CLASS
- XII
SUBJECT
- POLITICAL SCIENCE
CONTEMPORARY
WORLD POLITICS
-:समकालीन दक्षिण एशिया:-
दक्षिण एशिया में संघर्ष और
शांति के प्रयास और लोकतांत्रिकरण : पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव।
दक्षिण एशिया: दक्षिण एशिया शब्द का प्रयोग एशिया महाद्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित प्रायः सात देशों के लिए किया जाता है जिनमें भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका और मालदीव को शामिल किया जाता है। वृहद स्तर पर कभी-कभी अफगानिस्तान और म्यांमार को भी दक्षिण एशिया में शामिल कर लिया जाता है। दक्षिण एशिया में संघर्ष और सहयोग का दौर साथ-साथ चलता रहता है कभी इस क्षेत्र में तनाव रहता है तो कभी इस क्षेत्र में आपसी सहयोग भी परम स्तर पर होता है। दक्षिण एशिया के देशों में चीन को शामिल नहीं किया जाता है। दक्षिण एशिया एक भौगोलिक और राजनीतिक क्षेत्र का परिचायक: दक्षिण एशिया एशिया महाद्वीप का एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र है जिसमें भारत पाकिस्तान नेपाल भूटान बांग्लादेश श्रीलंका और मालदीव आते हैं। इस विशिष्ट क्षेत्र के लिए कभी-कभी भारतीय उपमहाद्वीप शब्द का प्रयोग भी किया जाता है। दक्षिण एशिया के भौगोलिक स्वरूप की एकता को इस बात से समझा जा सकता है कि दक्षिण एशिया के उत्तर में विशाल हिमालय पर्वत श्रृंखला है वही दक्षिणी दिशा में हिंद महासागर भी है इसी तरह दक्षिण एशिया के पूर्व दिशा में बंगाल की खाड़ी स्थित है तथा पश्चिम में अरब सागर स्थित है। इस प्रकार इस विशिष्ट भौगोलिक लक्षण के कारण दक्षिण एशिया को एक भौगोलिक क्षेत्र मान लिया जाता है जोकि इन सभी सातों देशों के लिए प्रयोग किया जाता है। दक्षिण एशिया के इन विभिन्न देशों में शासन की विभिन्न प्रणालियां विद्यमान है लेकिन ऐसा देखा गया है कि इन सभी देशों में शासन की लोकतांत्रिक व्यवस्था को विशेष तौर पर पसंद किया जाता है जो इस क्षेत्र को एक राजनीतिक विशिष्टता प्रदान करता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि दक्षिण एशिया एक विशिष्ट भौगोलिक और राजनीतिक क्षेत्र को दर्शाता है जबकि इसमें विभिन्न प्रकार की विविधता देखने को मिलती है। |
दक्षिण एशिया के देशों में राजनीतिक प्रणाली:-
दक्षिण एशिया के इन 7 देशों में एक प्रकार की शासन प्रणाली
नहीं है।
- यदि हम भारत और श्रीलंका की
बात करें तो यहां पर स्वतंत्रता के बाद से ही लोकतांत्रिक व्यवस्था विद्यमान है।
- दक्षिण एशिया के देश
पाकिस्तान और बांग्लादेश में लोकतंत्र और सैन्य शासन दोनों ही विद्यमान रहा है।
- अगर हम नेपाल की बात करें तो
प्रारंभ में नेपाल में राजतंत्र और फिर संवैधानिक राजतंत्र तथा वर्तमान समय में
लोकतांत्रिक व्यवस्था विद्यमान है।
- भूटान देश में आज भी शासन की
राजतंत्र व्यवस्था विद्यमान है।
- मालदीव देश में वर्ष 1968 तक सल्तनत शासन था और उसके बाद
लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था स्थापित हो गई है।
दक्षिण एशिया
संघर्ष और तनाव के विभिन्न बिंदु :-
- दक्षिण एशिया के देशों में
सीमा विवाद एक प्रमुख संघर्ष और तनाव का कारण है।
- इस क्षेत्र में आतंकवादी
घटनाएं भी विभिन्न प्रकार के संघर्ष और तनाव को बढ़ाने में सहायक है।
- दक्षिण एशिया के कई देशों में
नदियों के जल के बंटवारे की समस्या भी देखने को मिलती है।
- दक्षिण एशिया के देशों में
व्यापार भी पूरी तरह से सफल नहीं हो पाता है।
- दक्षिण एशिया के देशों में
संघर्ष और तनाव का एक कारण द्विपक्षीय मुद्दे भी हैं।
दक्षिण एशिया और लोकतंत्र :-
- दक्षिण एशिया के अधिकांश
देशों में लोकतंत्र के प्रति व्यापक जनसमर्थन और विश्वास प्राप्त हुआ है।
- दक्षिण एशिया के देशों के
लोगों ने लोकतंत्र के प्रति अपनी इच्छा जाहिर की है और लोकतंत्र की
प्रतिनिधिमूलक संस्थाओं का समर्थन भी किया है।
- दक्षिण एशिया के लोकतंत्र के
अनुभवों से लोकतंत्र के बारे में प्रचलित यह भ्रम टूट गया है कि लोकतंत्र सिर्फ
विश्व के धनी देशों में ही विकसित हो सकता है।
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दक्षिण एशिया के
देशों का क्रमबद्ध विश्लेषण :-
-:पाकिस्तान
(सैन्य एवं लोकतंत्र शासन प्रणाली):-
- पाकिस्तान दक्षिण एशिया का एक
महत्वपूर्ण देश है 14 अगस्त 1947 को स्वतंत्र होने के साथ ही पाकिस्तान
ने भी स्वयं को संसदीय लोकतांत्रिक देश घोषित किया।
- पाकिस्तान में लोकतांत्रिक
व्यवस्था अधिक समय तक नहीं चल सकी और वर्ष 1958 में जनरल अयूब खान ने शासन की
