंद्र बनकर सामने आया है।
6.
रूस विश्व का सबसे बड़ा देश है और रूस की तकनीकी क्षमता भी बहुत
विकसित है।
प्रश्न
3. 2014 के बाद भारतीय राजनीति में कौन से बड़े
परिवर्तन आए। व्याख्या कीजिए।
उत्तर. 2014 में भारतीय
जनतंत्र गठबंधन की सरकार बनी और उसके बाद से भारतीय राजनीति में कई बदलाव देखने को
मिले हैं। 2014 के बाद से भारतीय राजनीति में हुए प्रमुख
बदलावों को हम इस प्रकार समझ सकते हैं -
1.
2014 के बाद से भारतीय राजनीति में एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिला
अब भारतीय राजनीति में विकास और सुशासन एक प्रमुख मुद्दा बन चुका है और सरकार का
पूरा केंद्र बिंदु यह दोनों मुद्दे बन चुके हैं। सरकार विकास और सुशासन के लिए कई
सारी योजनाएं और नीतियां निर्धारित कर रही है और उन पर काम भी कर रही है।
3.
2014 के बाद भारतीय राजनीति में एक परिवर्तन यह भी देखने को मिला कि
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने सबका साथ सबका
विकास का एक नारा दिया और सरकार बनने के बाद अपने इस नारे को जीवंत बनाए रखने के
लिए सरकार ने कई योजनाएं बनाई और उनके क्रियान्वयन के लिए सतत प्रयास भी जारी रख
रही है। भारतीय राजनीति में अब प्रत्येक वर्ग का विकास सुनिश्चित करने की बात की
जा रही है और उस पर काम भी किया जा रहा है।
3.
2014 के बाद भारतीय राजनीति में जातिगत आधारित राजनीति को समाप्त
करने की कोशिश की गई है और विकास राष्ट्र निर्माण से संबंधित योजनाएं और उन पर
कार्य करने के प्रयास किए जा रहे हैं जो कि एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है।
4.
2014 के बाद से सरकार ने कई प्रकार की योजनाएं बनाई हैं जिनमें
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना जनधन योजना, दीनदयाल उपाध्याय
ग्राम ज्योति योजना, किसान फसल बीमा योजना, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ योजना, आयुष्मान भारत योजना
आदि। इन योजनाओं का एकमात्र उद्देश्य भारत का सर्वांगीण विकास करना है और भारत के
प्रत्येक नागरिक तक विकास के अवसरों को पहुंचाना है।
5.
2014 के बाद हमने यह भी देखा है कि भारतीय राजनीति में राष्ट्रवाद
का जबरदस्त प्रचार प्रसार हुआ है सरकार ने विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों की
सहायता से भारत में राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ाने का प्रयास किया है और उसमें
सफलता भी प्राप्त की है।
प्रश्न
4. लोकनायक जयप्रकाश नारायण अपने कौन से तीन प्रमुख
योगदानो के लिए जाने जाते हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर. जयप्रकाश नारायण को लोकनायक के नाम से भी जाना जाता है।
जयप्रकाश नारायण एक प्रमुख गांधीवादी नेता थे और इन्होंने अपने किसी भी आंदोलन में
हिंसा का सहारा नहीं लिया तथा अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए कई प्रकार के आंदोलन
किए। लोकनायक जयप्रकाश नारायण की भारतीय राजनीति में दिए गए प्रमुख योगदानो में से
तीन इस प्रकार है -
1. भ्रष्टाचार के विरुद्ध
संघर्ष - लोकनायक जयप्रकाश
नारायण ने बिहार में छात्रों के अनुरोध पर भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन का
नेतृत्व किया और इसे एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन बनाने में अपनी भूमिका निभाई।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने बिहार तथा गुजरात के छात्रों को अहिंसात्मक तरीके से
आंदोलन के लिए नेतृत्व प्रदान किया तथा भ्रष्टाचार का जमकर विरोध किया।
2. सामुदायिक समाजवाद का
सिद्धांत - लोकनायक जयप्रकाश नारायण को
उनके द्वारा दिए गए सामुदायिक समाजवाद के सिद्धांत के लिए भी याद किया जाता है।
जयप्रकाश नारायण का मानना था कि एक देश समुदाय क्षेत्र तथा राष्ट्र के त्रिस्तरीय
रूप में परिलक्षित होता है। जयप्रकाश नारायण जी मानते थे कि भारत एक समुदायों का
समाज है और यही एक वास्तविक यथार्थता है।
3. संपूर्ण या समग्र
क्रांति का सिद्धांत - लोकनायक जयप्रकाश
नारायण जी को उनके द्वारा देखे संपूर्ण या समग्र क्रांति के सिद्धांत के लिए भी
जाना जाता है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी का मानना था कि कांति केवल राजनीतिक
क्षेत्र तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए बल्कि नैतिक सांस्कृतिक आर्थिक राजनीतिक हर
क्षेत्र में परिवर्तन अर्थात क्रांति की आवश्यकता है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी
मानते थे कि हर प्रकार की क्रांति का मूल व्यक्ति है जो कि भारत में हर प्रकार के
परिवर्तन का मुखिया भी है।
प्रश्न
5. दक्षिण एशिया के देशों के बीच आर्थिक सहयोग की राह
तैयार करने में दक्षेश (सार्क)की भूमिका और सीमाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।6
उत्तर. सार्क अर्थात दक्षेस की स्थापना दिसंबर 1985 में दक्षिण एशिया के देशों के मध्य आर्थिक
संबंधों और शांति व्यवस्था बनाए रखने और उसमें वृद्धि करने के लिए की गई थी।
वर्तमान समय में सार्क में 8 सदस्य हैं। दक्षिण एशिया के
देशों के बीच आर्थिक सहयोग की राह तैयार करने में दक्षेस ने बहुत कार्य किया है
जिसे हम लिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं -
1.
सार्क ने जनवरी 2004 में आयोजित अपने 12वीं शिखर सम्मेलन में दक्षिणी से मुक्त व्यापार समझौता जिसे हम साफ्टा भी
कहते हैं पर हस्ताक्षर किए और इसे जनवरी 2006 से लागू भी
किया।
2.
दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौता का मुख्य उद्देश्य दक्षिण एशिया
के देशों में मुक्त व्यापार के क्षेत्र में आने वाली बाधाओं को दूर करना और मुक्त
व्यापार को बढ़ावा देना है।
3.
सार्क ने दक्षिण एशिया में व्यापार तथा प्रसून को प्रतिबंधों के सभी
प्रकारों को समाप्त करने का प्रयास करते हुए एक नई उदार नीति अपनाई है जिससे सभी
सदस्य देशों को लाभ प्राप्त हुआ है।
4.
सार्क के सदस्य देशों ने बिम्सटेक (BIMSTEC) का
गठन करके बंगाल की खाड़ी के पहुंचे त्रि तकनीकी और आर्थिक सहयोग उपक्रम को स्थापित
किया है जिसके माध्यम से व्यापार और निवेश में वृद्धि हुई है।
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि सार्क ने दक्षिण एशियाई देशों के
बीच आर्थिक सहयोग में अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
आलोचना : सार्क ने अपने प्रयासों के माध्यम से दक्षिण एशिया के
देशों के बीच मुक्त व्यापार और आर्थिक सहयोग स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई है लेकिन इसमें अभी भी बहुत सी कमियां है जिन्हें हम इस प्रकार समझ सकते हैं
-
1.
सार्क के सदस्य देशों के बीच आपसी मतभेदों के कारण सार्क के
उद्देश्यों में सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही है जिनमें भारत और पाकिस्तान के बीच
मनमुटाव इसके आर्थिक उद्देश्यों को असफल करता जा रहा है।
2.
सार्क को विश्व के अन्य क्षेत्रीय संगठनों के मां की भांति अपनी
भूमिका को और अधिक व्यापक बनाना होगा जिससे कि यह अपने आर्थिक उद्देश्य को सफल कर
सके वर्तमान समय में इसे अपने उद्देश्यों को सफलता प्राप्त करने में कठिनाई हो रही
है।
3.
