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  • राजनीति विज्ञान

    कक्षा-XII

    राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ

    कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

    प्रश्न 1. आज़ादी के बाद भारत के सामने पहली चुनौती क्या थी?(1)

    उत्तर. आज़ादी के बाद भारत के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने की चुनौती थी।

    प्रश्न 2. भाग्यवधू से चिर प्रतीक्षित भेंट या ट्रिस्ट विद डेस्टिनी नामक भाषण कब और किसके द्वारा दिया गया था ? (1)

    उत्तर. भाग्यवधू से चिर प्रतीक्षित भेंट (Tryst with destiny) भाषण 14-15 अगस्त की मध्य रात्रि को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के द्वारा दिया गया था।

    प्रश्न 3. द्वि राष्ट्रवाद का सिद्धान्त किसके द्वारा दिया गया था और यह क्या था ? (1)

    उत्तर. द्वि राष्ट्रवाद का सिद्धान्त मुस्लिम लीग पार्टी के द्वारा दिया गया था जिसके एक प्रमुख नेता मोहम्मद अली जिन्ना भी इस सिद्धान्त के लिए उत्तरदायी थे। इस सिद्धांत के अनुसार भारत में दो राष्ट्रीयता के लोग हैं मुस्लिम और गैर मुस्लिम (हिन्दू) इसलिए भारत को दो देशों में विभाजित किया जाना चाहिए और पाकिस्तान नाम का देश मुस्लिमों के लिए बनाना चाहिए।

    प्रश्न 4. स्वतंत्रता आन्दोलन के उस नेता का नाम बताइए जिसे सीमांत गांधी के नाम से जाना जाता है? (1)

    उत्तर. खान अब्दुल गफ्फार खान को सीमांत गांधी के नाम से भी जाना जाता है।

    प्रश्न 5. 1947 में भारत के विभाजन के समय कौन से दो प्रांतों को धर्म के आधार पर बांटा गया था? (1)

    उत्तर. वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के  बाद हुए विभाजन के कारण पंजाब और बंगाल प्रांतों को धर्म के आधार पर बांटा गया था।

    प्रश्न 6. देसी रियासतों को भारतीय संघ में शामिल होने के लिए मनाने समझाने में ऐतिहासिक भूमिका निभाने वाले नेता का नाम बताइए।(1)

    उत्तर. भारत की स्वतंत्रता के समय लगभग 565 देशी रियासतें थीं। इन रियासतों को भारत में शामिल करने के लिए इनके राजाओं को मनाने और समझाने में सरदार वल्लभ भाई पटेल की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी।

    प्रश्न 7. पोट्टी श्रीरामुलु कौन थे और उनकी अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल का क्या परिणाम हुआ ? (1)

    उत्तर. पोट्टी श्रीरामुलु एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और गांधीवादी नेता थे। इन्होंने वर्ष 1952 में मद्रास प्रांत से तेलुगु भाषी लोगों के लिए अलग राज्य की मांग के लिए अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल प्रारंभ की जिसके कारण 56 दिन के बाद इनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद सरकार ने भाषा के आधार पर भारत का पहला राज्य आंध्र प्रदेश गठित किया।

    प्रश्न 8. विलय पत्र या इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन से आप क्या समझते हैं ?(1)

    उत्तर. विलय पत्र जिसे अंग्रेजी में इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन कहते हैं, एक प्रकार का कानूनी दस्तावेज था जिसके आधार पर देशी रियासतों को हस्ताक्षर करवाकर भारत में शामिल किया जाता था।

    प्रश्न 9. स्वतंत्रता के बाद किन दो बातों पर सभी सहमत थे ? (1)

    उत्तर. स्वतंत्रता के बाद भारत के सभी नेता और दल इन दो बातों पर सहमत थे-

    1. भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था से शासन प्रणाली चलाई जायेगी।

    2. सभी वर्गों के लिए एक समान नीतियां बनाई जाएंगी जिससे सभी वर्गों का सामान विकास संभव हो सके।

    प्रश्न 10. आज़ादी के बाद भारत के किस राज्य में सर्वप्रथम चुनाव हुए थे?(1)

    उत्तर. स्वतंत्रता के बाद भारत के मणिपुर राज्य में वर्ष 1948 में पहली बार चुनाव हुए।

    प्रश्न 11.आज़ादी के समय भारत को किन तीन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ा? (4)

    उत्तर. भारत को वर्ष 1947 में आजादी प्राप्त हुई और भारत को आजाद होते ही कुछ प्रमुख चुनौतियों का सामान भी करना पड़ा। जिन परिस्थितियों में हमें आजादी मिली थी वे काफी प्रतिकूल थीं। स्वतंत्रता के समय भारत को निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करना पड़ा था-

