CLASS: X
SUBJECT: SOCIAL SCIENCE
WORKSHEET SOLUTION: 75
DATE: 28/01/2022
SOLUTIONS
अध्याय -3 : भारत में राष्ट्रवाद
ग्रामीण इलाकों में विद्रोह अवध - यहां बाबा रामचंद्र किसानों का नेतृत्व कर रहे थे। उनका आंदोलन तालुकदारों और जमींदारों के खिलाफ था जो किसानों से भारी-भरकम लगान और तरह-तरह के कर वसूल कर वसूल रहे थे। किसानों को बेगार करनी पड़ती थी और बिना किसी पारिश्रमिक के जमींदारों के खेतों में काम करना पड़ता था। किसानों की मांग थी कि लगान कम किया जाए, बेगार खत्म हो और दमनकारी जमीदारों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए। अक्टूबर 1920 तक अवध किसान सभा का गठन कर लिया गया। महीने भर में इस पूरे इलाके के गांवों में संगठन की 300 से ज्यादा शाखाएं बन चुकी थी। अगले साल जब असहयोग आंदोलन शुरू हुआ तो कांग्रेस ने अवध के किसान संघर्ष को इस आंदोलन में शामिल करने का प्रयास किया, लेकिन किसानों के आंदोलन में ऐसे स्वरूप विकसित हो चुके थे जिनसे कांग्रेस का नेतृत्व खुश नहीं था। 1921 में जब आंदोलन फैला तो तालुकदरों और व्यापारियों के मकानों पर हमले होने लगे, बाजारों में लूटपाट होने लगी और अनाज के गोदामों पर कब्जा कर लिया गया। महात्मा गांधी का नाम लेकर लोग अपनी सारी कार्यवाही और आकांक्षाओं को सही ठहरा रहे थे। आंध्र प्रदेश की गुडेम पहाड़ियों में - आदिवासी किसानों ने महात्मा गांधी के संदेश और स्वराज का और ही मतलब निकाला। 1920 के दशक की शुरुआत में यहां एक उग्र गुरिल्ला आंदोलन फैल गया। लोग अंग्रेजी सरकार द्वारा बनाए गए वन नियमों से परेशान और गुस्से में थे। लोग जंगलों में ना तो मवेशियों को चला सकते थे नाही जलावन के लिए लकड़ी और फल बीन सकते थे। उनके नेता अल्लूरी सीताराम राजू थे। उनका दावा था कि उनके पास बहुत सारी विशेष शक्तियां है : वह सटीक खगोलीय अनुमान लगा सकते हैं, लोगों को स्वस्थ कर सकते हैं और गोलियां भी उन्हें नहीं मार सकती। राजू महात्मा गांधी की महानता के गुण गाते थे। उनका कहना था कि वे असहयोग आंदोलन से प्रेरित है। उन्होंने लोगों को खादी पहनने तथा शराब छोड़ने के लिए प्रेरित किया। साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत अहिंसा के बल पर नहीं बल्कि केवल बल प्रयोग के जरिए ही आजाद हो सकता है। गुडेम विद्रोहियों ने पुलिस थानों पर हमले किए, ब्रिटिश अधिकारियों को मारने की कोशिश की और स्वराज प्राप्ति के लिए गुरिल्ला युद्ध चलाते रहे। 1924 में राजू को फांसी दे दी गई। |
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
प्रश्न 1. अवध और गुडेम पहाड़ी के किसानों ने असहयोग आंदोलन में किस प्रकार भाग लिया?
उत्तर. अवध में किसानों के आंदोलन का नेतृत्व बाबा रामचंद्र कर रहे थे। किसानों का यह आंदोलन पूरी तरह से अलग था। इन किसानों की मांगें अलग थी। सभी किसान लगान और तरह-तरह के करो से परेशान थे। तालुकदरों तथा जमीदारों से परेशान थे। जब असहयोग आंदोलन प्रारंभ हुआ तब किसानों के आंदोलन को असहयोग आंदोलन में शामिल करने के प्रयास किए गए लेकिन कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे लोग इन आंदोलन से खुश नहीं थे। असहयोग आंदोलन और गांधीजी के नाम पर जमीदारों के घरों पर हमले किए जाने लगे और अनाज के गोदामों पर कब्जा किया जाने लगा।
गुडेम पहाड़ियों में आदिवासी किसानों का नेतृत्व अल्लूरी सीताराम राजू कर रहे थे। राजू गांधीजी की महानता से बहुत प्रभावित थे और लोगों को खादी के इस्तेमाल तथा शराब के बहिष्कार के लिए प्रेरित कर रहे थे। लेकिन राजू का मानना था कि भारत को ब्रिटिश राज से गुलामी केवल बल के प्रयोग से ही मिल सकती है। राजू और उनके आंदोलनकारियों ने पुलिस की चौकियों पर हमला किया और अधिकारियों को भी मारने का प्रयास किया अंत में राजू को फांसी दे दी गई।
प्रश्न 2. असहयोग आंदोलन में किसानों की भागीदारी शहर के लोगों की इसमें भागीदारी से किस प्रकार अलग थी?
उत्तर. असहयोग आंदोलन में शहर के लोग अलग तरह से भागीदारी कर रहे थे शहरों में छात्रों और शिक्षकों ने स्कूल कॉलेज का बहिष्कार कर दिया था तथा वकीलों और बाकी सरकारी कर्मचारियों ने अपनी नौकरियां छोड़ दी थी और गांधी के असहयोग आंदोलन में साथ दे रहे थे। वहीं दूसरी तरफ किसानों ने असहयोग आंदोलन में अलग तरह से भाग लिया और उनकी आकांक्षाएं तथा मांगे बिल्कुल अलग थी। किसानों का आंदोलन कहीं ज्यादा है हिंसक था। जमीदारों और तालुकदारों से बदला लेने की भावना से किसानों ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया। किसान किसी भी तरह से लगान और तरह-तरह के कर को समाप्त करना चाहते थे।