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  • CLASS: X
    SUBJECT: SOCIAL SCIENCE
    WORKSHEET SOLUTION: 80
    DATE: 04/02/2022

    SOLUTIONS

    अध्याय -3 : भारत में राष्ट्रवाद

    सामूहिक अपनेपन का भाव

    प्रिय विद्यार्थियों, कार्यपत्रक 79 में हमने पढ़ा कि किस प्रकार मातृ छवि के प्रति श्रद्धा को राष्ट्रवाद में आस्था का प्रतीक माना जाने लगा। इस कार्यपत्रक में हम भारत में राष्ट्रवाद के विचार के विकास में भारतीय लोककथा, चिन्हों और प्रतीकों तथा इतिहास के प्रभाव को पढ़ेंगे।

    भारतीय लोक कथाएं-19वीं सदी के आखिर में राष्ट्रवादियों ने भाटो और चारणों द्वारा गाई सुनाई जाने वाली लोक कथाओं को दर्ज करना शुरू कर दिया। वे लोकगीतों व जनश्रुतियों को इकट्ठा करने के लिए गांव गांव घूमने लगे। उनका मानना था कि वही कहानियां हमारी उस परंपरागत संस्कृति की सही तस्वीर पेश करती है जो बाहरी ताकतों के प्रभाव से भ्रष्ट और दूषित हो चुकी हैं। अपनी राष्ट्रीय पहचान को ढूंढने और अपने अतीत में गौरव का भाव पैदा करने के लिए इस लोक परंपरा को बचा कर रखना जरूरी था। बंगाल में रविंद्र नाथ टैगोर स्वयं लोक गाथा गीत, बाल गीत और मिथकों को इकट्ठा करने लगे। उन्होंने लोक परंपराओं को पुनर्जीवित करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया। मद्रास में नटैसा शास्त्री ने द फोकलॉर्स ऑफ साउदर्न इंडिया के नाम से तमिल लोक कथाओं का विशाल संकलन चार खंडों में प्रकाशित किया। उनका मानना था कि लोक कथाएं राष्ट्रीय साहित्य होती हैं, यह लोगों की असली विचारों और विशेषताओं की सबसे विश्वसनीय अभिव्यक्ति हैं।

    चिन्ह और प्रतीक (झंडा)-राष्ट्रीय आंदोलन के विकास के साथ ही राष्ट्रवादी नेता लोगों को एकजुट करने और उन में राष्ट्रवाद की भावना भरने के लिए चिन्हों और प्रतीकों के बारे में और ज्यादा जागरूक होते गए। बंगाल में स्वदेशी आंदोलन के दौरान एक तिरंगा झंडा (हरा, पीला, लाल) तैयार किया गया। इनमें ब्रिटिश भारत के 8 प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते कमल के आठ फूल और हिंदुओं और मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता एक अर्धचंद्र दर्शाया गया था। 1921 तक गांधी जी ने भी स्वराज का झंडा तैयार कर लिया था। यह भी तिरंगा (सफेद, हरा और लाल) था। इसके मध्य में गांधीवादी प्रतीक चरके को जगह दी गई थी जो स्वावलंबन का प्रतीक था। जुलूस में यह झंडा थामे चलना शासन के प्रति अवज्ञा का संकेत था।

    इतिहास-इतिहास की पुनःव्याख्या राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने का एक और साधन थी। अंग्रेजों की नजर में भारतीय पिछड़े हुए और आदिम लोग थे जो अपना शासन खुद नहीं संभाल सकते थे। इसके जवाब में भारत के लोग अपनी महान उपलब्धियों की खोज में अतीत की ओर देखने लगे। उन्होंने उस गौरवमई प्राचीन युग के बारे में लिखना शुरू कर दिया जब कला और वास्तु शिल्प, विज्ञान और गणित, धर्म और संस्कृति, कानून और दर्शन, हस्तकला और व्यापार फल-फूल रहे थे। उनका कहना था कि इस महान युग के बाद पतन का समय आया और भारत को गुलाम बना लिया गया। इस राष्ट्रवादी इतिहास में पाठकों को अतीत में भारत की महानता व उपलब्धियों पर गर्व करने और ब्रिटिश शासन के तहत दुर्दशा से मुक्ति के लिए संघर्ष मार्ग अपनाने का आह्वान किया जाता था।

    निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

    प्रश्न 1. लोककथा को पुनर्जीवित करने के आंदोलन से किस प्रकार राष्ट्रवाद का विचार मजबूत हुआ?