बागडोर अपने हाथों में ले ली और इस तरह पाकिस्तान में पहली बार सैन्य शासन की
शुरआत हुई।
- पाकिस्तान में अयूब खान के
शासनकाल में भ्रष्टाचार बहुत हद तक बढ़ गया जिसके कारण अयूब खान को सत्ता छोड़नी
पड़ी और इसके बाद जनरल याहिया खान को शासन का कार्यभार सौंप दिया गया।
- जनरल याहया खान के शासनकाल
में ही भारत और पाकिस्तान के बीच बांग्लादेश को लेकर युद्ध हुआ जिसमें
पाकिस्तानी सेना पराजित हुई और पूर्वी पाकिस्तान एक स्वतंत्र देश के रूप में
जिसे हम बांग्लादेश कहते हैं अस्तित्व में आया।
- वर्ष 1971 में याहया खान को सत्ता छोड़नी
पड़ी और एक निर्वाचित सरकार जुल्फिकार अली भुट्टो के नेतृत्व में सत्ता में आई
लेकिन यह सरकार भी कुछ वर्षों तक ही चल सकी और वर्ष 1977
में गिर गई।
- 1977 में जिया
उल हक ने पाकिस्तान की बागडोर संभाल ली और लोकतांत्रिक संविधान को निरस्त कर
दिया लेकिन पाकिस्तान में लोकतंत्र के समर्थन में आंदोलन जोर पकड़ रहा था इसी
बीच 1988 में एक हवाई दुर्घटना में जनरल जिया उल हक की मौत
हो गई।
- एक बार फिर से पाकिस्तान में
लोकतंत्र की बहाली हुई और 1990 से 1999 तक लोकतांत्रिक सरकार ने कार्य किया।
- 1999 में
पाकिस्तानी जनरल परवेज मुशर्रफ ने सत्ता की बागडोर अपने हाथों में ले ली और वर्ष
2002 में स्वयं को पाकिस्तान का राष्ट्रपति घोषित कर दिया।
मुशर्रफ 2008 तक पाकिस्तान की सत्ता पर कायम रहे।
- इसके बाद से पाकिस्तान में
नवाज शरीफ और इमरान खान की निर्वाचित सरकार ने कार्य किया है तथा वर्तमान समय
में शहबाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य कर रहे हैं।
- वर्ष 2013 में नवाज शरीफ की सरकार बनी लेकिन
वर्ष 2017 में
वित्तीय भ्रष्टाचार के मामले में नवाज शरीफ़ को दोषी पाया गया जिसमें नवाज शरीफ को पद से हटा दिया
गया तथा 10 वर्ष की सजा भी सुनाई गई।
पाकिस्तान में लोकतंत्र की
जड़ें कमजोर होने अथवा पाकिस्तान में लोकतंत्र की असफलता के लिए जिम्मेदार कुछ
प्रमुख कारक:-
- पाकिस्तान की राजनीति में सेना
के हस्तक्षेप के कारण यहां पर लोकतंत्र की जड़ें पूरी तरह स्थाई नहीं हो पाई
हैं।
- पाकिस्तान में लोकतांत्रिक
सरकार के असफल होने के लिए यहां पर धार्मिक नेताओं का राजनीति के अंदर हस्तक्षेप
करना और नीतियों को प्रभावित करना भी प्रमुख कारक है।
- पाकिस्तान में लोकतंत्र के असफल होने के लिए यहां के बड़े बड़े भूस्वामी और जमीदार भी उत्तरदाई हैं जो कि
निर्वाचित सरकार के निर्णय और नीतियों को प्रभावित करते हैं।
- भारत और पाकिस्तान के मध्य
तनावपूर्ण संबंधों का असर भी पाकिस्तान की सरकार पर पड़ता है जिसके कारण यहां पर
निर्वाचित सरकार को अतिरिक्त दबाव झेलना पड़ता है।
- पाकिस्तान में लोकतंत्र की
असफलता और लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होने के लिए यहां की जनता का जागरूक ना होना
भी जिम्मेदार एक प्रमुख कारक है।
- पाकिस्तान में लोकतंत्र के
असफल होने के लिए एक कारण यह भी जिम्मेदार है कि यहां पर राजनीतिक दलों में
पर्याप्त भ्रष्टाचार देखने को मिलता है जिससे एक स्वस्थ जनमत का निर्माण नहीं हो
पाता।
उपरोक्त सभी कारणों ने
पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत नहीं होने दी हैं जिसका परिणाम यह रहा है
कि पाकिस्तान में लोकतंत्र कभी स्थाई रूप से स्थापित नहीं हो पाया है इसके लिए
एक महत्वपूर्ण कारक और भी जिम्मेदार है जिसमें पश्चिम के देशों खासकर अमेरिका के
द्वारा अपने कार्यक्रमों के लिए सैनिक शासन को बढ़ावा दिया जिससे पाकिस्तान में
लोकतांत्रिक सरकार कमजोर रही और सैन्य शासन को बढ़ावा मिला।
भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष:-
- वर्ष 1947-48 में भारत और पाकिस्तान के बीच
युद्ध हुआ जिसमें भारतीय सेना विजई रही और पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा।
- वर्ष 1965 में फिर से पाकिस्तान ने भारत पर
हमला किया और इस बार भी भारतीय सेना ने पाकिस्तान को पराजित किया।
- वर्ष 1971 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने
बांग्लादेश के निर्माण के लिए भारतीय सेना को युद्ध का आदेश दिया और भारतीय सेना
ने बड़ी आसानी से पाकिस्तान को पराजित कर दिया।
- एक बार फिर पाकिस्तान की सेना
ने 1999 में
कारगिल में दुस्साहस दिखाया लेकिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान को एक बार फिर से
पराजित किया।
भारत और पाकिस्तान के मध्य संबंध:-
भारत और पाकिस्तान के मध्य