शार्क को यूरोपीय संघ की भांति अपना झंडा, अपना
गीत और अपनी स्थापना दिवस के साथ-साथ अपनी एक मुद्रा को भी जारी करना होगा जिससे
कि इसका प्रभाव व्यापक स्तर पर हो सके।
4.
दक्षिण एशिया के देशों के बीच कई प्रकार के मतभेद देखने को मिलते
हैं और इन मतभेदों का स्पष्ट प्रभाव सार्क के उद्देश्यों के असफल होने में दिखता
भी है यदि सार्क को अपने उद्देश्यों में सफलता प्राप्त करनी है तो इसे इन मतभेदों
को दूर करना होगा।
प्रश्न
6. सार्क के सदस्य देश मालदीव के विषय में आप क्या
जानते हैं? भारत-मालदीव के बीच संबंधों का वर्णन कीजिए।
उत्तर. मालदीव
: मालदीव दक्षिण एशिया का एक छोटा सा द्वीपीय देश है। यह भारत का एक
पड़ोसी देश भी है तथा सार्क का सदस्य देश भी है। मालदीव में वर्ष 1968 तक सल्तनत का शासन स्थापित था इसके बाद यहां पर
गणतंत्र शासन व्यवस्था को अपनाया गया और अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली स्थापित की गई।
जून 2005 में मालदीव ने लोकतंत्र की बहू दलीय राजनीतिक
प्रणाली को अपनाया और लोकतंत्र को वास्तविक रूप में स्थापित किया। एम.डी.पी. राजनीतिक
दल का मालदीव के राजनीतिक मामलों में प्रभुत्व और नियंत्रण है।
मालदीव और भारत के संबंध : भारत और मालदीव के मध्य बहुत ही मधुर और अच्छे संबंध
हैं दोनों ही देश शांतिप्रिय देश हैं और दोनों ही देशों के राजनीतिक उद्देश्य समान
हैं। भारत और मालदीव के संबंधों को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते
हैं -
1.
वर्ष 1988 में भारत ने मालदीव में अपनी सेना
भेजी थी जिससे कि वहां पर सैनिक षड्यंत्र सफल ना हो सके और इस तरह से भारत ने
मालदीव की सहायता की थी।
2.
भारत और मालदीव के मध्य व्यापारिक और आर्थिक संबंध भी बहुत अच्छे
हैं दोनों देशों के बीच बहुत ही वस्तुओं का व्यापार होता है।
3.
भारत ने मालदीव की आर्थिक विकास, पर्यटन और
मत्स्य उद्योग में भी विशेष सहायता की है।
4.
भारत और मालदीव ने वर्ष 2020 में चार समझौतों
पर हस्ताक्षर किए हैं जो यह दर्शाते हैं कि दोनों देशों के बीच बहुत ही मधुर और
अच्छे संबंध अभी भी स्थापित है।
प्रश्न
7. गठबंधन सरकारों के उदय के किन्हीं तीन कारकों का
वर्णन कीजिए।
उत्तर. गठबंधन
सरकार : जब किसी राजनीतिक दल को चुनाव के परिणाम के बाद स्पष्ट बहुमत
प्राप्त नहीं हो पाता है तब ऐसे में दो या दो से अधिक राजनीतिक दल मिलकर सरकार
बनाते हैं जिसे गठबंधन सरकार कहते हैं। भारत में गठबंधन सरकार के उदय के लिए कुछ
प्रमुख कारक किस प्रकार हैं -
1. राष्ट्रीय राजनीतिक
दलों का कमजोर होना :
भारतीय राजनीति में 1980 के
दशक के बाद से यह देखने में आया कि राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक दल अपेक्षाकृत
कमजोर होने लगे और इसके लिए कई सारे कारक जिम्मेदार भी थे जैसा कि आपस में फूट
पड़ना और नेताओं का एकमत ना होना जिसके कारण राजनीतिक दल काफी कमजोर हो गए। इसके
परिणाम स्वरूप लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हो
पाया और उन्हें सरकार बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के क्षेत्रीय दलों की सहायता
लेनी पड़ी। इसलिए हम कह सकते हैं कि राष्ट्रीय राजनीतिक दलों का कमजोर होना भारत
में गठबंधन की राजनीति का एक प्रमुख कारक है।
2. क्षेत्रीय राजनीतिक