    उत्तर. भारतीय लोक कथाएं-19वीं सदी के आखिर में राष्ट्रवादियों ने भाटो और चारणों द्वारा गाई सुनाई जाने वाली लोक कथाओं को दर्ज करना शुरू कर दिया। वे लोकगीतों व जनश्रुतियों को इकट्ठा करने के लिए गांव गांव घूमने लगे। उनका मानना था कि वही कहानियां हमारी उस परंपरागत संस्कृति की सही तस्वीर पेश करती है जो बाहरी ताकतों के प्रभाव से भ्रष्ट और दूषित हो चुकी हैं। अपनी राष्ट्रीय पहचान को ढूंढने और अपने अतीत में गौरव का भाव पैदा करने के लिए इस लोक परंपरा को बचा कर रखना जरूरी था। बंगाल में रविंद्र नाथ टैगोर स्वयं लोक गाथा गीत, बाल गीत और मिथकों को इकट्ठा करने लगे। उन्होंने लोक परंपराओं को पुनर्जीवित करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया। मद्रास में नटैसा शास्त्री ने द फोकलॉर्स ऑफ साउदर्न इंडिया के नाम से तमिल लोक कथाओं का विशाल संकलन चार खंडों में प्रकाशित किया। उनका मानना था कि लोक कथाएं राष्ट्रीय साहित्य होती हैं, यह लोगों की असली विचारों और विशेषताओं की सबसे विश्वसनीय अभिव्यक्ति हैं।

     

    प्रश्न 2. चिन्हों और प्रतीकों, इतिहास आदि ने किस प्रकार भारत में राष्ट्रवाद को साकार करने में अपना योगदान दिया?

    उत्तर. चिह्न और प्रतीक तथा इतिहास ने भारत में राष्ट्रवाद को साकार करने में  प्रकार से अपना योगदान दिया

    चिन्ह और प्रतीक (झंडा)-राष्ट्रीय आंदोलन के विकास के साथ ही राष्ट्रवादी नेता लोगों को एकजुट करने और उन में राष्ट्रवाद की भावना भरने के लिए चिन्हों और प्रतीकों के बारे में और ज्यादा जागरूक होते गए। बंगाल में स्वदेशी आंदोलन के दौरान एक तिरंगा झंडा (हरा, पीला, लाल) तैयार किया गया। इनमें ब्रिटिश भारत के 8 प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते कमल के आठ फूल और हिंदुओं और मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता एक अर्धचंद्र दर्शाया गया था। 1921 तक गांधी जी ने भी स्वराज का झंडा तैयार कर लिया था। यह भी तिरंगा (सफेद, हरा और लाल) था। इसके मध्य में गांधीवादी प्रतीक चरके को जगह दी गई थी जो स्वावलंबन का प्रतीक था। जुलूस में यह झंडा थामे चलना शासन के प्रति अवज्ञा का संकेत था।

    इतिहास-इतिहास की पुनःव्याख्या राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने का एक और साधन थी। अंग्रेजों की नजर में भारतीय पिछड़े हुए और आदिम लोग थे जो अपना शासन खुद नहीं संभाल सकते थे। इसके जवाब में भारत के लोग अपनी महान उपलब्धियों की खोज में अतीत की ओर देखने लगे। उन्होंने उस गौरवमई प्राचीन युग के बारे में लिखना शुरू कर दिया जब कला और वास्तु शिल्प, विज्ञान और गणित, धर्म और संस्कृति, कानून और दर्शन, हस्तकला और व्यापार फल-फूल रहे थे। उनका कहना था कि इस महान युग के बाद पतन का समय आया और भारत को गुलाम बना लिया गया। इस राष्ट्रवादी इतिहास में पाठकों को अतीत में भारत की महानता व उपलब्धियों पर गर्व करने और ब्रिटिश शासन के तहत दुर्दशा से मुक्ति के लिए संघर्ष मार्ग अपनाने का आह्वान किया जाता था।

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