अधिकांश रूप से तनावपूर्ण संबंध देखने को मिलते हैं और इसके लिए कई कारण
जिम्मेदार भी हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पाकिस्तान के साथ भारत के अच्छे
संबंधों के लिए प्रयास नहीं किया गया है भारत और पाकिस्तान ने कई मुद्दों पर
समझौते भी किए हैं जिससे कि संबंधों को सुधारा जा सके। भारत और पाकिस्तान के
मध्य सहयोग और तनाव के बिंदुओं को इस प्रकार समझा जा सकता है-
तनाव और संघर्ष के कारक:-
- भारत और पाकिस्तान के मध्य
तनावपूर्ण संबंधों का एक प्रमुख कारण कश्मीर मुद्दा भी है और यह मुद्दा आज तक
विवादित है जिसके कारण दोनों देशों के मध्य तनावपूर्ण संबंध विद्यमान है।
- भारत और पाकिस्तान के मध्य
सीमा पार आतंकवादी घटनाएं भी तनाव को बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण कारक की भूमिका
निभाती है।
- भारत और पाकिस्तान के
तनावपूर्ण संबंधों के लिए पाकिस्तान के द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के
दुष्प्रचार को भी दोनों देशों के मध्य तनाव का एक प्रमुख कारक माना जाता है।
- भारत और पाकिस्तान के मध्य
नदी जल बंटवारे को लेकर भी विवाद बना रहता है जिसमें सिंधु नदी के पानी को लेकर
खासकर विवाद रहता है।
- भारत और पाकिस्तान के बीच
सियाचिन ग्लेशियर और सर क्रीक जैसे मुद्दे भी विवादित हैं और यह दोनों देशों के
मध्य तनाव को बढ़ाते हैं।
- चीन के द्वारा पाकिस्तान को
दी जाने वाली आर्थिक और सैन्य मदद भी दोनों देशों के मध्य संबंधों को कटु करती
है।
सहयोग और मधुर संबंध के प्रयास:-
भारत और पाकिस्तान के मध्य
संबंधों को मधुर करने के लिए कई प्रकार के प्रयास किए गए हैं जिनमें से कुछ इस
प्रकार हैं
- वर्ष 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच
विश्व बैंक की सहायता से सिंधु नदी जल समझौता किया गया था जिससे कि दोनों देश के
बीच संबंध अच्छे हो सके।
- वर्ष 1966 में भारतीय प्रधानमंत्री लाल
बहादुर शास्त्री और पाकिस्तानी जनरल अयूब खान के बीच ताशकंद समझौता भी दोनों देशों
के मध्य संबंधों को मधुर करने के लिए किया गया था।
- वर्ष 1972 में शिमला समझौता दोनों देशों के
बीच किया गया जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली
भुट्टो के बीच बातचीत हुई थी।
- वर्ष 1999 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री अटल
बिहारी वाजपेई जी ने दोनों देशों के मध्य संबंधों को मधुर करने के लिए लाहौर बस
यात्रा भी की।
भारत और पाकिस्तान के मध्य सहयोग तथा मधुर संबंधों की संभावनाओं को
दर्शाने वाले कुछ प्रमुख कारक -
- भारत और पाकिस्तान दोनों पहले
एक ही देश थे इसलिए दोनों देशों की ऐतिहासिक विरासत लगभग एक जैसी है जो दोनों को
करीब लाने के लिए काफी सहायक है।
- भारत और पाकिस्तान के मध्य
सांस्कृतिक क्षेत्र के अंतर्गत फिल्में, संगीत आदि भी एक महत्वपूर्ण संभावना का
क्षेत्र बन सकता है।
- भारत और पाकिस्तान दोनों ही
देश खेलों के माध्यम से भी एक दूसरे के निकट आ सकते हैं जिनमें क्रिकेट और हॉकी
जैसे खेल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- भारत और पाकिस्तान के मध्य
संभावनाओं का एक क्षेत्र व्यापार भी है व्यापार के माध्यम से दोनों देश एक दूसरे
के निकट आ सकते हैं और तनाव की स्थिति को दूर किया जा सकता है।
- भारत और पाकिस्तान दक्षिण
एशिया के दो महत्वपूर्ण देश हैं और दोनों ही देश कई क्षेत्रों जिनमें तकनीक और
आर्थिक विकास प्रमुख हैं मिलकर कार्य कर सकते हैं।
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-:नेपाल:-
- नेपाल दक्षिण एशिया का एक
महत्वपूर्ण देश है। नेपाल विश्व के इतिहास में एकमात्र हिंदू देश के रूप में भी
जाना जाता है।
- नेपाल में कई वर्षों तक
राजतंत्र स्थापित रहा। 1990 के दशक में नेपाल में लोकतंत्र की लहर आई और नेपाल की जनता ने लोकतंत्र
की मांग प्रारंभ की।
- वर्ष 1990 में राजा वीरेंद्र ने उग्र होते
आंदोलन को देखते हुए नेपाल में एक नए संविधान की घोषणा कर दी तथा सीमित
संवैधानिक राजतंत्र एवं बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को मान्यता दे दी।
- 1990 के दशक
में नेपाल में कई जगह माओवादी आंदोलन तेजी से बढ़ने लगे।
- राजनीतिक दलों और जनता की
उत्तरदायी शासन की मांग के बावजूद भी राजा ने सेना की सहायता से शासन पर पूरा
नियंत्रण स्थापित कर लिया था ।
- वर्ष 2001 में एक षड्यंत्र के द्वारा नेपाल
नरेश बिरेंद्र की सपरिवार हत्या कर दी गई नए राजा ज्ञानेंद्र ने वर्ष 2002 में संसद को भंग करके लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था समाप्त कर दी।