    1. एकता और अखंडता को बनाने की चुनौती - स्वतंत्रता के समय भारत को एकता और अखंडता को बनाए रखने की एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। स्वतंत्रता के समय भारत को सर्वप्रथम विभाजन का सामना करना पड़ा और इसके बाद भारत को 565 देसी रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करने और भारत के सभी राज्यों को भारत में जोड़े रखने और एक अखंड भारत के निर्माण का बड़ा कार्य करना था। दक्षिण भारत में नए राज्यों की मांग और भारत के अन्य क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के अलगाववादी आंदोलन के कारण भारत की क्षेत्रीय अखंडता और एकता संकट में थी। भारत की सांस्कृतिक विविधता और भाषा के आधार पर लोगों में काफी अंतर था ऐसे में सभी भारतीयों को एकजुट करना और एकता के सूत्र में बांधना एक बड़ा प्रश्न था।

    2. लोकतंत्र स्थापित करना - स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने अपना संविधान लागू किया और संविधान में भारत को एक लोकतांत्रिक देश घोषित किया। भारतीय संविधान में यह बात तय कर दी गई कि शासन का स्वरूप लोकतांत्रिक होगा और भारत में संसदीय शासन व्यवस्था अपनाई जाएगी। भारत के सभी लोगों को मौलिक अधिकारों की गारंटी दी गई और वयस्क मताधिकार की व्यवस्था भी की गई। इस तरह यह बात तो तय हो गई कि भारत में संसदीय शासन व्यवस्था के आधार पर प्रतिनिधि लोकतंत्र स्थापित होगा लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यह था कि भारत के प्रत्येक भाग में इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित कैसे किया जाए और किस प्रकार से भारत के लोगों को लोकतांत्रिक शासन प्रणाली से परिचित कराया जाए और उनकी भागीदारी को सुनिश्चित किया जा सके।

    3. समानता पर आधारित विकास की चुनौती - स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष एक सर्वाधिक बड़ी चुनौती समानता पर आधारित समस्त जनता के विकास की चुनौती के रूप में सामने आई। विकास की नीतियां इस प्रकार निर्धारित होनी चाहिए जिससे समाज के किसी एक वर्ग का भला ना हों बल्कि समस्त समाज का कल्याण हो सके। भारतीय संविधान में यह बात तय कर दी गई थी कि देश में सभी के साथ समानता का व्यवहार हो और सामाजिक रूप से वंचित तथा धार्मिक सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को विशेष सुरक्षा भी दी जाए।

    भारतीय संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के माध्यम से समाज के लोक कल्याणकारी सिद्धांतों की व्यवस्था भी कर दी थी जिससे कि सरकार समय-समय पर इन सिद्धांतों को लागू करके लोक कल्याण के कार्य को पूर्ण करती रहे। स्वतंत्रता के समय अब सरकार के समक्ष एक बड़ी चुनौती यह थी कि विकास की रणनीतियां को किस प्रकार तय किया जाए जिससे कि विभाजन के बाद हुई त्रासदी के कारण किसी एक वर्ग का विकास ही ना हो बल्कि इन योजनाओं से समाज के सभी वर्गों का विकास समान रूप से संभव हो सके।

    प्रश्न 12. राज्य पुनर्गठन आयोग से आप क्या समझते हैं ? इसकी प्रमुख सिफारिशों का वर्णन कीजिए।(4)

    उत्तर. राज्य पुनर्गठन आयोग (SRC) - वर्ष 1920 में कांग्रेस के अधिवेशन में कांग्रेस के नेताओं ने इस बात पर सहमति व्यक्त की थी कि स्वतंत्रता के बाद भारत में राज्यों का निर्माण वहां पर बोले जाने वाली भाषाओं के आधार पर किया जाएगा। आजादी के बाद भारत में भाषाओं के आधार पर राज्यों के निर्माण की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया गया जिसके कारण कांग्रेस के कुछ दक्षिण भारतीय नेता नाराज हो गए और उनमें से एक गांधीवादी नेता पोट्टी श्रीरामुलु ने वर्ष 1952 में मद्रास प्रांत से तेलुगु भाषी लोगों के लिए एक अलग राज्य की मांग के लिए आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया लगभग 56 दिन के बाद पोट्टी श्रीरामलू की मृत्यु हो गई और इस क्षेत्र में हिंसक प्रदर्शन प्रारंभ हो गए सरकार ने इन परिस्थितियों में मद्रास प्रांत से तेलुगु भाषी लोगों के लिए एक अलग राज्य आंध्र प्रदेश के निर्माण की घोषणा कर दी।

