CLASS: X
SUBJECT: SOCIAL SCIENCE
WORKSHEET SOLUTION: 76
DATE: 31/01/2022
SOLUTIONS
अध्याय -3 : भारत में राष्ट्रवाद
प्रिय
विद्यार्थियों, कार्यपत्रक 74 और 75 में हमने असहयोग आंदोलन में शहरी एवं
ग्रामीण लोगों की भागीदारी के बारे में पढ़ा। इस कार्यपत्रक में हम असहयोग
आंदोलन में बागान मजदूरों की भागीदारी तथा असहयोग आंदोलन के बाद हुए प्रमुख
घटनाओं के बारे में पढ़ेंगे। बागानों में स्वराज महात्मा गांधी के
विचारों और स्वराज की अवधारणा के बारे में मजदूरों की अपनी समझ थी। असम की
बागानी मजदूरों के लिए आजादी का मतलब यह था कि वे उन चारदीवारी में जब चाहे आ जा
सकते हैं जिनमें उनको बंद करके रखा गया था। उनके लिए आजादी का मतलब था कि वे
अपने कामों से संपर्क रख पाएंगे। 1859 के इनलैंड इमीग्रेशन एक्ट के तहत बागानों में काम करने वाले मजदूरों को
बिना इजाजत बागान से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी। जब उन्होंने असहयोग आंदोलन
के बारे में सुना तो हजारों मजदूर अपने अधिकारियों की अवहेलना करने लगे।
उन्होंने बागान छोड़ दिए और अपने घर को चल दिए। उनको पता था कि अब गांधी राज आ
रहा है इसलिए अब हर एक को गांव में जमीन मिल जाएगी। लेकिन वे अपनी मंजिल पर नहीं
पहुंच पाए। रेलवे और स्टीमरों की हड़ताल के कारण वे रास्ते में ही फंसे रह गए।
उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया और उनकी बुरी तरह पिटाई हुई। सविनय अवज्ञा की ओर फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में चोरा चोरी नामक स्थान पर एक हिंसक
घटना हुई और महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस लेने का फैसला कर लिया।
कॉन्ग्रेस के कुछ नेता इस तरह के जन संघर्षों से थक चुके थे और वे प्रांतीय
परिषदों के चुनाव में हिस्सा लेना चाहते थे। उनको लगता था कि परिषदों में रहते
हुए ब्रिटिश नीतियों का विरोध करना महत्वपूर्ण है। सी आर दास और मोती लाल नेहरू
ने कांग्रेस के भीतर ही स्वराज पार्टी का गठन किया। लेकिन जवाहरलाल नेहरू और
सुभाष चंद्र बोस जैसे युवा नेता ज्यादा उग्र जन आंदोलन और पूर्ण स्वतंत्रता के
लिए दबाव बनाए हुए थे। साइमन कमीशन
राष्ट्रवादी आंदोलन के जवाब में, ब्रिटिश
सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में एक आयोग का गठन किया। इस आयोग को भारत में
संवैधानिक व्यवस्था की कार्यशैली का अध्ययन करना था और उसके बारे में सुझाव देने
थे। लेकिन समस्या यह थी कि इस आयोग में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था। सारे
अंग्रेज थे। 1928 में जब साइमन कमीशन भारत पहुंचा तो उसका
स्वागत साइमन कमीशन वापस जाओ (साइमन कमीशन गो बैक) के नारों के साथ किया गया।
कॉन्ग्रेस और मुस्लिम लीग, सभी पार्टियों ने प्रदर्शन में
हिस्सा लिया। इस विरोध को शांत करने के लिए वायसराय लॉर्ड इरविन ने अक्टूबर 1929 में भारत के लिए डोमिनियन स्टेटस का गोलमाल सा ऐलान कर दिया। उन्होंने
इस बारे में कोई समय सीमा भी नहीं बताई। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि भावी
संविधान के बारे में चर्चा करने के लिए गोलमेज सम्मेलन आयोजित की जाएगी। दिसंबर 1929 में जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में
पूर्ण स्वराज की मांग को औपचारिक रूप से मांग लिया गया। तय किया गया कि 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया
जाएगा और उस दिन लोग पूर्ण स्वराज के लिए संघर्ष के शपथ लेंगे। |
निम्नलिखित
प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
प्रश्न 1.
असहयोग आंदोलन ने बागानी मजदूरों की भागीदारी पर एक संक्षिप्त नोट
लिखिए।
उत्तर. महात्मा गांधी के विचारों और
स्वराज की अवधारणा के बारे में मजदूरों की अपनी समझ थी। असम की बागानी मजदूरों के
लिए आजादी का मतलब यह था कि वे उन चारदीवारी में जब चाहे आ जा सकते हैं जिनमें उनको
बंद करके रखा गया था। उनके लिए आजादी का मतलब था कि वे अपने कामों से संपर्क रख
पाएंगे। 1859 के इनलैंड इमीग्रेशन एक्ट के तहत बागानों में काम करने
वाले मजदूरों को बिना इजाजत बागान से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी। जब उन्होंने
असहयोग आंदोलन के बारे में सुना तो हजारों मजदूर अपने अधिकारियों की अवहेलना करने
लगे। उन्होंने बागान छोड़ दिए और अपने घर को चल दिए। उनको पता था कि अब गांधी राज
आ रहा है इसलिए अब हर एक को गांव में जमीन मिल जाएगी। लेकिन वे अपनी मंजिल पर नहीं
पहुंच पाए। रेलवे और स्टीमरों की हड़ताल के कारण वे रास्ते में ही फंसे रह गए।
उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया और उनकी बुरी तरह पिटाई हुई।
प्रश्न 2. साइमन कमीशन पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर. राष्ट्रवादी आंदोलन के जवाब में, ब्रिटिश
सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में एक आयोग का गठन किया। इस आयोग को भारत में
संवैधानिक व्यवस्था की कार्यशैली का अध्ययन करना था और उसके बारे में सुझाव देने
थे। लेकिन समस्या यह थी कि इस आयोग में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था। सारे अंग्रेज
थे। 1928 में जब साइमन कमीशन भारत पहुंचा तो उसका स्वागत
साइमन कमीशन वापस जाओ (साइमन कमीशन गो बैक) के नारों के साथ किया गया। कॉन्ग्रेस
और मुस्लिम लीग, सभी पार्टियों ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया।
इस विरोध को शांत करने के लिए वायसराय लॉर्ड इरविन ने अक्टूबर 1929 में भारत के लिए डोमिनियन स्टेटस का गोलमाल सा ऐलान कर दिया। उन्होंने इस
बारे में कोई समय सीमा भी नहीं बताई। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि भावी संविधान के
बारे में चर्चा करने के लिए गोलमेज सम्मेलन आयोजित की जाएगी।