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  • CLASS - XII

    SUBJECT - POLITICAL SCIENCE

    संयुक्त राष्ट्र और इसके संगठन

    UNITED NATIONS & ITS ORGANISATION


    अंतरराष्ट्रीय संगठन :- अंतरराष्ट्रीय संगठन ऐसे संगठन को कहा जाता है जिसमें विश्व के बहुत सारे देश शामिल होते हैं और अंतरराष्ट्रीय संगठन के उद्देश्य भी बहुत ही व्यापक होते हैं। अंतरराष्ट्रीय संगठन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवादों के समाधान और शांति व सुरक्षा स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा इसके साथ ही विभिन्न देशों के बीच सौहार्दपूर्ण वातावरण का निर्माण करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र संघ एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संगठन है।

    अंतरराष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता या जरूरत:- वर्तमान समय में अंतरराष्ट्रीय संगठन बहुत ही आवश्यक हो चुके हैं और इन अंतरराष्ट्रीय संगठन के कारण हैं विश्व में बहुत सारे विवादों और तनावों को शांति पूर्वक हल किया जाए रहा है। अंतरराष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता या जरूरत को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं:-

    अंतरराष्ट्रीय संगठन विभिन्न प्रकार के अंतरराष्ट्रीय विवादों और तनाव को दूर करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अंतरराष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता हमें इसलिए भी है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले विवादों या संघर्षों को कोई एक देश अकेला सुलझा नहीं सकता।

    अंतरराष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता हमें युद्ध पर विराम लगाने के लिए भी होती है। अंतरराष्ट्रीय संगठन युद्ध की स्थिति उत्पन्न होने या युद्ध होने पर मध्यस्थ की भूमिका निभा कर उस संघर्ष की स्थिति को दूर करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

    विश्व के आर्थिक विकास में अंतरराष्ट्रीय संगठन बहुत ही महत्वपूर्ण और सहायक होते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों की आर्थिक मदद और विकास से संबंधित योजनाओं और नीतियों के कार्यान्वयन के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठन नितांत आवश्यक है।

    अंतरराष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता हमें इसलिए भी है क्योंकि निरंतर आने वाली प्राकृतिक आपदा और महामारी का सामना मिलकर ही किया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय संगठन सभी देशों को एक मंच पर लेकर आते हैं जिससे कि इन आपदाओं और महामारी का मुकाबला किया जा सके।

    अंतरराष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता है इसलिए भी होती है जिससे कि वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना का विकास किया जा सके। अंतरराष्ट्रीय संगठन विश्व के सभी देशों में आपसी सौहार्द और बंधुत्व की भावना का विकास करते हैं जिससे कि सभी देशों का समुचित विकास संभव हो सके।

    अंतरराष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता हमें विभिन्न प्रकार की वैश्विक समस्याओं के लिए भी होती है क्योंकि इस प्रकार के समस्याओं का सामना कोई एक देश अकेले नहीं कर सकता है। उदाहरण के लिए वैश्विक तापन एक ऐसी समस्या है जिसका प्रत्येक देश नुकसान झेल रहा है और यह वैश्विक समस्या बनकर सामने आई है इसलिए हमें एक ऐसे अंतरराष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता होती है जो इस प्रकार की समस्या को मिलकर सुलझाने का प्रयास करें।

     

    जैसा कि हम जानते ही हैं की प्रथम विश्व युद्ध 1914 से 1918 के मध्य हुआ था और इस विश्व युद्ध के बाद एक ऐसे संगठन की आवश्यकता महसूस हुई जो भविष्य में दूसरे विश्व युद्ध की संभावनाओं को समाप्त करें और विश्व में शांति व्यवस्था स्थापित करने में अपनी भूमिका निभाए।

    इसी उद्देश्य से 10 जनवरी 1920 में राष्ट्र संघ जिसे लीग ऑफ नेशन भी कहा जाता है की स्थापना की गई। लेकिन यह संगठन अपने उद्देश्यों में सफल नहीं रहा क्योंकि वर्ष 1939 से 1945 में दूसरा विश्व युद्ध प्रारंभ हो गया और इसके भयानक परिणाम विश्व के सामने आए। अतः अब एक ऐसे संगठन की आवश्यकता महसूस की जाने लगी जो काफी शक्तिशाली हो, विश्व में सामंजस्य स्थापित करने में सक्षम हो तथा सभी देशों को साथ लेकर चलने के योग्य हो और इसके साथ ही भविष्य को तीसरे विश्वयुद्ध की परिस्थितियों से दूर रखने के लिए तत्पर हो।

    संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) - दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ही विश्व के सभी देशों को ऐसा महसूस होने लगा था कि अब यदि कभी तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो इसके बहुत ही खतरनाक परिणाम देखने को मिलेंगे इसलिए विश्व के शक्तिशाली देशों ने कई बैठक और सम्मेलन के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना और इसके विकास की पृष्ठभूमि को हम इस प्रकार देख सकते हैं -

    अटलांटिक चार्टर - वर्ष 1941 में अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल ने विश्व के सभी देशों को आकृष्ट करने के उद्देश्य से एक घोषणा पत्र प्रकाशित किया जिसे अटलांटिक चार्टर के नाम से जाना जाता है और यह संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्भव की एक प्रमुख कड़ी भी है।