- कुछ समय तक राजा की सेना , लोकतंत्र समर्थक और माओवादियों के
बीच त्रिकोणीय संघर्ष हुआ ।
- राजा ज्ञानेंद्र ने फरवरी 2005 में शेर बहादुर देउबा की निर्वाचित
सरकार को बर्खास्त करके शासन अपने हाथों में ले लिया जिसके कारण वर्ष 2006 में देशव्यापी लोकतंत्र समर्थन प्रदर्शन होने लगे और इन प्रदर्शनों में
हजारों लोग मारे गए।
- फिर अप्रैल 2006 में देशव्यापी लोकतंत्र समर्थक
प्रदर्शन हुए। इसके परिणामस्वरूप राजा ज्ञानेंद्र ने संसद को बहाल कर दिया।
- यह प्रदर्शन सात दलों के
गठबंधन,माओवादी और
सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा किया गया ।
- नेपाल में लोकतंत्र की
स्थापना के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव हुए जैसे कि संसद ने राजा के सभी अधिकार छीन लिए, संसद को सर्वोच्च माना गया तथा
माओवादी भी अंतरिम सरकार में शामिल होने के लिए मान गए।
- वर्ष 2006 में गिरिजा प्रसाद कोईराला नेपाल
के प्रधानमंत्री बने तथा 2008 में नेपाल लोकतांत्रिक
गणराज्य बन गया।
- वर्ष 2015 में नेपाल में नया संविधान अपनाया
है और वर्तमान में शेर बहादुर देउबा नेपाल के प्रधानमंत्री हैं। विद्या देवी
भंडारी वर्तमान में नेपाल को राष्ट्रपति है।
-:भारत और नेपाल के मध्य संबंध:-
नेपाल और भारत के बीच लगभग
अच्छे संबंध ही रहे हैं। फिर भी कुछ मुद्दे पर दोनो देशों के बीच तनाव की स्थिति
बनी रहती है।
-:मधुर या सहयोगात्मक सम्बन्ध
- नेपाल और भारत दोनो देशों के
लोग एक दूसरे देश में बिना वीजा के आ जा सकते हैं।
- नेपाल के बहुत से लोग भारत
में और भारत के बहुत सारे लोग नेपाल में नौकरी और रोजगार में शामिल हैं।
- नेपाल और भारत के बीच बिजली
और व्यापार के क्षेत्र में भी बहुत अच्छे संबंध देखे जा सकते हैं।
- नेपाल में लोकतंत्र की
स्थापना से दोनो देश और निकट आएं है तथा दोनो देश दक्षेश के सदस्य भी हैं।
-:कटु या तनाव के क्षेत्र :-
- भारत और नेपाल के मध्य कभी
कभी सीमा विवाद भी देखने को मिलता है जैसे कि हाल ही में नेपाल ने लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को अपने नक्शे
में दिखा दिया था जिससे दोनों देशों के मध्य संबंधों में खटास आ गई थी।
- नेपाल की चीन के साथ बढ़ती
मित्रता के कारण भी दोनो देशों के संबंध खराब हो जाते हैं।
- नेपाल और भारत के बीच नदी के
जल और बिजली परियोजनाओं पर भी मनमुटाव देखने को मिलता है।
- नेपाल को यह भी लगता है कि
भारत नेपाल के साथ सही से व्यापार भी नही करता है।
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-:बांग्लादेश:-
- बांग्लादेश दक्षिण एशिया का
एक देश है और 1971 से पहले
इसे पूर्वी पाकिस्तान
के नाम से जाना जाता था क्योंकि यह पाकिस्तान का हिस्सा था।
- ब्रिटिश शासन के समय के बंगाल और असम के विभाजित हिस्सों से पूर्वी पाकिस्तान का यह
क्षेत्र बनाया गया था।
- पूर्वी पाकिस्तान के लोग
पश्चिमी पाकिस्तान के दबदबे और स्वयं पर उर्दू भाषा को लादने के विरोध में थे। पूर्वी पाकिस्तान के
लोग बंगाली
संस्कृति और बंगाली भाषा
को छोड़ने के पक्ष में बिल्कुल भी नहीं थे।
- पूर्वी पाकिस्तान की जनता ने
पाकिस्तान के बनते ही अपना विरोध प्रकट करना शुरू कर दिया। क्षेत्र के लोगों ने
प्रशासन में अपने न्यायोचित प्रतिनिधित्व और राजनीतिक सत्ता में समान हिस्सेदारी की मांग भी रखी।
- पश्चिमी पाकिस्तान के विरोध
में जन संघर्ष का नेतृत्व आवामी लीग के नेता शेख मुजीब उर रहमान ने किया।
- शेख मुजीबुर रहमान ने पूर्वी
पाकिस्तान के स्वायत्त शासन की मांग की और इसी के तहत 1970 में हुए चुनाव में शेख मुजीबुर रहमान की पार्टी ने सभी सीटों पर विजय प्राप्त की।
- शेख मुजीबुर रहमान की आवामी
लीग पार्टी को संपूर्ण पाकिस्तान के लिए प्रस्तावित संविधान सभा में बहुमत प्राप्त हो गया लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान के
नेताओं के दबाव
के कारण सरकार ने इस संविधान सभा को आहूत करने से मना कर
दिया तथा शेख मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया।
- पाकिस्तान के
जनरल जिया खान
ने पाकिस्तानी सेना के द्वारा बंगाली जनता के आंदोलन को कुचलने की कोशिश की और
इस कार्यवाही में हजारों लोग पाकिस्तानी सेना के द्वारा मारे गए तथा पूर्वी
पाकिस्तान से बहुत सारे लोग भारत की ओर पलायन कर गए।
- भारत के इन शरणार्थियों को
संभालने की समस्या आ खड़ी हुई। भारत सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की आजादी की