दलों का उदय और महत्व : 1980 के दशक में भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय
राजनीतिक दलों के उदय का दौर शुरू हुआ और धीरे-धीरे इन क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने
अपने-अपने क्षेत्रों में विशेष प्रभाव स्थापित कर लिया और इसके लिए इन्हें
अनुसूचित जाति जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के मुद्दों ने सहायता की। क्षेत्रीय
राजनीतिक दलों ने अपने प्रभाव के कारण लोकसभा चुनावों में जनमत को प्रभावित किया
और कुछ सीटें भी प्राप्त की जिनका सरकार के निर्माण में काफी महत्व रहा और इन
राजनीतिक दलों ने सरकार निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाना प्रारंभ किया।
3. अवसरवादी राजनीति का
उदय : भारतीय राजनीति में 1990 के बाद से सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक बदलाव
देखने को मिले हैं जिनमें जातिगत राजनीति तथा धर्म और संप्रदाय की राजनीति ने
क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को अवसरवादी राजनीति करने के अवसर प्रदान किए हैं और
उन्होंने इस अवसर का लाभ उठाकर सरकार निर्माण में अपनी भूमिका को प्रबल किया।
प्रश्न
8. सुशासन किसे कहते हैं? भारत की
वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा सुशासन स्थापित करने के उद्देश्य से कौन-कौन से
कार्यक्रम चला रही है। वर्णन कीजिए।
उत्तर.सुशासन
: एक ऐसी शासन की व्यवस्था जिसके अंतर्गत लोक कल्याणकारी कार्यों को
प्राथमिकता दी जाती है तथा शासन में गुणवत्ता और एक मूल्य आधारित व्यवस्था की
स्थापना का प्रयास किया जाता है जिसे सुशासन कहा जाता है। वर्तमान में केंद्र
सरकार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में
सुशासन का मुद्दा उठाकर सबका साथ सबका विश्वास का नारा देकर भारी बहुमत से सरकार
का निर्माण किया। वर्तमान में केंद्र सरकार अपने उस सुशासन तथा विकास के लोक
कल्याणकारी कार्य और नीतियों को स्वरूप चलाने का प्रयास करती है जिसके प्रमुख
उदाहरण इस प्रकार हैं -
1. स्वच्छ भारत अभियान - भारत सरकार का एक बहुत ही बड़ा प्रयास जिसने भारत में
स्वच्छता और सफाई के लिए एक मुहिम चलाई जिसके माध्यम से प्रत्येक नागरिक को यह
जानकारी और जागरूकता प्रदान की गई कि भारत को विकास करने के लिए स्वच्छता कोई
अभियान बनाना होगा तथा इसने अपना योगदान देना होगा।
2. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
योजना :
भारत सरकार ने सुशासन के अपनी राह पर चलते हुए एक महत्वपूर्ण योजना प्रारंभ की
जिसका नाम बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना है और इस योजना के अंतर्गत भारत में महिला
शिक्षा के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।
3. प्रधानमंत्री उज्जवला
योजना :
भारतीय सरकार ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के अंतर्गत देश में महिलाओं को मुफ्त
एलपीजी गैस कनेक्शन दिए जाएंगे जिससे कि उन्हें खाना पकाने में किसी प्रकार की कोई
समस्या का सामना ना करना पड़े।
4. प्रधानमंत्री जनधन
योजना :
भारत सरकार ने इस योजना के माध्यम से देश के प्रत्येक परिवार को बैंकिंग सुविधाएं
प्रदान करने के लिए बैंक में खाता खोलने की योजना बनाई जिससे कि प्रत्येक व्यक्ति
अपना धन बैंकों में सुरक्षित रख सके और उसका प्रयोग कर सकें।
5. किसान फसल बीमा योजना : भारत सरकार ने यह योजना किसानों को उनकी फसल के नुकसान