    सरकार ने भविष्य में इस प्रकार की परिस्थितियों से बचने के लिए और भारत में राज्यों के पुनर्गठन से संबंधित नीतियों को निर्धारित करने के लिए वर्ष 1953 में एक आयोग का गठन किया जिसे राज्य पुनर्गठन आयोग कहा जाता है। सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश फजल अली को इस आयोग का अध्यक्ष बनाया गया तथा हृदयनाथ कुंजरू और के एम पाणिकर इसके दो अन्य सदस्य नियुक्त किए गए। इस आयोग ने राज्यों के पुनर्गठन से संबंधित अपने कार्यों को पूरा करके अपनी रिपोर्ट वर्ष 1955 में भारत सरकार को सौंप दी जिस के कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार थे -

    1. भारत की राज्यों की त्रिस्तरीय व्यवस्था (A B C) को समाप्त किया जाए।

    2. भारत में राज्यों की सीमा का निर्धारण वहां पर बोले जाने वाली भाषाओं के आधार पर किया जाना चाहिए।

    3. भारत के सभी केंद्र शासित प्रदेशों को उनके आसपास के राज्यों में मिला दिया जाना चाहिए केवल दिल्ली, मणिपुर और अंडमान निकोबार को छोड़कर।

    राज्य पुनर्गठन आयोग ने वर्ष 1955 में अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को सौंप दी और फिर भारतीय संसद ने इस रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया और देश को 14 राज्य एवं 6 संघ शासित क्षेत्रों में बांटा।

    प्रश्न 13. विभाजन के किन्हीं तीन परिणामों की व्याख्या कीजिए।(6)

    उत्तर. भारत का विभाजन वर्ष 1947 में भारत और पाकिस्तान के रूप में हुआ था भारत का यह विभाजन काफी भयानक, अनियोजित, अव्यवस्थित और त्रासदी भरा साबित हुआ था। भारत को स्वतंत्रता प्राप्त होने के साथ ही विभाजन की विभीषिका भी झेलनी पड़ी थी भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजित हो जाने के बाद भारत को निम्नलिखित परिणामों का सामना करना पड़ा -

    1. शरणार्थी पुनर्वास - वर्ष 1947 में धर्म के आधार पर भारत और पाकिस्तान का विभाजन एक अत्यंत त्रासदी भरा निर्णय था। विभाजन की इस विभीषिका ने शरणार्थियों के पुनर्वास की एक बड़ी समस्या को जन्म दिया जिससे हजारों की संख्या में प्रतिदिन शरणार्थी दिल्ली आने लगे थे। इन लोगों को पाकिस्तान में हो रहे जनसंहार, लूटपाट, बलात्कार और तोड़फोड़ के कारण भारत आना पड़ रहा था और इन लोगों के मन में घृणा की एक भावना का जन्म हो रहा था। इतनी बड़ी संख्या में प्रतिदिन शरणार्थियों के आने से एक बहुत ही विकट समस्या सामने आ गई थी क्योंकि देश उस समय आर्थिक पिछड़ेपन से जूझ रहा था और ऐसे में इन लोगों को पुनर्वास की भी बेहद जरूरत थी।

    2. सांप्रदायिक दंगे - भारत और पाकिस्तान के विभाजन की सबसे बड़ी त्रासदी हिंदू-मुस्लिम दंगों के रूप में सामने आई। भारत के विभाजन के बाद लाहौर, अमृतसर और कलकत्ता जैसे शहरों में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे और इन दंगों ने भारी मात्रा में लोगों को नुकसान पहुंचाया तथा इन शहरों को सांप्रदायिक अखाड़े के रूप में परिवर्तित कर दिया। हिंदू-मुस्लिम दंगों के कारण लोगों के मन में ईर्ष्या की भावना का जन्म हुआ और हिंदू बहुल क्षेत्रों में मुस्लिम लोगों ने जाना छोड़ दिया था तथा मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हिंदुओं ने जाना छोड़ दिया था। भारत के विभाजन के बाद सांप्रदायिक दंगों ने लोगों के मनों पर गहरी चोट पहुंचाई और इन दंगों के कारण काफी मात्रा में अल्पसंख्यक लोगों ने अपना घर बार छोड़ दिया।

    3. आबादी का स्थानांतरण - भारत के विभाजन के कारण भारी मात्रा में आबादी का एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरण हुआ और यह स्थानांतरण पूरी तरह से अनियोजित, अव्यवस्थित, आकस्मिक, और त्रासदी से भरा साबित हुआ। विभाजन के बाद भारी मात्रा में धर्म के आधार पर लोगों को मारा गया इस प्रकार विभाजन में सिर्फ संपदा, देनदारी और परिसंपत्तियों का ही बटवारा नहीं हुआ बल्कि दो समुदायों का भी बटवारा हिंसक तरीके से हुआ।