मांग का समर्थन किया
और उन्हें वित्तीय तथा सैन्य सहायता भी उपलब्ध कराई।
- इसके परिणाम स्वरूप वर्ष 1971 में भारत और
पाकिस्तान के बीच युद्ध हो गया और भारत ने पाकिस्तानी सेना को हरा दिया तथा बांग्लादेश एक स्वतंत्र
देश के रूप में अस्तित्व में
आया।
- बांग्लादेश ने अपना एक
स्वतंत्र संविधान बना कर स्वयं को एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देश घोषित किया।
- वर्ष 1975 में शेख मुजीबुर रहमान ने
बांग्लादेश के संविधान में संशोधन करके संसदीय प्रणाली की जगह अध्यक्षात्मक
शासन प्रणाली को मान्यता दी
तथा आवामी लीग
पार्टी के अलावा अन्य सभी राजनीतिक दलों को समाप्त कर दिया।
- शेख मुजीबुर रहमान की इस नीति
से बांग्लादेश में तनाव और संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई और सेना ने उनके
खिलाफ बगावत कर दी तथा इस नाटकीय घटनाक्रम में शेख मुजीबुर रहमान सेना के हाथों मारे
गए।
- शेख मुजीबुर रहमान के बाद
बांग्लादेश में नए सैनिक शासक जियाउर रहमान ने गद्दी पर कब्जा किया तथा अपनी बांग्लादेश नेशनल पार्टी
बनाई और 1979 के चुनाव को जीता।
- जियाउर रहमान की हत्या के बाद
जनरल एच एम इरशाद के
नेतृत्व में बांग्लादेश में एक और सैनिक शासन सत्ता में आया।
- किंतु बांग्लादेश की जनता अब
लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के समर्थन में उठ खड़ी हुई थी और छात्रों के आंदोलन
के कारण जनरल एच एम इरशाद ने एक हद तक राजनीतिक गतिविधियों को छूट दी।
- इसके बाद जनरल इरशाद 5 सालों के लिए राष्ट्रपति पद पर
निर्वाचित हुए लेकिन जनता के व्यापक विरोध के कारण 1990 में इरशाद को यह पद
छोड़ना पड़ा।
- 1991 में चुनाव हुए और इसके बाद बांग्लादेश में बहुदलीय चुनाव पर आधारित
प्रतिनिधि मूलक लोकतंत्र व्यवस्था स्थापित है।
- वर्तमान समय में आवामी लीग पार्टी की
नेता शेख हसीना बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं और मोहम्मद अब्दुल हमीद बांग्लादेश के
राष्ट्रपति हैं।
भारत-बांग्लादेश के बीच संबंधों का विश्लेषण:-
मधुर या सहयोगात्मक
सम्बन्ध के क्षेत्र:-
भारत और बांग्लादेश के बीच कई
बिंदुओं पर बहुत ही अच्छे और मधुर संबंध देखने को मिलते हैं इनमें से कुछ इस
प्रकार हैं:
- दिसंबर 1971 में बांग्लादेश को स्वतंत्र देश
के रूप में मान्यता देने वाले और उसके साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले देशों में भारत पहला देश था।
- भारत और बांग्लादेश रक्षा
क्षेत्र में संयुक्त सेना अभ्यास और नेवी अभ्यास भी करते हैं जो दोनों देशों के मधुर
संबंधों को दर्शाता है।
- भारत और बांग्लादेश एक दूसरे
के साथ लगभग 4096 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं जो किसी भी देश के साथ में सबसे लंबी सीमा
रेखा है।
- भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय संयुक्त नदी
आयोग जून 1972 से ही कार्य कर रहा है जिससे कि दोनों देशों के बीच संबंधों को अच्छा किया
जा सके।
- भारत और बांग्लादेश के बीच
व्यापार भी बहुत अधिक मात्रा में होता है तथा बांग्लादेश भारत का दक्षिण एशिया में
सबसे बड़ा भागीदार भी है।
- वर्ष 2011 के बाद से दक्षिण
एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र के तहत बांग्लादेश के साथ शुल्क मुक्त व्यापार से दोनों देशों के बीच मधुर संबंध
स्थापित हुए हैं।
- भारत और बांग्लादेश के बीच
कनेक्टिविटी को अच्छा करने के लिए रेलवे लिंक, अंतर्देशीय जल पारगमन
तथा एक महत्वपूर्ण सड़क परियोजना(BBIN) भी स्थापित की गई है।
- भारत और बांग्लादेश सार्क तथा
बिम्सटेक के सदस्य देश भी हैं।
- दोनों देशों के बीच आपदा प्रबंधन और
पर्यावरण के
क्षेत्र में सहयोगात्मक संबंध स्थापित है।
- बांग्लादेश भारत के लिए इसलिए
भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत की पूर्व की ओर चलो की नीति का एक
महत्वपूर्ण देश भी है।
तनाव या विवाद के क्षेत्र:-
- भारत और बांग्लादेश के बीच गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी
के जल के
प्रयोग को लेकर भी तनाव बना रहता है।
- भारत और बांग्लादेश के
संबंधों को तनाव पूर्ण करने के लिए बांग्लादेश से आए हुए अवैध शरणार्थी जिन्हें
चकमा कहा जाता है एक प्रमुख
भूमिका निभाते हैं।
- बांग्लादेश रक्षा क्षेत्र में
चीनी सैन्य
पनडुब्बियों
सहित अन्य सामग्रियों का एक प्रमुख प्राप्तकर्ता देश है जो कि भारत के लिए एक
चिंता की बात है।
- असम में भारतीय नागरिकों की