    वॉशिंगटन सम्मेलन - वर्ष 1942 में धुरी शक्तियों के विरुद्ध लड़ रहे 26 मित्र राष्ट्र अटलांटिक चार्टर के समर्थन में वाशिंगटन में मिले और दिसंबर 1943 में संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा पर हस्ताक्षर भी किए गए।

    मास्को घोषणा - अक्टूबर-नवंबर 1943 में ब्रिटेन, सोवियत संघ तथा अमेरिका के विदेश मंत्री और इसके साथ ही चीन के सोवियत संघ स्थित राजदूत ने मिलकर शांति एवं सुरक्षा हेतु अंतरराष्ट्रीय संगठन की स्थापना के लिए विशेष जोर दिया।

    तेहरान सम्मेलन - दिसंबर 1943 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल, सोवियत संघ के राष्ट्रपति स्टालिन तथा अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने ईरान की राजधानी तेहरान में शांति संघ की स्थापना के लिए एक घोषणा पत्र जारी किया।

    याल्टा सम्मेलन - विश्व के 3 बड़े नेताओं जिनमें अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल तथा सोवियत संघ के राष्ट्रपति स्टालिन शामिल थे, इन्होंने फरवरी 1945 में याल्टा में एक सम्मेलन आयोजित किया जिसमें अंतरराष्ट्रीय संगठन के बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ का एक सम्मेलन करने का निर्णय किया।

    सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन - अप्रैल-मई  1945 में सैन फ्रांसिस्को में दो महीने का लंबा एक सम्मेलन संपन्न हुआ जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ को अंतर्राष्ट्रीय संगठन बनाने पर सहमति बनी। इसके बाद 26 जून 1945 को 50 देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए। पोलैंड ने 15 अक्टूबर को हस्ताक्षर किए इस तरह संयुक्त राष्ट्र संघ के कुल मूल संस्थापक सदस्य 51 है। इस तरह 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक स्थापना संपन्न हुई और 24 अक्टूबर को प्रत्येक वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस घोषित किया गया। भारत 30 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बना।

     

    संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य तथा सिद्धांत:

    संयुक्त राष्ट्र संघ का एक प्रमुख उद्देश्य और सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति व्यवस्था बनाए रखना है और इसके लिए विश्व के सभी देशों के साथ बातचीत करके विवादों और संघर्ष की स्थिति को दूर करना संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रमुख उद्देश्य है।

    सयुक्त राष्ट्र संघ का प्रमुख उद्देश्य और सिद्धांत यह भी है कि यह विश्व के सभी देशो के बीच में आपसी सहयोग और मधुर संबंध के लिए भी प्रयास करता रहता है। विश्व के सभी देशों के बीच सहयोगात्मक संबंध बनाए रखना संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रमुख उद्देश्य है।

    संयुक्त राष्ट्र संघ का एक प्रमुख उद्देश्य और सिद्धांत यह भी है कि यह विश्व को तृतीय विश्व युद्ध से बचाने का प्रयास करता है और किसी भी तरह की युद्ध की संभावनाओं को रोकने की कोशिश करता है तथा युद्ध की स्थिति उत्पन्न होने से बचाता है।

    संयुक्त राष्ट्र संघ का एक प्रमुख उद्देश्य और सिद्धांत यह भी है कि यह वैश्विक स्तर पर आर्थिक सहयोग करने का प्रयास करता है जिससे कि विश्व के सभी देशों के बीच आर्थिक संबंधों में मधुरता आए और विश्व के सभी देशों का विकास सुनिश्चित हो सके।

    संयुक्त राष्ट्र संघ का एक प्रमुख उद्देश्य और सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार और लोकतंत्र का प्रचार प्रसार करना है। संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व के प्रत्येक भाग में लोकतंत्र के प्रचार के लिए कार्य करता है और इसके साथ ही प्रत्येक देश में मानव अधिकारों के प्रति देश अपनी जिम्मेदारी को समझें इसके लिए भी संयुक्त राष्ट्र संघ तत्पर रहता है।

    संयुक्त राष्ट्र संघ का एक उद्देश्य और सिद्धांत यह भी है कि यह विश्व में हथियारों की होड़ को रोकने का प्रयास करता है तथा निशस्त्रीकरण की भावना को बढ़ावा देता है। संयुक्त राष्ट्र संघ प्रत्येक सदस्य देश को हथियारों की होड़ से बचने और निशस्त्रीकरण को अपनाने के लिए प्रयासरत रहता है।

    संयुक्त राष्ट्र संघ का एक प्रमुख उद्देश्य और सिद्धांत वैश्विक तापन अर्थात ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटने के लिए उपाय तलाशना भी हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ वैश्विक स्तर पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों और योजनाओं के माध्यम से प्रत्येक देश को ग्लोबल वार्मिंग के प्रति जागरूक करने का प्रयास करता है तथा कम से कम कार्बन उत्सर्जन करने के लिए प्रेरित भी करता है।

    संयुक्त राष्ट्र संघ का एक प्रमुख उद्देश्य और सिद्धांत यह भी है कि विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं और महामारी से मिलकर मुकाबला किया जाए तथा रोकथाम की जाए। संयुक्त राष्ट्र संघ एक वैश्विक मंच के माध्यम से इन प्राकृतिक आपदाओं और महामारी से मुकाबला करने के लिए सभी सदस्य देशों को एकजुट करता है और सहयोगात्मक व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है।

     