होने पर उन्हें आर्थिक मदद देने के रूप में प्रारंभ की है। देश के बहुत से किसानों
ने इस योजना का लाभ उठाने के लिए आवेदन भी किया है और यह भारत सरकार का एक बहुत
अच्छा प्रयास है।
6. आयुष्मान भारत योजना : आयुष्मान भारत योजना भारत सरकार की एक ऐसी योजना है
जिसके अंतर्गत भारत में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सुरक्षा संबंधी बीमा प्रदान
करना है जिससे कि उन्हें किसी प्रकार के स्वास्थ्य समस्याओं का सामना ना करना
पड़े।
7. दीनदयाल उपाध्याय ग्राम
ज्योति योजना :
इस योजना का उद्देश्य भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और गैर कृषि उपभोक्ताओं
को विद्युत आपूर्ति प्रदान करना है जिससे कि वह इनका विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग कर
सके।
प्रश्न
9. नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर. नेपाल दक्षिण एशिया एशिया का एक छोटा सा शांतिप्रिय देश है।
नेपाल में प्रारंभ से ही राजतंत्र स्थापित रहा था लेकिन 1990 के बाद से नेपाल में
लोकतंत्र की मांग शुरू हो गई थी जोकि वर्ष 2006 में जाकर पूर्ण हुई। नेपाल में
लोकतंत्र की स्थापना की प्रक्रिया को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते
हैं-
1. नेपाल में संवैधानिक राजतंत्र स्थापित था और देश में लोग अधिक
खुले और उत्तरदाई शासन की मांग करते रहे थे लेकिन राजा ने सेना की मदद से शासन पर
पूरा नियंत्रण कर लिया था और लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित नहीं होने दी थी।
2. वर्ष 1990 में नेपाल में लोकतंत्र के समर्थन में आंदोलन शुरू
हुआ और इस आंदोलन के कारण राजा ने संविधान की मांग को मान लिया तथा वहीं दूसरी तरफ
नेपाल में माओवादियों ने अपना प्रभाव जमाना शुरू कर दिया था।
3. माओवादी राजा और सत्ताधारी अभिजन के विरोध में थे। इसलिए राजा
की सेना, माओवादियों और
लोकतंत्र समर्थकों के बीच त्रिकोणीय संघर्ष हुआ जिसके परिणाम स्वरूप वर्ष 2002 में
राजा ने संसद को भंग कर दिया और सरकार को बर्खास्त कर दिया।
4. वर्ष 2006 में नेपाल में देशव्यापी लोकतंत्र के समर्थन में
प्रदर्शन हुए और लोकतंत्र के समर्थकों को तब पहली जीत प्राप्त हुई जब राजा
ज्ञानेंद्र ने संसद को पुनः बहाल कर दिया जिसे की वर्ष 2002 में भंग कर दिया गया
था इस आंदोलन का नेतृत्व 7 दलों ने मिलकर किया।
5. नेपाल में 2008 में राजतंत्र पर पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया
और नेपाल को एक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया तथा वर्ष 2015 में नेपाल
में नए संविधान को भी अपना लिया गया है। माओवादियों ने संघर्ष का रास्ता छोड़कर
सरकार में अपना प्रतिनिधित्व स्वीकार कर लिया है और नेपाल के विकास के लिए समर्पण
की भावना दिखाई है।
प्रश्न
10. 25 जून 1975 को भारत में लागू
किए गए राष्ट्रीय आपातकाल के किन्हीं 6 परिणामों को लिखो।
उत्तर. 25 जून 1975 को भारत में आंतरिक अशांति के नाम पर आपातकाल की घोषणा की गई थी। इस
राष्ट्रीय आपातकाल के विभिन्न परिणाम देखने को मिले थे जो कि इस प्रकार है-
1.
आपातकाल की घोषणा के बाद जितने भी विपक्षी नेता थे उन सभी को जेल
में डाल दिया गया और इस तरह से सरकार ने अपने सभी विपक्षी नेताओं को अपने रास्ते
से हटाने का प्रयास किया।
2.