पहचान करने के लिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर और बांग्लादेश पहले चिंता
व्यक्त कर चुका
है जिससे दोनों देशों के बीच संबंधों में खटास आई।
- भारत में मुसलमानों के प्रति
घृणा और घृणा की घटनाएं बांग्लादेश में सार्वजनिक धारणाओं को प्रभावित करती है।
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-:श्रीलंका:-
- श्रीलंका दक्षिण एशिया का एक महत्वपूर्ण
देश है। श्रीलंका वर्ष 1948 में आजाद हुआ और आजादी के बाद से ही श्रीलंका में
लोकतांत्रिक शासन
व्यवस्था विद्यमान है।
- आजादी के बाद से ही श्रीलंका को जातीय
संघर्ष का
सामना करना पड़ रहा है और यह चिंता वर्तमान समय में भी विद्यमान है।
- श्रीलंका को पहले सीलोन कहा जाता था। श्रीलंका मुख्य रूप से दो
समुदायों में विभाजित है जिनमें तमिल और सिंहली आते हैं।
- आजादी के बाद से ही श्रीलंका में सिंहली समुदाय का हर
क्षेत्र में दबदबा
बना हुआ है क्योंकि यह बहुसंख्यक समुदाय
है और यह समुदाय श्रीलंका में आकर बसे हुए तमिल समुदाय के विरोध में रहता है।
- सिंहली श्रीलंका के मूल
निवासी है और तमिल भारत से जाकर श्रीलंका में बस गए हैं।
- श्रीलंका की जनसंख्या का लगभग 18 प्रतिशत भाग भारतीय मूल के तमिल हैं जोकि श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी
प्रांतों में बसे
हुए हैं।
- श्रीलंका में सिंहली भाषी समुदाय के
लोगों का मानना है कि श्रीलंका केवल सिंहली भाषी लोगों के लिए है और यहां पर तमिलों के लिए किसी भी
प्रकार की कोई जगह नहीं है।
- सिंहली भाषी लोगों के इस व्यवहार के कारण
तमिल भाषी लोगों को काफी उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है। श्रीलंका में तमिलों को सरकारी
नौकरियों तथा शिक्षण संस्थाओं
आदि में भी पक्षपात का सामना करना पड़ा है।
- इस प्रकार के भेदभाव और पक्षपात पूर्ण
व्यवहार ने श्रीलंका में उग्र तमिल राष्ट्रवादी आंदोलन के मार्ग प्रशस्त किए हैं और इसी कड़ी
में लिबरेशन
टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) जोकि वर्ष 1983 से श्रीलंकाई सेना से सशस्त्र संघर्ष कर
रहा है।
- LTTE श्रीलंका में तमिलों के लिए एक
अलग देश की मांग कर रहा था तथा इसलिए श्रीलंका के उत्तर पूर्वी हिस्से पर अपना
नियंत्रण भी कर लिया था।
- श्रीलंका का यह जातीय संघर्ष भारत से
जुड़े तमिल लोगों से है इसलिए भारत सरकार पर तमिल जनता का भारी दबाव देखने को मिलता है क्योंकि श्रीलंका की तमिल जनता भारतीय
सरकार से यह मांग करती है कि वह श्रीलंका में तमिल लोगों की रक्षा करें और इस
भेदभाव को समाप्त करें।
- इसी कड़ी में वर्ष 1987 में भारतीय सरकार ने तमिल संघर्ष को रोकने के लिए अपनी शांति सेना श्रीलंका में भेजी लेकिन
वहां परिस्थिति और तनावपूर्ण हो गई तथा भारतीय शांति सेना को वर्ष 1989 में बिना किसी
लक्ष्य प्राप्त किए वापस आना पड़ा।
- इस घटना से श्रीलंका की जनता भारतीय
सरकार से काफी नाराज हो गई और उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि भारत सरकार श्रीलंका
के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रही है।
- श्रीलंका के इस हिंसक जातीय संघर्ष को
रोकने के लिए काफी प्रयास भी किए गए हैं जिनमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नार्वे और
आइसलैंड जैसे देश मध्यस्थ की भूमिका भी निभा रहे हैं।
- श्रीलंका का यह जातीय संघर्ष वर्ष 2009 में लगभग समाप्त सा
हो गया क्योंकि लिट्टे के नेता प्रभाकरण की सेना के हमले से मौत हो गई। इस तरह से लंबे समय से चले आ रहे गृह
युद्ध की स्थिति लगभग समाप्त हो गई।
- श्रीलंका तमिल और सिंहली भाषा समुदायों
के जातीय संघर्ष के बावजूद भी दक्षिण एशिया का पहला देश है जिसने अपनी अर्थव्यवस्था का
उदारीकरण किया था
और इसके साथ ही श्रीलंका की जीडीपी दर दक्षिण एशिया में सर्वाधिक मानी
जाती है।
- श्रीलंका ने इन संघर्षों के बावजूद जनसंख्या नियंत्रण पर
सफलतापूर्वक कार्य किया है और यह विकासशील देशों में ऐसा करने वाला पहला देश भी
है। श्रीलंका का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू
उत्पाद भी दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा है। इतने संघर्षों के बावजूद भी श्रीलंका ने अपनी
लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम रखा है जो कि एक सराहनीय बात है।
श्रीलंका और भारत में मतभेद
या तनाव के बिंदु:-
- भारत और श्रीलंका के बीच विवाद का एक
क्षेत्र समुद्री सीमा
निर्धारण भी है। भारत और श्रीलंका पाक जल संधि के माध्यम से जुड़े हुए हैं और इन दोनों