    प्रश्न 14. देशी रियासतों के एकीकरण में सरदार वल्लभ भाई पटेल के योगदान का विश्लेषण कीजिए।(6)

    उत्तर. भारत की स्वतंत्रता की घोषणा के साथ ही यह भी घोषित किया गया कि भारत और पाकिस्तान दो देश बनेंगे तथा विभिन्न प्रकार की देशी रियासतों को भारत या पाकिस्तान में मिलने या फिर स्वतंत्र रहने की आजादी होगी। इस प्रकार देशी रियासतों को भारत में शामिल करना एक बहुत बड़ा प्रश्न था। स्वतंत्रता के समय भारत में 565 देशी रियासतें थी और इन रियासतों को भारत में शामिल करना एक अपरिहार्य प्रश्न था। देशी रियासतों को भारत में शामिल करने के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति नजर नहीं आया और उनसे अच्छा यह कार्य शायद ही कोई कर पाता। देशी रियासतों के एकीकरण में सरदार वल्लभ भाई पटेल की भूमिका को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझने का प्रयास कर सकते हैं -

    1. सरदार वल्लभभाई पटेल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक बहुत बड़े राजनेता और कार्यकर्ता थे। सरदार वल्लभभाई पटेल ने वर्ष 1918 में खेड़ा सत्याग्रह तथा वर्ष 1928 में बारदोली सत्याग्रह का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अहिंसात्मक प्रदर्शन में सफलता प्राप्त की।

    2. सरदार वल्लभभाई पटेल स्वतंत्र भारत के प्रथम गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री थे और सरदार वल्लभ भाई पटेल एक सफल बैरिस्टर और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे जिन्हें लोह पुरुष के नाम से भी जाना जाता है।

    3. सरदार वल्लभभाई पटेल एक सफल अधिवेता के रूप में भी जाने जाते थे और इन्होंने विभाजन के बाद पाकिस्तान से आए हुए पंजाब तथा दिल्ली के शरणार्थियों की सहायता की तथा शांति स्थापित करने के भी भरसक प्रयास किए थे।

    4. भारत की स्वतंत्रता के बाद देशी रियासतों को भारत में मिलाने का एक बहुत बड़ा और जटिल प्रश्न सामने आ गया था और ऐसे में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आगे बढ़कर इन सभी 565 देशी रियासतों को भारत में मिलाने के लिए राजी कर लिया था।

    5. सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपनी सूझबूझ, कूटनीति, राजनीति, कौशल एवं दूरदर्शिता के कारण ही आजादी से पहले ही अधिकांश देशी रियासतों को भारत में मिलाने पर सहमति बना ली थी।

    6. सरदार वल्लभभाई पटेल भारतीय की क्षेत्रीय अखंडता और एकता के लिए किसी भी बात से समझौता करने के पक्ष में नहीं थे और उन्होंने इसीलिए देशी रियासतों को मनाने के लिए सभी प्रकार की रणनीतियों का इस्तेमाल किया और सभी राजाओं को भारत में शामिल होने के लिए राजी कर लिया।

    7. सरदार वल्लभभाई पटेल एक बहुत ही प्रभावशाली नेता थे जिन्हें हम एक सच्चा राष्ट्रवादी, उत्प्रेरक तथा यथार्थवादी कहते हैं। सरदार वल्लभभाई पटेल के इन सिद्धांतों के कारण ही आज हम एक अखंड और एकता के सूत्र में बंधे भारत को देख पाते हैं।

    8. सरदार वल्लभ भाई पटेल को भारतीय एकता का सूत्रधार भी कहा जाता है और उन्हें इसका सम्मान देने के लिए भारत सरकार ने स्टैचू ऑफ यूनिटी के नाम से विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति भी बनवाई जो कि गुजरात में स्थित है। इस मूर्ति का अनावरण प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा 31 अक्टूबर 2018 को किया गया और यह मूर्ति लगभग 182 मीटर ऊंची है।

    सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सभी देशी रियासतों को भारत में शामिल करने में अपने महत्वपूर्ण और कारगर भूमिका का निर्वहन किया और एक अखंड भारत का निर्माण किया। सरदार वल्लभ भाई पटेल को कश्मीर, जूनागढ़, मणिपुर और हैदराबाद की रियासतों को भारत में मिलाने में काफी समस्या का सामना करना पड़ा और ये रियासतें भारत में बाद में शामिल हुई।

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