आपातकाल की घोषणा के बाद देश में प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई इसका
अर्थ यह था कि अब कोई भी समाचार पत्र या न्यूज़ चैनल किसी भी प्रकार की कोई न्यूज़
या समाचार बिना सरकार की आज्ञा के प्रकाशित नहीं कर सकता था।
3.
आपातकाल की घोषणा के बाद यह भी देखने में आया कि राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ और जमात-ए-इस्लामी नामक संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया और इन्हें
किसी भी प्रकार की कोई गतिविधि करने से रोक दिया गया।
4.
देश में किसी भी प्रकार की कोई भी धरना, प्रदर्शन
या हड़ताल पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दी गई। आपातकाल की घोषणा के परिणाम स्वरूप अब
इस प्रकार की कोई भी गतिविधि पूरी तरह से प्रतिबंधित थी।
5.
आपातकाल की घोषणा का एक प्रभाव यह भी देखने को मिला कि नागरिकों के
सभी मौलिक अधिकार स्थगित कर दिए गए और मौलिक अधिकार निष्प्रभावी हो गए।
6.
सरकार ने निवारक नजरबंदी कानून के द्वारा राजनीतिक कार्यकर्ताओं को
गिरफ्तार किया और इस कानून के तहत बहुत से लोगों को नजरबंद भी किया।
7.
आपातकाल की घोषणा के बाद देश में इंडियन एक्सप्रेस और स्टेट्समैन
अखबारों को जिन समाचारों को छापने से रोका जाता था वे उनकी खाली जगह छोड़ देते थे
और इस तरह से यह समाचार पत्र अपना विरोध दर्शाते थे।
8.
आपातकाल की घोषणा के बाद सेमिनार और मेन स्ट्रीम जैसी पत्रिकाओं ने
अपनी प्रकाशन बंद कर दिया।
9.
आपातकाल की घोषणा के बाद कन्नड़ लेखक शिवराम कारत और हिंदी लेखक
फणीश्वर नाथ रेणु ने आपातकाल के विरोध में अपनी पदवी सरकार को वापस लौटा दी।
10.
42वें संविधान संशोधन (1976) के माध्यम से
अनेक परिवर्तन संविधान में किए गए हैं जैसे कि प्रधानमंत्री राष्ट्रपति और
उपराष्ट्रपति पद के निर्वाचन से संबंधित किसी भी विवाद को अदालत में चुनौती नहीं
दी जा सकती थी और विधायिका के कार्यकाल को 5 वर्ष से बढ़ाकर 6
वर्ष कर दिया गया था।
प्रश्न 11. ऐसे किन्हीं तीन मुद्दों को उजागर कीजिए जिस के संबंध में भारत के
अधिकांश राजनीतिक दलों के बीच व्यापक सहमति बनी है।
उत्तर. हम अक्सर ऐसा देखते हैं कि लोकतांत्रिक राजनीति में
राजनीतिक दलों के बीच संघर्ष और वाद विवाद का एक वातावरण देखने को मिलता है और सभी
राजनीतिक दल एक दूसरे का विरोध करते नजर आते हैं। भारत में भी यह सामान्य तौर पर
देखने में आता है लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिन पर सभी राजनीतिक दल लगभग सहमत हैं।
ऐसे कुछ प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं
1. अनुसूचित जाति और जनजाति तथा पिछड़ा वर्गों के प्रतिनिधित्व :
भारत में हमने देखा है कि सभी राजनीतिक दल इस बात पर पूरी तरह से सहमत हैं कि
अनुसूचित जाति और जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों का भारतीय राजनीतिक प्रक्रिया
में चाहे वह किसी भी प्रकार से हो,
भागीदारी को बढ़ाया जा सके। सभी राजनीतिक दल यह चाहते हैं कि भारतीय
राजनीति में इन वर्गों का समान प्रतिनिधित्व प्राप्त हो और इन वर्गों के लोगों की
भागीदारी शासन में बढ़े।
2. नई आर्थिक नीति : भारत में वर्ष 1991 में नई आर्थिक नीति को
अपनाया गया था और इस नीति के माध्यम से वैश्वीकरण उदारीकरण और निजी करण जैसी
प्रक्रिया को भारतीय अर्थव्यवस्था में शामिल किया गया था। नई आर्थिक नीति का
उद्देश्य भारत में तीव्र गति से आर्थिक विकास को बढ़ाना था और भारत में निवेश की
संभावनाओं को बढ़ाना तथा व्यापार में तेजी से वृद्धि करना भी इसका लक्ष्य था। भारत
के अधिकांश राजनीतिक दल इस बात से पूरी तरह से सहमत हैं कि भारत के तीव्र आर्थिक
विकास के लिए नई आर्थिक नीति आवश्यक है और इस दिशा में उचित कार्य करने की निरंतर
आवश्यकता भी है।
3. क्षेत्रीय दलों का महत्व : भारत के अधिकांश राजनीतिक दल इस बात
पर भी सहमत हैं कि सरकार निर्माण में क्षेत्रीय दलों का काफी विशेष महत्व होता है
और यह महत्व केंद्र में 1989 से बहुत अधिक बढ़ गया है। सभी राजनीतिक दल जय मानते
हैं कि इन क्षेत्रीय दलों को विशेष महत्व देना ही होगा क्योंकि सरकार के निर्माण
में चाहे वह राज्य स्तर पर हो या केंद्र स्तर पर, विशेष भूमिका निभाते हैं।
प्रश्न
12. किस प्रकार सिंडिकेट और इंदिरा गांधी के बीच परस्पर
गुटबाजी के परिणाम स्वरूप 1969 में कांग्रेस का विभाजन हुआ।
उत्तर. वर्ष 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया था और इसके पीछे इंदिरा गांधी तथा
सिंडीकेट के बीच व्यापक मतभेद एक प्रमुख कारक था। 1969 में
हुए कांग्रेस पार्टी के विभाजन को हम इंदिरा गांधी और सिंडिकेट के गुटबाजी का
परिणाम कह सकते हैं। 1969 में कांग्रेस के विभाजन के लिए
निम्नलिखित परिस्थितियां उत्तरदाई थी-
1.
1969 में कांग्रेस पार्टी के विभाजन के लिए एक महत्वपूर्ण कारक यह
भी था कि इंदिरा गांधी सिंडिकेट नेताओं को पर्याप्त महत्व नहीं देती थी जिसके कारण
सिंडिकेट के नेता इंदिरा गांधी से नाराज रहते थे और अंततः 1969 में कांग्रेस पार्टी की विभाजन के बाद यह नाराजगी दूर हो पाई।
2.
1969 में कांग्रेस पार्टी के विभाजन के पीछे इंदिरा गांधी की
समाजवादी नीतियां भी जिम्मेदार कारक रही हैं। इंदिरा गांधी इन समाजवादी नीतियों को
लागू करना चाहती थी जबकि सिंडिकेट की राय उनसे बिल्कुल अलग थी।
3.
1969 में कांग्रेस पार्टी का विभाजन इसलिए भी हुआ क्योंकि सिंडीकेट
के नेताओं और युवा नेताओं में काफी मतभेद देखने को मिल रहे थे। सिंडिकेट के
प्रभावशाली और अनुभवशाली नेताओं के बीच काफी गहरा मनमुटाव हो गया था और दोनों ही
एक दूसरे की राय से सहमत नहीं थे।
4.
इंदिरा गांधी बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना चाहती थी और उन्होंने 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण भी किया था लेकिन बैंकों के राष्ट्रीयकरण के
लिए सिंडिकेट नेताओं के साथ इंदिरा गांधी की सहमति नहीं थी और सिंडिकेट नेता
इंदिरा गांधी के इस निर्णय से संतुष्ट नहीं थे।
5.
भारत में आजादी के बाद देसी रियासतों के राजाओं को कुछ विशेषाधिकार
दिए गए थे जिन्हें प्रिवी पर्स कहा जाता है। इंदिरा गांधी इस विशेषाधिकार नियम
अर्थात प्रिवी पर्स को समाप्त करना चाहती थी लेकिन तत्कालीन विदेश मंत्री मोरारजी
देसाई इस बात पर सहमत नहीं थे कि प्रिवी पर्स को समाप्त किया जाए।
6.