के बीच में समुद्री सीमा को लेकर भी तनातनी रहती है।
- भारत और श्रीलंका के बीच तनाव का एक
प्रमुख कारक तमिल समस्या भी है। श्रीलंका में जातीय संघर्ष के लिए जिम्मेदार एक
प्रमुख कारक तमिल समुदाय भी है और तमिलों के प्रति भारत की नीति के कारण दोनों
देशों के संबंध तनावपूर्ण हो जाते हैं।
- श्रीलंका का चीन की तरफ
झुकाव और पश्चिमी देशों
के साथ उसके बढ़ते संबंधों के कारण दोनों देशों के संबंधों में तनाव देखने को
मिलता रहता है।
- भारत और श्रीलंका के बीच मछुआरों को लेकर भी
एक समस्या बनी रहती है जिसके अंतर्गत दोनों देश के मछुआरे मछली पकड़ने के लिए एक
दूसरे की सीमा का उल्लंघन कर देते हैं।
मधुर या सहयोग के क्षेत्र:-
- भारत और श्रीलंका दोनों ही देश दक्षिण
एशिया के महत्वपूर्ण देशों में से एक है और दोनों देश प्रारंभ से ही लोकतांत्रिक देश रहे
हैं।
- भारत और श्रीलंका के बीच वाणिज्यिक संबंध
भी बहुत महत्वपूर्ण है श्रीलंका दक्षिण एशिया के देशों में भारत का दूसरा सबसे
बड़ा व्यापारिक भागीदार है
जो इस बात को दर्शाता है कि श्रीलंका और भारत दोनों ही देश व्यापारिक रूप से
काफी निकट है।
- भारत ने श्रीलंका में तमिल मुद्दे पर लगातार
सकारात्मक सहयोग के लिए कार्य किया है और इसी क्रम में भारत ने श्रीलंका में तमिलों के लिए
लगभग 46000 घर बनाने
की योजना पर भी कार्य किया है।
- भारत और श्रीलंका के बीच
सांस्कृतिक संबंधों में भी प्रगाढ़ता देखने को मिलती है दोनों ही देशों के राष्ट्रीय अध्यक्ष और
शासन अध्यक्ष एक दूसरे का दौरा करते रहते हैं जिससे कि दोनों देशों के संबंधों
में जीवंतता बनी रहती है।
- भारत और श्रीलंका दोनों
ही देश साझा पर्यटन
पर भी कार्य करते हैं जिससे कि दोनों देशों के पर्यटक एक दूसरे देश में पर्यटन
के लिए आ सके और दोनों देशों के संबंध मधुर बने रहें।
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-:मालदीव:-
- मालदीव भारत के दक्षिण में स्थित दीपों
की एक श्रृंखला वाला देश है। यह हिंद महासागर में स्थित एक महत्वपूर्ण देश है
जहां से बहुत सारे व्यापारिक मार्ग गुजरते हैं।
- मालदीव वर्ष 1965 में ब्रिटिश शासन
से स्वतंत्र हुआ
और इसके बाद मालदीव में सल्तनत व्यवस्था स्थापित हुई जोकि वर्ष 1968 तक बनी रही।
- वर्ष 1968 में मालदीव में शासन की अध्यक्षात्मक प्रणाली को
अपनाया गया तथा गणतंत्र देश घोषित किया।
- वर्ष 2005 में मालदीव की संसद
ने बहुदलीय प्रणाली
को अपनाने के पक्ष में एकमत से मतदान किया तथा मालदीव को बहुदलीय व्यवस्था वाला
देश घोषित किया।
- मालदीव की राजनीति में मालदीवियन डेमोक्रेटिक
पार्टी (MDP)
का देश के राजनीतिक मामलों में प्रभुत्व साफ तौर पर देखने को मिलता है।
- वर्ष 2005 के चुनावों के बाद मालदीव में
लोकतंत्र और अधिक मजबूत हुआ क्योंकि पहली बार इस चुनाव में विपक्षी दलों
को कानूनी मान्यता दी गई।
- वर्ष 2012 में मालदीव के राष्ट्रपति नशीद को
हटा दिया गया और मोहम्मद वाहिद को मालदीव का नया राष्ट्रपति बना दिया गया जिसके
कारण मालदीव में राजनीतिक स्थायित्व का संकट उत्पन्न हो गया।
- वर्तमान समय में इब्राहिम मोहम्मद मालदीव के राष्ट्रपति हैं जोकि
मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी से संबंधित है।
भारत और मालदीव के संबंध: -
भारत और मालदीव के संबंध बहुत ही मधुर और
अच्छे रहे हैं। भारत और मालदीव के इन संबंधों को हम निम्नलिखित बिंदुओं के
माध्यम से समझ सकते हैं: -
- वर्ष 1988 में जब श्रीलंका से आए कुछ भाड़े
के तमिल सैनिकों ने मालदीव पर हमला किया तब भारत ने वायु सेना और
नौसेना से तुरंत कार्यवाही की और मालदीव की सहायता की।
- भारत और मालदीव के बीच पर्यटन तथा मत्स्य
उद्योग में भी
बहुत अच्छे संबंध हैं और दोनों देश एक दूसरे को इन क्षेत्रों में सहयोग करते
रहते हैं।
- भारत ने मालदीव के
आर्थिक विकास में लगातार सहायता की है
और उसके साथ कई तरह के
द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर भी किए हैं।
- भारत ने मालदीव के साथ नवंबर 2020 में चार समझौता
ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं जोकि इस प्रकार हैं
- उच्च प्रभाव सामुदायिक विकास परियोजनाओं
के लिए दो समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
- खेल और युवा मामलों के सहयोग पर मालदीव
भारत के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया है।
- GMCP (Greater MALE Connectivity Project) के लिए भारत के 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर के पैकेज