    संयुक्त राष्ट्र संघ की संरचना : संयुक्त राष्ट्र संघ वर्तमान समय में एक बहुत बड़ा अंतरराष्ट्रीय संगठन है। वर्तमान समय में 193 देश इसके सदस्य हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में है। मुख्य रूप से संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख छह अंग है जो कि इस प्रकार हैं:

    महासभा : महासभा संयुक्त राष्ट्र संघ का सर्वोच्च अंग है। संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रत्येक सदस्य देश महासभा का भी सदस्य होता है और महासभा में प्रत्येक सदस्य देश का एक वोट होता है। महासभा की बैठक प्रत्येक वर्ष होती है। महासभा कई विषयों पर महत्वपूर्ण कार्य करती है जैसे निशस्त्रीकरण, शांति स्थापना, मानव अधिकारों में वृद्धि करना, संयुक्त राष्ट्र संघ का बजट संबंधी कार्य करना, नए सदस्यों के प्रवेश और निष्कासन का कार्य करना आदि।

    सुरक्षा परिषद : सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र संघ का सर्वाधिक शक्तिशाली अंग है सुरक्षा परिषद के कुल 15 सदस्य होते हैं जिनमें से पांच स्थाई सदस्य होते हैं जिनको वीटो शक्ति प्राप्त होती है तथा 10 अस्थाई सदस्य होते हैं जिनका निर्वाचन 2 वर्ष के लिए किया जाता है। सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्यों में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन शामिल है। सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र संघ का निरंतर कार्य करने वाला अंग है और अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखना इसका महत्वपूर्ण कार्य है।

    आर्थिक और सामाजिक परिषद : आर्थिक और सामाजिक परिषद संयुक्त राष्ट्र संघ का एक प्रमुख अंग है और वर्तमान समय में कुल 54 देश इसके सदस्य हैं। इन सभी सदस्यों का चुनाव 3 वर्ष के लिए किया जाता है तथा प्रत्येक वर्ष एक तिहाई सदस्य पद मुक्त हो जाते हैं और उनके स्थान पर नए सदस्यों का चुनाव कर लिया जाता है। यह परिषद विश्व में आर्थिक और सामाजिक विकास के कार्य को बढ़ाने का कार्य करती हैं। आर्थिक और सामाजिक परिषद संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न अभिकरण के बीच सामंजस्य स्थापित करने का कार्य भी करती है जिससे कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक और सामाजिक विकास में वृध्दि की जा सके।

    न्यासिता परिषद : न्यास परिषद संयुक्त राष्ट्र संघ का एक ऐसा अंग था जिसका कार्य कुछ विशेष क्षेत्रों की देखभाल करना और उन्हें स्वयं प्रशासन योग्य बनाना था अर्थात न्यास परिषद का मुख्य कार्य ऐसे देशों की जिम्मेदारी लेना था जो स्वयं अपना प्रशासन चलाने योग्य नहीं थे। 1 नवंबर 1994 को पलाऊ देश के आजाद हो जाने के बाद से न्यास परिषद की आवश्यकता समाप्त हो गई और यह परिषद स्थगित कर दी गई है।

    अंतरराष्ट्रीय न्यायालय : अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र संघ का एक न्यायिक अंग है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्यालय नीदरलैंड के हेग शहर में स्थित है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं और किसी भी मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए कम से कम 9 न्यायाधीशों की गणपूर्ति आवश्यक है। प्रत्येक न्यायाधीश का कार्यकाल 9 वर्ष होता है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्य कार्य अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाना और कानूनी सलाह देना है। वर्तमान समय में भारत के दलवीर भंडारी भी अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीश हैं।

    सचिवालय : सचिवालय संयुक्त राष्ट्र संघ के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। सचिवालय संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यों के संचालन के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण अंग है जिसका अध्यक्ष महासचिव होता है जो कि 5 वर्ष के लिए चुना जाता है। वर्तमान समय में पुर्तगाल के एंटोनियो गुटेरेस संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव है। सचिवालय संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी अंगों और अभिकरण के लिए कार्यालय संबंधी कार्य करता है। महासचिव संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा सुरक्षा परिषद आर्थिक और सामाजिक परिषद तथा न्यासिता परिषद की बैठकों में भाग लेता है।

     

    संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव : संयुक्त राष्ट्र संघ का महासचिव एक महत्वपूर्ण अधिकारी होता है और यह संयुक्त राष्ट्र संघ का आधिकारिक वक्ता भी होता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी अंगों और अभिकरण  में सामंजस्य स्थापित करने में महासचिव की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव की एक सूची और उनकी प्रमुख भूमिका नीचे दी गई है:

    त्रिग्वे ली (1946-1952) नार्वे : संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रथम महासचिव त्रिग्वे ली थे। वकील और विदेश मंत्री भी थे, कश्मीर की समस्या को लेकर भारत पाकिस्तान के बीच हुई लड़ाई में युद्ध विराम के लिए प्रयास, कोरिया युद्ध को शीघ्र समाप्त करवाने में नाकामयाब रहने पर आलोचना, पुनः महासचिव बनाने का सोवियत संघ ने विरोध किया जिसके बाद इन्होंने पद से त्यागपत्र दे दिया।

