CLASS: X
SUBJECT: SOCIAL SCIENCE
WORKSHEET SOLUTION: 78
DATE: 02/02/2022
SOLUTIONS
अध्याय -3 : भारत में राष्ट्रवाद
सविनय
अवज्ञा आंदोलन में विभिन्न सामाजिक समूहों की भागीदारी किसान-गांवों में संपन्न किसान समुदाय जैसे गुजरात के पाटीदार और उत्तर प्रदेश
के जाट आंदोलन में सक्रिय थे। उन्होंने अपने समुदायों को एकजुट किया और कई बार
अनइच्छुक सदस्यों को बहिष्कार के लिए मजबूर किया। उनके लिए स्वराज की लड़ाई भारी
लगान के खिलाफ लड़ाई थी। दूसरी तरफ गरीब किसान चाहते थे कि उन्हें जमीदारों को
जो भाड़ा चुकाना था उसे माफ कर दिया जाए। उन्होंने कई रेडिकल आंदोलनों में
हिस्सा लिया जिनका नेतृत्व अक्सर समाजवादियों और कम्युनिस्टों के हाथ में होता
था। व्यवसाई वर्ग और
श्रमिक वर्ग-भारतीय उद्योगपतियों ने आंदोलन को
आर्थिक सहायता दी और आयातित वस्तुओं को खरीदने या बेचने से इनकार कर दिया।
ज्यादातर व्यवसाई स्वराज को एक ऐसे युग के रूप में देखते थे जहां कारोबार पर
औपनिवेशिक पाबंदियां नहीं होंगी और व्यापार और उद्योग निर्बाध ढंग से फल-फूल
सकेंगे। औद्योगिक श्रमिक
वर्ग ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में नागपुर क्षेत्र के अलावा और कहीं बहुत बड़ी
संख्या में हिस्सा नहीं लिया। लेकिन कुछ मजदूरों ने आंदोलन में हिस्सा लिया।
उन्होंने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार जैसे कुछ गांधीवादी विचारों को काम वेतन व
खराब कार्य स्थितियों के खिलाफ अपनी लड़ाई से जोड़ लिया। 1930 में रेलवे कामगारों की और 1932 में गोदी कामगारों
की हड़ताल हुई। 1930 में छोटा नागपुर की टिन खानों के
हजारों मजदूरों ने गांधी टोपी पहनकर रैलियों और बहिष्कार अभियानों में हिस्सा
लिया। महिलाएं-सविनय अवज्ञा आंदोलन में महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। गांधीजी के
नमक सत्याग्रह के दौरान हजारों औरतें उनकी बात सुनने के लिए घर से बाहर आ जाती
थी। उन्होंने जुलूस में हिस्सा लिया, नमक बनाया, विदेशी कपड़ों और शराब की दुकानों की पिकेटिंग की। बहुत सारी महिलाएं
जेल भी गई। गांधी जी के आह्वान के बाद औरतों को राष्ट्र की सेवा करना अपना
पवित्र दायित्व दिखाई देने लगा था। लेकिन महिलाओं की
सार्वजनिक भूमिका में इजाफे का यह नही था इनकी स्थिति में कोई भारी बदलाव आने
वाला था। गांधीजी का मानना था कि घर चलाना, चूल्हा
चौका संभालना, अच्छी मां व अच्छी पत्नी की भूमिकाओं का
निर्वाह करना ही औरतों का असली कर्तव्य है। इसलिए लंबे समय तक कांग्रेस संगठन
में किसी भी महत्वपूर्ण पद पर औरतों को जगह देने से हिचकी जाती रही। कांग्रेस को
प्रतीकात्मक उपस्थिति में ही दिलचस्पी थी। निम्नलिखित
प्रश्नों के उत्तर दीजिए। प्रश्न 1.