के एक भाग के रूप में 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान
के लिए एक एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया है।
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-:भूटान:-
भूटान दक्षिण एशिया का एक छोटा सा देश
है। भूटान में प्रारंभ से ही राजतंत्र व्यवस्था स्थापित रही है। वर्ष 2008 में भूटान में संवैधानिक राजतंत्र
स्थापित किया गया है और यह राजा के नेतृत्व में बहुदलीय लोकतंत्र के रूप में
उभरा है।
भारत और भूटान संबंध:-
- भारत और भूटान के बीच बहुत ही मधुर और
अच्छे संबंध हैं। भारत भूटान में पनबिजली की बड़ी परियोजनाओं में भूटान की काफी मदद कर रहा है।
- भूटान से अपने काम का संचालन कर रहे पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादी और
गोरिल्ला को भूटान ने अपने क्षेत्र से खदेड़ दिया जिससे दोनों देशों
के बीच और मधुर संबंध स्थापित हुए।
- भूटान के विकास कार्यों के लिए सबसे ज्यादा आर्थिक मदद
भारत द्वारा की जाती है
जिससे दोनों देश और अधिक निकट आते हैं।
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दक्षिण एशिया के छोटे देशों
का भारत के प्रति आशंकित दृष्टिकोण:-
दक्षिण एशिया के प्रायः अपेक्षाकृत छोटे
देशों का भारत के प्रति आशंका भरा दृष्टिकोण या व्यवहार रहता है और इसके लिए कई
सारे कारण जिम्मेदार हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार है -
- भारत दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा देश है और यह
विश्व में क्षेत्रफल की दृष्टि से सातवां बड़ा देश है। इस कारण से भी दक्षिण एशिया के छोटे देश
भारत के प्रति आशंकित दृष्टिकोण रखते हैं।
- भारत विश्व की सबसे बड़ी सैन्य
शक्तियों में से एक है
और इस कारण भी दक्षिण एशिया के छोटे देश भारत के प्रति आशंकित रहते हैं।
- भारत की जनसंख्या विश्व की दूसरी सबसे बड़ी
जनसंख्या है
और यह भी एक बहुत बड़ा कारक है जिसके कारण दक्षिण एशिया के देश भारत के प्रति
आशंकित रहते हैं।
- भारत विश्व की तेजी से उभरती हुई
अर्थव्यवस्था
में से एक है इस तरह भारत विशाल अर्थव्यवस्था वाला देश है और यह भी एक बहुत बड़ा
कारक है जिससे कि दक्षिण एशिया के अपेक्षाकृत छोटे देश भारत से डरे हुए रहते हैं।
- दक्षिण एशिया के छोटे देश इसलिए भी भारत
से आशंकित रहते हैं क्योंकि भारत की तकनीक बाकी देशों से बहुत ही विकसित है।
- दक्षिण एशिया के अपेक्षाकृत छोटे देशों
के आशंकित व्यवहार का एक कारण यह भी है कि भारत का विश्व राजनीति में प्रमुख
स्थान है और भारत
वर्तमान समय में भी अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नेतृत्व कर रहा है।
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दक्षिण एशिया में शांति और
सहयोग बढ़ाने के उपाय:-
- दक्षिण एशिया में शांति और सहयोग बढ़ाने
के लिए इन देशों को मुक्त व्यापार को और अधिक उदार करने की आवश्यकता है।
- दक्षिण एशिया में शांति और सहयोग बढ़ाने
के लिए सहयोगात्मक दृष्टिकोण
अपनाने की आवश्यकता है और इस क्षेत्र में व्याप्त निर्धनता और बेरोजगारी
को दूर करने की
भी नितांत आवश्यकता है।
- दक्षिण एशिया के देशों में द्विपक्षीय
विवाद बहुतायत देखने को मिलता है और इसके कारण इस क्षेत्र में तनाव और संघर्ष की
स्थिति बनी रहती है इसलिए इन देशों को अपने द्विपक्षीय विवादों को शीघ्रता से हल करने की
आवश्यकता है।
- दक्षिण एशिया में कई सारे देशों में
राजनीतिक अस्थिरता पाई जाती है जिसके कारण इन देशों में संघर्ष और तनाव की
स्थिति बनी रहती है इसलिए इस क्षेत्र में शांति और सहयोग स्थापित करने के लिए राजनीतिक स्थिरता की भी
आवश्यकता है।
- दक्षिण एशिया के देश मुख्य रूप से एक भयंकर
समस्या से जूझ रहे हैं जिसे आतंकवाद कहा जाता है और इसके कारण ही दक्षिण एशिया
के देशों में तनाव और संघर्ष की स्थिति बनी रहती है इसलिए दक्षिण एशिया में
शांति और सहयोग को बढ़ाने के लिए आतंकवाद के सभी रूपों का अंत करना जरूरी है।
- दक्षिण एशिया के देशों को यह समझना बहुत
ही जरूरी है कि अपने किसी भी विवाद या मुद्दों को आपस में मिलकर ही हल किया जाए ना कि किसी अन्य बाहरी
शक्ति के हस्तक्षेप से उस समस्या को हल किया जाए।
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समकालीन दक्षिण एशिया से सम्बन्धित Quiz:-
समकालीन दक्षिण एशिया - 1
समकालीन दक्षिण एशिया - 2
समकालीन दक्षिण एशिया - 3
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