वर्ष 1969 में देश में राष्ट्रपति पद के चुनाव
आयोजित होने थे और इस चुनाव में कांग्रेस की तरफ से आधिकारिक उम्मीदवार नीलम संजीव
रेड्डी थे। सभी इस बात से आश्वस्त थे कि नीलम संजीवा रेड्डी आसानी से चुनाव जीत
जाएंगे और देश के राष्ट्रपति बन जाएंगे लेकिन इंदिरा गांधी के एक बयान से जिसमें
उन्होंने वीवी गिरी को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के तौर पर खड़ा किया था,
राष्ट्रपति चुनाव जितवा दिया जिसके बाद कांग्रेस पार्टी का विभाजन
अवश्यंभावी हो गया।
7.
इंदिरा गांधी का कांग्रेस पार्टी से निष्कासन अंततः कांग्रेस पार्टी
के विभाजन का अंतिम कारण बना। सिंडिकेट ने राष्ट्रपति पद के चुनाव के बाद इंदिरा
गांधी को कांग्रेस पार्टी से निष्कासित कर दिया और इस तरह से कांग्रेस पार्टी दो
भागों में विभाजित हो गई जिसमें कॉन्ग्रेस (R) का
प्रतिनिधित्व इंदिरा गांधी कर रही थी और कॉन्ग्रेस (O) का
प्रतिनिधित्व सिंडिकेट कर रहे थे।
प्रश्न 13. चीनी अर्थव्यवस्था की
उन्नति के लिए उत्तरदाई कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर. चीन वर्तमान समय में विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में
से एक है। चीन बहुत तेजी से आर्थिक विकास करता जा रहा है और एक अनुमान के अनुसार
आने वाले कुछ वर्षों में यह विश्व की सबसे बड़ी और विकसित अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
चीनी अर्थव्यवस्था के उन्नति के लिए कुछ कारक इस प्रकार जिम्मेदार हैं-
1. चीन ने वर्ष 1972 में अमेरिका से अपने संबंधों को अच्छा करने का
प्रयास किया तथा अपने राजनीतिक और आर्थिक एकांतवास को समाप्त किया और इस नीति से
चीन ने अपने आर्थिक विकास को काफी तेजी से आगे बढ़ाया।
2. वर्ष 1973 में प्रधानमंत्री चाउ एन लाई ने कृषि उद्योग सेवा और
विज्ञान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण के चार प्रस्ताव रखें। इस
आधुनिकीकरण के प्रस्ताव के बाद चीन ने अपना विकास काफी तेजी से करना शुरू किया।
3. चीन का आर्थिक विकास वर्ष 1978 में डेंग शियाओपिंग के द्वारा
आर्थिक सुधार और खुले द्वार की नीति के बाद काफी तेजी से होना शुरू हुआ। वर्ष 1978
की खुले द्वार की नीति ने चीन के आर्थिक विकास की गति को काफी तेजी से बढ़ाना शुरू
किया और उसके परिणाम हम आज भी देख रहे हैं।
4. वर्ष 1982 में चीन में खेती का निजीकरण कर दिया गया और इसके
कारण चीन में कृषि के क्षेत्र में काफी तेजी से विकास देखने को मिला जिसने देश के
विकास में भी काफी योगदान दिया।
5. वर्ष 1998 में चीन में उद्योगों का निजीकरण किया गया। इसके साथ
ही चीन में विशेष आर्थिक जोन बनाए गए जिनका उद्देश्य विदेशी निवेश को बढ़ावा देना
था और देश के विकास को तीव्र करना था।
6. चीन ने अपने आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिए वर्ष 2001 में विश्व
व्यापार संगठन में शामिल होने का निर्णय लिया और इस तरह से चीन ने अपने
अर्थव्यवस्था को विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के साथ जोड़ने का एक विशेष कार्य
किया जिसका फायदा उसे तीव्र आर्थिक विकास के रूप में देखने को मिला।