सविनय अवज्ञा आंदोलन में विभिन्न सामूहिक समूह की भागीदारी किस
प्रकार थी? व्याख्या कीजिए। उत्तर. सविनय अवज्ञा आंदोलन में
विभिन्न सामूहिक समूह की भागीदारी कुछ इस प्रकार थी किसान-गांवों
में संपन्न किसान समुदाय जैसे गुजरात के पाटीदार और उत्तर प्रदेश के जाट आंदोलन
में सक्रिय थे। उन्होंने अपने समुदायों को एकजुट किया और कई बार अनइच्छुक
सदस्यों को बहिष्कार के लिए मजबूर किया। उनके लिए स्वराज की लड़ाई भारी लगान के
खिलाफ लड़ाई थी। दूसरी तरफ गरीब किसान चाहते थे कि उन्हें जमीदारों को जो भाड़ा
चुकाना था उसे माफ कर दिया जाए। उन्होंने कई रेडिकल आंदोलनों में हिस्सा लिया
जिनका नेतृत्व अक्सर समाजवादियों और कम्युनिस्टों के हाथ में होता था। व्यवसाई वर्ग और श्रमिक वर्ग-भारतीय
उद्योगपतियों ने आंदोलन को आर्थिक सहायता दी और आयातित वस्तुओं को खरीदने या
बेचने से इनकार कर दिया। ज्यादातर व्यवसाई स्वराज को एक ऐसे युग के रूप में
देखते थे जहां कारोबार पर औपनिवेशिक पाबंदियां नहीं होंगी और व्यापार और उद्योग
निर्बाध ढंग से फल-फूल सकेंगे। औद्योगिक श्रमिक वर्ग ने सविनय
अवज्ञा आंदोलन में नागपुर क्षेत्र के अलावा और कहीं बहुत बड़ी संख्या में हिस्सा
नहीं लिया। लेकिन कुछ मजदूरों ने आंदोलन में हिस्सा लिया। उन्होंने विदेशी
वस्तुओं के बहिष्कार जैसे कुछ गांधीवादी विचारों को काम वेतन व खराब कार्य
स्थितियों के खिलाफ अपनी लड़ाई से जोड़ लिया। 1930 में रेलवे कामगारों की और 1932 में गोदी कामगारों
की हड़ताल हुई। 1930 में छोटा नागपुर की टिन खानों के
हजारों मजदूरों ने गांधी टोपी पहनकर रैलियों और बहिष्कार अभियानों में हिस्सा
लिया। प्रश्न 2.
सविनय अवज्ञा आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी का उल्लेख कीजिए।
क्या उनकी सार्वजनिक भूमिका में इजाफे से उनकी स्थिति में कोई भारी बदलाव आया था? उत्तर. महिलाएं-सविनय
अवज्ञा आंदोलन में महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। गांधीजी के नमक सत्याग्रह
के दौरान हजारों औरतें उनकी बात सुनने के लिए घर से बाहर आ जाती थी। उन्होंने
जुलूस में हिस्सा लिया, नमक बनाया, विदेशी
कपड़ों और शराब की दुकानों की पिकेटिंग की। बहुत सारी महिलाएं जेल भी गई। गांधी
जी के आह्वान के बाद औरतों को राष्ट्र की सेवा करना अपना पवित्र दायित्व दिखाई
देने लगा था। लेकिन महिलाओं की सार्वजनिक भूमिका
में इजाफे का यह नही था इनकी स्थिति में कोई भारी बदलाव आने वाला था। गांधीजी का
मानना था कि घर चलाना, चूल्हा चौका संभालना, अच्छी मां व अच्छी पत्नी की भूमिकाओं का निर्वाह करना ही औरतों का असली
कर्तव्य है। इसलिए लंबे समय तक कांग्रेस संगठन में किसी भी महत्वपूर्ण पद पर
औरतों को जगह देने से हिचकी जाती रही। कांग्रेस को प्रतीकात्मक उपस्थिति में ही
दिलचस्पी थी। |