    डैग हेमरशोल्ड (1953-1961) स्वीडन : डैग हेमरशोल्ड एक अर्थशास्त्री और वकील थे। इन्होंने स्वेज नहर से जुड़े विवाद को सुलझाने और अफ्रीका के अनोपनिवेशीकरण के लिए काम किया। कांगो संकट को सुलझाने की दिशा में किए गए प्रयासों के लिए इन्हें मरणोपरांत नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया। सोवियत संघ और फ्रांस ने अफ्रीका में इनकी भूमिका की आलोचना भी की।

    यू थांट (1961-1971) म्यांमार : पेशे से शिक्षक और राजनयिक थे। क्यूबा मिसाइल संकट और कांगो संकट को समाप्त करने के लिए प्रयास किया तथा साइप्रस में संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति सेना बहाल की। वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिका की आलोचना भी की।

    कुर्त वालधेम (1972-1981) ऑस्ट्रिया : एक बहुत ही अच्छे कूटनीतिज्ञ और विदेश मंत्री थे। नामीबिया और लेबनान की समस्याओं के समाधान के लिए प्रयास किए। बांग्लादेश में राहत अभियान की देखरेख तथा तीसरी बार महासचिव पद पर चुने जाने की दावेदारी का चीन ने विरोध किया।

    जेवियर पेरेज दे क्यूइर (1982-1991) पेरू : यह भी पेशे से एक बड़े वकील और राजनीतिज्ञ थे। साइप्रस, अफगानिस्तान और अल सल्वाडोर में शांति स्थापना के लिए प्रयास किए। नामीबिया की आजादी के लिए मध्यस्थता। फाकलैंड युद्ध के बाद ब्रिटेन और अर्जेंटीना के बीच मध्यस्थता।

    बुतरस बुतरस घाली (1992-1996) मिस्र : ये एक बड़े राजनीतिज्ञ, विधिवेत्ता और विदेश मंत्री थे। एन एजेंडा फॉर पीस नामक रिपोर्ट जारी की। मोजांबिक में संयुक्त राष्ट्र संघ का सफल अभियान चलाया। बोस्निया, सोमालिया और रवांडा में संयुक्त राष्ट्र संघ की असफलता के लिए आरोप भी लगे। गंभीर असहमति के कारण अमेरिका ने दोबारा महासचिव बनने का विरोध किया।

    कोफी अन्नान (1997-2006) घाना : ये संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकारी थे। इन्होंने एड्स, टीबी और मलेरिया से लड़ने के लिए एक वैश्विक कोष भी बनाया। अमेरिकी नेतृत्व में इराक पर हुए हमले को अवैध करार दिया। 2005 में मानव अधिकार परिषद तथा शांति संस्थापक आयोग की स्थापना भी की। वर्ष 2001 का नोबेल शांति पुरस्कार भी प्राप्त किया।

    बान की मून (2007-2016) कोरिया गणराज्य (दक्षिण कोरिया) : यह एक कूटनीतिज्ञ और विदेश मंत्री थे। महासचिव बनने वाले यह एशिया के दूसरे व्यक्ति थे। जलवायु परिवर्तन, सहस्राब्दी विकास लक्ष्य तथा सतत विकास लक्ष्य पर ध्यान दिया। UN Women के निर्माण के लिए कार्य किया। युद्ध वियोजन और परमाणु निशस्त्रीकरण पर जोड़ दिया।

    एंटोनियो गुटेरेस (2017-अबतक) पुर्तगाल : पुर्तगाल के प्रधानमंत्री और राजनीतिज्ञ। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (2005-2015), सोशलिस्ट इंटरनेशनल के अध्यक्ष (1999-2005) संयुक्त राष्ट्र संघ के पुनः महासचिव नियुक्त तथा कोरोना संकट में भूमिका। रूस-यूक्रेन युद्ध में शांति की अपील।

     

    संयुक्त राष्ट्र संघ के विशिष्ट अभिकरण : संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख 6 अंगों के अलावा भी कुछ विशिष्ट अभिकरण भी हैं जो संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेष उद्देश्यों के लिए बनाए गए हैं इनमें से कुछ निम्नलिखित है :

    विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) : विश्व स्वास्थ्य संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ का विशिष्ट अभिकरण है जिसकी स्थापना 1948 में की गई थी इसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जिनेवा शहर में है। विश्व में स्वास्थ्य से जुड़ी विभिन्न प्रकार की नीतियां और कार्यक्रमों को लागू करवाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन कार्यरत है।

    अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) : अंतरराष्ट्रीय आणविक ऊर्जा एजेंसी की स्थापना 1957 में की गई थी और इसका मुख्यालय ऑस्ट्रिया के वियना शहर में है। संयुक्त राष्ट्र संघ का यह विशिष्ट अभिकरण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए कार्य करता है तथा परमाणु ऊर्जा के सैन्य उद्देश्यों में इसके उपयोग को रोकने के लिए कार्यरत है।

    संयुक्त राष्ट्रीय व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD) : संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशिष्ट संस्था है इसकी स्थापना वर्ष 1964 में की गई थी और इसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जिनेवा शहर में है। यह विशिष्ट संस्था व्यापार निवेश और विकास के मुद्दों से संबंधित उद्देश्यों पर कार्य करती है।

    संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) : संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशेष संस्था है जिसकी स्थापना 5 जून 1972 में की गई थी इस अभिकरण का मुख्यालय केन्या के नैरोबी शहर में है। यह विशिष्ट अभिकरण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण को बचाने के लिए कार्यरत है और विभिन्न सदस्य देशों को पर्यावरण प्रदूषण के प्रति जागरूक करने का कार्य भी करती है।

    संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) : संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशिष्ट संस्था है जिसकी स्थापना 22 नवंबर 1965 में की गई थी इस संस्था का मुख्यालय अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में है। संयुक्त राष्ट्र संघ का यह विशिष्ट अभिकरण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्धनता को कम करने तथा निर्धन और पिछड़े देशों के आधारभूत ढांचे को सुदृढ़ करने का कार्य करती है।

    संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) : संयुक्त राष्ट्र बाल कोष की स्थापना 11 दिसंबर 1946 में की गई थी और इसका मुख्यालय फ्रांस की राजधानी पेरिस में है। यूनिसेफ संयुक्त राष्ट्र संघ की विशिष्ट संस्था है जो वैश्विक स्तर पर बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा की देखरेख करती है।

    संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) : संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष संयुक्त राष्ट्र संघ का एक विशिष्ट अभिकरण है जिसकी स्थापना 1969 में की गई थी और इसका मुख्यालय अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में है। यह विशिष्ट अभिकरण महिला, पुरुष और बच्चों के अधिकार, स्वास्थ्य और समान अवसर के आनंदमय जीवन को बढ़ावा देने का कार्य करती है।

    शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (UNHCR): यह संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशिष्ट संस्था है जिसकी स्थापना 1950 में की गई थी और इसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जिनेवा शहर में स्थित है। यह संस्था शरणार्थी, जबरन विस्थापित समुदायों और राज्यविहीन लोगों की सहायता और सुरक्षा के लिए और उनके स्वैच्छिक प्रत्यावर्तन, स्थानीय एकीकरण या किसी अन्य देश में पुनर्वास में सहायता करने का कार्य करती है।

    विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) : विश्व खाद्य कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र संघ की विशिष्ट संस्था है जिसकी स्थापना 1961 में की गई थी और इसका मुख्यालय इटली की राजधानी रोम में है। यह संस्था अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे बड़ी मानवीय संस्था है जो भुखमरी और खाद्य सुरक्षा का कार्य करती है तथा यह विद्यालयों में भोजन उपलब्ध कराने वाली सबसे बड़ी संस्था भी है।

    सामाजिक विकास हेतु संयुक्त राष्ट्र शोध संस्थान (UNRISD) : संयुक्त राष्ट्र संघ की इस विशिष्ट संस्था की स्थापना 1963 में की गई थी और इसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जेनेवा शहर में है। यह विशिष्ट अभिकरण संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत समकालीन विकास के मुद्दों के सामाजिक आयाम पर बहु-विषयक अनुसंधान और नीति विश्लेषण के कार्य करता है।

    रासायनिक हथियार निषेध संगठन (OPCW) : संयुक्त राष्ट्र संघ का यह विशिष्ट अभिकरण वर्ष 1997 में बनाया गया था जिसका मुख्यालय नीदरलैंड के हेग शहर में है। यह संगठन वैश्विक स्तर पर रासायनिक हथियारों को नष्ट करने और उनके नियंत्रण के लिए कार्यरत है। वर्तमान समय में यह संस्था सीरिया में हथियारों को समाप्त किए जाने का कार्य देख रही है।

    विश्व व्यापार संगठन (WTO) : विश्व व्यापार संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ का एक विशिष्ट अभिकरण है जिसकी स्थापना 1995 में की गई थी और इसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जिनेवा शहर में है। 1995 से पहले WTO को GATT के नाम से जाना जाता था। यह संस्था वैश्विक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए नियम बनाती है और सभी सदस्य देशों के बीच सहयोगात्मक व्यापार को बढ़ावा देने का कार्य करती है।

    संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) : संयुक्त राष्ट्र संघ की यह विशिष्ट संस्था वर्ष 1993 में बनाई गई थी और इस संस्था का मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जिनेवा शहर में है। यह संस्था वैश्विक स्तर पर मानव अधिकारों के प्रचार प्रसार के लिए कार्य करती है और मानव अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए भी कार्यरत है।

    संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (UNU) : संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय की स्थापना वर्ष 1972 में की गई थी और इसकी मुख्य शाखा जापान के टोक्यो शहर में है। यह विश्वविद्यालय विकास, कल्याण एवं मानवीय उत्तरजीविता के क्षेत्र में शोध एवं प्रशिक्षण संचालित करता है।

    एचआईवी/एड्स पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम (UNAIDS) : संयुक्त राष्ट्र संघ की यह विशिष्ट संस्था वर्ष 1994 में स्थापित की गई थी जिसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जिनेवा शहर में है। यह विशिष्ट अभिकरण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए शून्य एचआईवी/एड्स संक्रामक मरीजों के लिए कार्यरत है। मुख्य रूप से यह संस्था अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एड्स के लिए वैश्विक जागरूकता उत्पन्न करती है और उसके बचाव के उपाय भी साझा करती है।

    अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) : अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशेष संस्था है जिसकी स्थापना वर्ष 1919 में की गई थी और इसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जेनेवा शहर में है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजदूरों तथा श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कार्यरत है और उनसे जुड़े नियम और कानून बनाने के लिए प्रयासरत है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रमिकों के कार्य के घंटे, वेतन भत्ते, और उनकी सुरक्षा से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर यह कार्य करती है।

    खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) : खाद्य एवं कृषि संगठन की स्थापना 1945 में की गई थी और इसका मुख्यालय इटली के रोम शहर में है। संयुक्त राष्ट्र संघ की यह विशिष्ट संस्था कृषि उत्पादन, वानिकी और कृषि विपणन संबंधी शोध विषय का अध्ययन करता है तथा खाद्य एवं कृषि संबंधी ज्ञान और जानकारियों के आदान-प्रदान करने के लिए एक मंच के रूप में भी कार्य करता है।

    संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) : यूनेस्को संयुक्त राष्ट्र संघ का एक प्रमुख विशेष अभिकरण है जिसकी स्थापना वर्ष 1946 में की गई थी और इसका मुख्यालय फ्रांस की राजधानी पेरिस में है। यूनेस्को मुख्य रूप से शिक्षा, प्रकृति, समाज, विज्ञान, संस्कृति तथा संचार के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय शांति व्यवस्था को बनाए रखने का प्रयास करती है और इन क्षेत्रों में विकास कार्यों को बढ़ावा देती है।

    अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) : अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष संयुक्त राष्ट्र संघ का एक विशिष्ट अभिकरण है जिसकी स्थापना वर्ष 1944 में की गई थी और इस संस्था का मुख्यालय अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी में है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष अपने सदस्य देशों की वैश्विक आर्थिक स्थिति पर नजर रखती हैं और अपने सदस्य देशों को आर्थिक और तकनीकी सहायता भी प्रदान करती है। इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष अंतर्राष्ट्रीय विनिमय दरों को स्थिर रखने के लिए भी तत्पर रहती है।

    अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (विश्व बैंक) (IBRD) : अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक जिसे संक्षेप में विश्व बैंक भी कहा जाता है संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशेष संस्था है जो मुख्य रूप से वित्तीय कार्यों से संबंधित है। विश्व बैंक की स्थापना वर्ष 1944 में की गई थी और इस संस्था का मुख्यालय भी अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में है। यह संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों को विकास कार्यों के लिए आर्थिक ऋण प्रदान करने का कार्य करती है। वर्तमान समय में 189 देश इसके सदस्य हैं।

    अंतर्राष्ट्रीय मौसम संगठन (IMO) : विश्व मौसम संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशिष्ट संस्था है जिसकी स्थापना वर्ष 1950 में की गई थी और इसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जिनेवा शहर में है। संयुक्त राष्ट्र संघ की यह संस्था पृथ्वी के वायुमंडल की परिस्थिति और व्यवहार, महासागरों के साथ इसके संबंध, मौसम और परिणामस्वरूप उपलब्ध जल संसाधनों के वितरण के बारे में जानकारी प्रदान करने का कार्य करती है।

    अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) : अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशिष्ट संस्था है जिसकी स्थापना वर्ष 1865 में की गई थी और इस संस्था का मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जिनेवा शहर में है। संयुक्त राष्ट्र संघ की यह विशिष्ट संस्था अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दूरसंचार के सुधार एवं विवेकपूर्ण उपयोग के लिए अंतराष्ट्रीय सहयोग करना, तकनीकी सुविधाओं के प्रभावी कार्य संचालन के विकास को संवर्धित करना तथा दूरसंचार सेवाओं की उपयोगिता में वृद्धि करना इसके प्रमुख कार्य है

    कुछ प्रमुख गैर सरकारी संगठन (NGO) :-

    ग्रीनपीस : ग्रीन पीस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक गैर सरकारी संगठन के रूप में कार्य करता है जिसकी स्थापना वर्ष 1971 में कनाडा में की गई थी। इस संगठन का मुख्यालय नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम में है। यह संगठन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण संरक्षण का कार्य करता है और पृथ्वी के प्राकृतिक वातावरण को सुरक्षित रखने में भी सक्रिय भूमिका निभाता है। यह संगठन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरणीय अभियानों को प्राथमिकता देता है।

    ह्यूमन राइट्स वॉच : ह्यूमन राइट्स वॉच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानव अधिकार की वकालत करने वाली एक प्रमुख गैर सरकारी संस्था है जिसकी स्थापना वर्ष 1978 में की गई थी और इसका मुख्यालय अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में है। यह संगठन अमेरिका का सबसे बड़ा अंतर राष्ट्रीय मानव अधिकार संगठन है और दुनिया भर के मीडिया का ध्यान मानव अधिकारों के उल्लंघन की ओर खींचता है। इस संगठन ने बारूदी सुरंगों पर रोक लगाने, बाल सैनिकों के प्रयोग रोकने के लिए और अंतरराष्ट्रीय दंड न्यायालय स्थापित करने के लिए अभियान चलाने में मदद की है।

    एमनेस्टी इंटरनेशनल : एमनेस्टी इंटरनेशनल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक शक्तिशाली स्वयंसेवी संगठन है। इस संस्था की स्थापना वर्ष 1961 में ब्रिटेन में की गई थी और इसका मुख्यालय लंदन में है। यह संस्था अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवीय मूल्यों और मानवीय स्वतंत्रता को बचाने तथा किसी भी प्रकार के भेदभाव को मिटाने के लिए कार्य करती है। इस संस्था ने मानव अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण के साथ-साथ मानव अधिकारों के संवर्धन के लिए भी बहुत कार्य किया है।

    अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस सोसायटी : अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस सोसाइटी वैश्विक स्तर पर एक बहुत ही सम्मानित संस्था है जिसकी स्थापना 1863 में की गई थी और इसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जिनेवा शहर में है। यह संस्था मानवीय जीवन और उसके स्वास्थ्य के बचाव करने का कार्य करती है। इस संस्था की स्थापना युद्ध भूमि में घायल और पीड़ितों को सहायता प्रदान करने के रूप में हुई थी। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य युद्ध या विपदा की स्थिति में मनुष्य को कठिनाइयों से राहत दिलाना है।

    सुरक्षा परिषद के विस्तार की आवश्यकता : संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ने विस्तार और सुधार की बात पर चर्चा होना शुरू हो चुका था और लगभग अधिकांश सदस्य देशों का कहना था कि सुरक्षा परिषद के स्थाई और अस्थाई सदस्यों की संख्या में विस्तार होना चाहिए। वर्ष 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा में एक प्रस्ताव स्वीकृत हुआ और यह प्रस्ताव तीन मुख्य बातों को दर्शाता है।

    1. सुरक्षा परिषद अब राजनीतिक वास्तविकता की नुमाइंदगी नहीं करती।

    2. इसके फैसलों पर पश्चिमी मूल्यों और हितों की छाप होती है और इन फैसलों पर चंद देशों का दबदबा होता है।

    3. सुरक्षा परिषद में बराबर का प्रतिनिधित्व नहीं है।

    इन तीन बातों पर सहमति होने पर सुरक्षा परिषद में विस्तार और सुधार की बात पर जोर दिया जाने लगा।

    स्थायी सदस्यों द्वारा वीटो शक्ति का प्रयोग

    (1 जून 2018 तक)

    क्रम सं.

    देश

    वीटो शक्ति प्रयोग

    1

    अमेरिका

    84

    2

    ब्रिटेन

    32

    3

    फ्रांस

    18

    4

    सोवियत संघ/रूस

    135

    5

    चीन

    11

    संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के स्थाई या अस्थाई सदस्य बनने हेतु मापदंड

    संयुक्त राष्ट्र संघ के ढांचे में बदलाव की बढ़ती हुई मांगों के मद्देनजर 1 जनवरी 1997 को संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव कोफी अन्नान ने एक जांच प्रारंभ करवाई कि सुधार कैसे कराए जाएं उदाहरण के तौर पर यही की क्या सुरक्षा परिषद के नए सदस्य चुने जाने चाहिए ?

    इसके बाद के सालों में सुरक्षा परिषद की स्थाई और अस्थाई सदस्यता के लिए कुछ मानदंड सुझाए गए। इनमें से कुछ मानदंड निम्नलिखित हैं कि किसी भी नए सदस्य को सुरक्षा परिषद की स्थाई और अस्थाई सदस्यता के लिए निम्नलिखित मानदंड पूरे करने चाहिए :

    वह देश बड़ी आर्थिक शक्ति होना चाहिए।

    उस देश की सैन्य शक्ति विशाल होनी चाहिए।

    संयुक्त राष्ट्र संघ के बजट में उस देश का योगदान अधिक होना चाहिए।

    जनसंख्या की दृष्टि से एक बड़ा देश हो।

    एक ऐसा देश जो लोकतंत्र और मानव अधिकारों का सम्मान करता हो।

    ऐसा देश जो अपनी भौगोलिक, अर्थव्यवस्था और संस्कृति के दृष्टि से विश्व की विविधता की नुमाइंदगी करता हो।

    सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्यता की दावेदारी के रूप में भारत :

    भारत संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में सुधार की वकालत करता हुआ आ रहा है और भारत स्वयं को भी सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता का प्रबल दावेदार मानता है। सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के संदर्भ में भारतीय दावेदारी को निम्नलिखित कारकों के आधार पर समझा जा सकता है:

    भारत विश्व की सर्वाधिक आबादी वाले देशों की सूची में दूसरे स्थान पर आता है और इस तरह से भारत विश्व की एक बहुत बड़ी आबादी का नेतृत्व करता है।

    भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और भारत में लोकतंत्र की जड़ें बहुत मजबूत है इसके साथ ही भारत मानव अधिकार के लिए हमेशा गंभीर रहता है और इसके प्रचार-प्रसार के लिए निरंतर कार्य करता है।

    भारत सैन्य दृष्टि से विश्व की सर्वाधिक शक्तिशाली शक्तियों में से एक है और भारत को सर्वाधिक शक्तिशाली देश बनाने के लिए परमाणु शक्ति संपन्नता भी पर्याप्त भूमिका निभाती है।

    भारत विश्व की तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था में से एक अर्थव्यवस्था है और भारत की जीडीपी दर भी बहुत तेजी से बढ़ रही है इसलिए भारत आने वाले समय में अर्थव्यवस्था की दृष्टि से एक शक्तिशाली देश के रूप में सामने आएगा।

    भारत भौगोलिक दृष्टि से एक विशिष्ट देश है और हिंद महासागर भारत को एक केंद्रीय स्थिति प्रदान करता है इसके साथ ही भारत जैव विविधता के क्षेत्र में भी धनी है। भारत की संस्कृति बहुत ही अद्भुत है और भारत विश्व राजनीति में एक नेता के रूप में सामने उभर कर आया है।

    भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के बजट में निरंतर सहयोग देने वाला एक प्रमुख देश है और भारत इस कार्य को पूरी निरंतरता से करता आ रहा है।

    संयुक्त राष्ट्र संघ को अधिक न्याय संगत बनाने हेतु किए गए प्रयास : 

    संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद की सदस्य संख्या में विस्तार को लेकर के बहुत चर्चा हुई है और यह एक गंभीर सवाल बनकर भी सामने आया। लेकिन इन सबके अलावा भी संयुक्त राष्ट्र संघ के सामने और भी अधिक गंभीर मुद्दे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2005 में जब अपने 60 वर्ष पूर्ण किए तो इस सालगिरह को मनाने के लिए सदस्य देश की एकत्रित हुए। इस अवसर पर वर्तमान स्थितियों की समीक्षा हुई और बैठक में शामिल प्रतिनिधियों ने बदलते हुए परिवेश में संयुक्त राष्ट्र संघ को और अधिक प्रासंगिक बनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए :

    शांति संस्थापक आयोग का गठन किया जाए।

    यदि कोई राष्ट्र अपने नागरिकों को अत्याचारों से बचाने में असफल हो जाए तो विश्व बिरादरी इसका उत्तरदायित्व ले- इस बात की स्वीकृति।

    मानव अधिकार परिषद की स्थापना (19 जून 2006 से सक्रिय)।

    सहस्राब्दी विकास लक्ष्य को प्राप्त करने पर सहमति।

    हर रूप-रीति के आतंकवाद की निंदा।

    एक लोकतंत्र-कोष का गठन।

    न्यासिता परिषद को समाप्त करने पर सहमति।

    वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता : संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना संपूर्ण विश्व को तृतीय विश्व युद्ध से बचाने के लिए और विश्व में शांति व्यवस्था स्थापित करने के लिए की गई थी। वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं:

    वर्तमान समय में भी संयुक्त राष्ट्र संघ एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो अंतरराष्ट्रीय शांति व्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कार्य कर रहा है।

    अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए भी संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता वर्तमान समय में भी नितांत आवश्यक है। संयुक्त राष्ट्र संघ विभिन्न सदस्य देशों के बीच आर्थिक संबंधों को सुधारने का कार्य कर रहा है।

    वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता को हम इस तरह से भी समझ सकते हैं कि यह विश्व में हथियारों की होड़ को रोकने और निशस्त्रीकरण की नीति को क्रियान्वित करने में एक महत्वपूर्ण संगठन के रूप में कार्य कर रहा है।

    संयुक्त राष्ट्र संघ में वर्तमान समय में और भी अधिक प्रासंगिक है क्योंकि वर्तमान समय में परमाणु निशस्त्रीकरण की नितांत आवश्यकता है और विभिन्न देश परमाणु शक्ति संपन्नता के लिए प्रयास भी कर रहे हैं जो संपूर्ण विश्व के लिए भयानक हो सकता है।

    संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता को हम इस तरह भी समझ सकते हैं कि वर्तमान समय में आने वाली विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं और महामारियो का मुकाबला कोई भी देश अकेले नहीं कर सकता इसलिए हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन आपदा और महामारी का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की आवश्यकता है।

    वर्तमान समय में भी संयुक्त राष्ट्र संघ एक प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय संगठन है क्योंकि यह संगठन संपूर्ण विश्व को तृतीय विश्व युद्ध से बचाने में निर्णायक भूमिका का निर्वहन कर रहा है और यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयासों के कारण ही अभी तक विश्व तीसरे विश्व युद्ध से बचा हुआ है।

    संयुक्त राष्ट्र संघ वर्तमान समय में इसलिए भी एक प्रासंगिक संगठन है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ ही एक ऐसा संगठन है जो अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने की क्षमता रखता है।

    संयुक्त राष्ट्र संघ पर अमेरिका का प्रभाव : संयुक्त राष्ट्र संघ की नीतियों और कार्यक्रमों पर संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रभाव को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है और इसके लिए कई सारे कारक जिम्मेदार हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं :

    संयुक्त राष्ट्र संघ की नीतियों और कार्यक्रमों पर संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रभाव इसलिए भी देखने को मिलता है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय अमेरिका में स्थित है और इस तरह से संयुक्त राज्य अमेरिका संयुक्त राष्ट्र संघ की नीतियों और कार्यक्रमों को प्रभावित कर पाता है।

    संयुक्त राज्य अमेरिका संयुक्त राष्ट्र संघ की नीतियों और कार्यक्रमों को इसलिए भी प्रभावित कर पाता है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ में कार्य करने वाले कर्मचारियों की अधिकांश संख्या अमेरिका की है। इस तरह से अमेरिका कर्मचारियों की संख्या के बल पर भी संयुक्त राष्ट्र संघ पर अपना प्रभाव बना पाता है।

    संयुक्त राज्य अमेरिका संयुक्त राष्ट्र संघ में सर्वाधिक आर्थिक सहयोग करने वाले देशों में पहले स्थान पर आता है और इस कारण से संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रभाव संयुक्त राष्ट्र संघ की नीतियों कार्यक्रमों पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

    संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रभाव संयुक्त राष्ट्र संघ पर हम इसलिए भी देख पाते हैं क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य है और इसके पास वीटो शक्ति प्राप्त है। इसलिए अमेरिका अपने हित अनुसार इस वीटो शक्ति का प्रयोग करता है और संयुक्त राष्ट्र संघ के नीति और निर्णय को प्रभावित करता है।


    संयुक्त राष्ट्र और इसके संगठन अध्याय पर आधारित MCQ QUIZ.

    UNO MCQ QUIZ – 1

    UNO MCQ QUIZ – 2


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