CLASS: X
SUBJECT: SOCIAL SCIENCE
WORKSHEET SOLUTION: 73
DATE: 25/01/2022
SOLUTIONS
अध्याय -3 : भारत में राष्ट्रवाद
हालांकि रौलट सत्याग्रह एक बड़ा आंदोलन था लेकिन अभी भी वह मुख्य रूप से शहरों और कस्बों तक ही सीमित था। महात्मा गांधी पूरे भारत में और ज्यादा जनाधार वाला आंदोलन खड़ा करना चाहते थे। इसके लिए वह हिंदू मुसलमानों को एक दूसरे के नजदीक लाना चाहते थे। उन्हें लगता था कि खिलाफत का मुद्दा उठाकर वे दोनों समुदायों को नजदीक ला सकते हैं। खिलाफत आंदोलन प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हो चुका था और ऑटोमन तुर्की की हार हो चुकी थी। इस आशय की अफवाह फैली हुई थी कि इस्लामिक विश्व के आध्यात्मिक नेता (खलीफा) ऑटोमन सम्राट पर एक बहुत सख्त शांति संधि थोपी जाएगी। खलीफा की तात्कालिक शक्तियों की रक्षा के लिए मार्च 1919 में मुंबई में एक खिलाफत समिति का गठन किया गया था। मोहम्मद अली और शौकत अली बंधुओं के साथ-साथ कई युवा मुस्लिम नेताओं ने इस मुद्दे पर संयुक्त जन कार्रवाई की संभावना तलाशने के लिए महात्मा गांधी के साथ चर्चा शुरू कर दी थी। सितंबर 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में महात्मा गांधी ने दूसरे नेताओं को इस बात पर राजी कर लिया था कि खिलाफत आंदोलन के समर्थन और स्वराज के लिए एक असहयोग आंदोलन शुरू किया जाना चाहिए। असहयोग आंदोलन अपनी प्रसिद्ध पुस्तक हिंद स्वराज 1909 में महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से ही स्थापित हुआ था और यह शासन इसी सहयोग के कारण चल पा रहा है। अगर भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले ले तो साल भर के भीतर ब्रिटिश शासन ढह जाएगा और स्वराज की स्थापना हो जाएगी। असहयोग के विचार को एक आंदोलन बनाने के लिए गांधीजी का सुझाव था कि यह आंदोलन चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ना चाहिए। सबसे पहले लोगों को सरकार द्वारा दी गई पदवियां लौटा देनी चाहिए और सरकारी नौकरियों, सेना, पुलिस, अदालतों, विधान परिषदों, स्कूलों और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना चाहिए। अगर सरकार दमन का रास्ता अपनाती है तो व्यापक सविनय अवज्ञा अभियान भी शुरू किया जाए। दिसंबर 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में असहयोग कार्यक्रम पर स्वीकृति की मुहर लगा दी गई। जनवरी 1921 में असहयोग-खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ। |
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1. खिलाफत आंदोलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर. प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हो चुका था और ऑटोमन तुर्की की हार हो चुकी थी। इस आशय की अफवाह फैली हुई थी कि इस्लामिक विश्व के आध्यात्मिक नेता (खलीफा) ऑटोमन सम्राट पर एक बहुत सख्त शांति संधि थोपी जाएगी। खलीफा की तात्कालिक शक्तियों की रक्षा के लिए मार्च 1919 में मुंबई में एक खिलाफत समिति का गठन किया गया था। मोहम्मद अली और शौकत अली बंधुओं के साथ-साथ कई युवा मुस्लिम नेताओं ने इस मुद्दे पर संयुक्त जन कार्रवाई की संभावना तलाशने के लिए महात्मा गांधी के साथ चर्चा शुरू कर दी थी। सितंबर 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में महात्मा गांधी ने दूसरे नेताओं को इस बात पर राजी कर लिया था कि खिलाफत आंदोलन के समर्थन और स्वराज के लिए एक असहयोग आंदोलन शुरू किया जाना चाहिए।
प्रश्न 2. असहयोग आंदोलन के प्रमुख कार्यक्रमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर. अपनी प्रसिद्ध पुस्तक हिंद स्वराज 1909 में महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से ही स्थापित हुआ था और यह शासन इसी सहयोग के कारण चल पा रहा है। अगर भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले ले तो साल भर के भीतर ब्रिटिश शासन ढह जाएगा और स्वराज की स्थापना हो जाएगी।
असहयोग के विचार को एक आंदोलन बनाने के लिए गांधीजी का सुझाव था कि यह आंदोलन चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ना चाहिए। सबसे पहले लोगों को सरकार द्वारा दी गई पदवियां लौटा देनी चाहिए और सरकारी नौकरियों, सेना, पुलिस, अदालतों, विधान परिषदों, स्कूलों और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना चाहिए। अगर सरकार दमन का रास्ता अपनाती है तो व्यापक सविनय अवज्ञा अभियान भी शुरू किया जाए।
दिसंबर 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में असहयोग कार्यक्रम पर स्वीकृति की मुहर लगा दी गई। जनवरी 1921 में असहयोग-खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ।